ठंड में दांत क्यों किटकिटाते हैं? जानिए इसके पीछे की वजह

सर्दियों के मौसम में अक्सर लोगों को दांत किटकिटाने की समस्या होती है. ये काफी आम है.

Update: 2021-11-16 05:26 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सर्दियों (Winter) के मौसम में अक्सर लोगों को दांत किटकिटाने की समस्या होती है. ये काफी आम है. लेकिन कभी आपने सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? आपको बता दें कि सर्दी में कंपकंपी आने या दांत किटकिटाने पर अलर्ट होने की जरूरत है. डॉक्टर्स का कहना है कि ये दिमाग की चेतावनी है. इसे अनदेखा करना सेहत पर भारी पड़ सकता है. आज हम इसके बारे में डिटेल में बता रहे हैं.

इस वजह से किसी को ठंड लगती है तो किसी को गर्मी
बता दें कि हर इंसान को अलग-अलग हिसाब से ठंड लगती है. कोई मामूली ठंड में ही गर्म कपड़े पहनने लगता है तो कोई कड़ाके की सर्दी में भी नॉर्मल कपड़े पहन कर घूमता है. ये सब डिपेंड करता है उसके शरीर के त्वचा में मौजूद सेंसरों पर, जिनकी संख्या हर इंसान में अलग-अलग होती है. तापमान में बदलाव होने पर शरीर कांपना शुरू कर देता है या रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
इसलिए किटकिटाते हैं दांत
दरअसल, शरीर के कुछ और भी आत्मरक्षक तरीके होते हैं. जब शरीर को एहसास होता है कि उसे और तापमान की जरूरत है तो कंपकपी लगती है. अक्सर ऐसी स्थिति में निचले जबड़े में किटकिटाहट होने लगती है. महिलाओं का शरीर आंतरिक तापमान मेंटेन करने में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा स्ट्रांग होता है. उनके शरीर की संरचना ही कुछ ऐसी होती है जिससे बॉडी पार्ट्स को गर्मी मिलती रहती है.
कंपकंपी है दिमाग का सिग्नल
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कंपकंपी एक अनैच्छिक क्रिया है, जिसके जरिए हमारा शरीर खुद को सक्रिय बनाता है और अगर उसे तत्काल गर्मी नहीं मिली तो हाइपोथर्मिया (Hypothermia) बीमारी की चपेट में आ सकते हैं, जो जानलेवा हो सकता है. इसके अलावा ठंड से बचाव में बाल सबसे अहम भूमिका निभाते हैं. मानव शरीर पर बाल त्वचा के जिस हिस्से से जुड़े होते हैं वहां ठंड होने पर मांसपेशियां अकड़ने लगती हैं और बाल खड़े हो जाते हैं. जिन जीवों में या जिनके शरीर पर बहुत बाल होते हैं उनमें बालों की परत ऊष्मारोधी या अवरोधी परत की तरह काम करती है.
हार्ट अटैक की वजह बन सकती है ठंड
डॉक्टर्स के अनुसार, शरीर का सामान्य तापमान 98.08 डिग्री फारेनहाइट होता है. अगर ये गिर कर 97 डिग्री फारेनहाइट पर पहुंच जाए तो शरीर में कंपकंपी होने लगती है. ये कंपकंपी दिल के माध्यम से हमें दिया जाना वाला सिग्नल है, कि हम अपने शरीर को गर्म करें. हालांकि इसके लिए शरीर अपनी मांसपेशियों को इस प्रोसेस में जकड़ कर सख्त कर लेता है. लेकिन अगर तापमान 91 से 87 डिग्री फारेनहाइट तक गिर जाता है, तो मांसपेशियों में अकड़न से कंपकंपी रुककर हाइपोथर्मिया की स्थिति ला देती है. जो हार्ट अटैक और मौत की वजह बन सकती है. वहीं अगर तापमान 84 डिग्री फारेनहाइट से भी कम हो जाता है, तो शरीर नीला पड़ने लगता है और सांस रुकने लगती है. ऐसे इंसान का बच पाना मुश्किल हो जाता है.
पैरालिसिस की भी बढ़ जाती है संभावना
कड़ाके की ठंड से शरीर में अकड़न के साथ ही चेहरे में टेढ़ापन आ सकता है. इसे बेल्स पाल्सी (Bell's palsy) कहते हैं. इसमें चेहरा टेढ़ा होकर निष्क्रिय होने लगता है और आंख बंद होने लगती है. ये फालिज (Paralysis) की तरह होता है. डॉक्टर्स का मानना है कि इस स्थिति को फेसियल नर्व की पैरालिसिस बेल्स पाल्सी कहते हैं.
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