बच्चों को बताएं दादा-दादी और नाना-नानी का महत्व

Update: 2024-05-20 14:27 GMT

लाइफस्टाइल: बच्चों को बताएं दादा-दादी और नाना-नानी का महत्व  बच्चों का पहला स्कूल उनका घर होता है। घर के लोगों से ही बच्चे संस्कार और व्यवहार सीखते हैं। दादा-दादी या नाना-नानी का साथ मिलना बच्चों के लिए बेहद सुखद होता है। वह बच्चों को न केवल प्यार करते हैं बल्कि खेल-खेल में जीवन जीने का ढंग सीख देते हैं। बच्चे भी दादा-दादी के साथ आराम से और खुशी से रहते हैं। माता-पिता उन्हें डांट भी देते हैं लेकिन दादा-दादी प्यार से हर बात उनकी मान लेती है और बच्चे मान भी जाते हैं, इसलिए उनके वह सबसे प्यारे दोस्त बन जाते हैं।

घर के बुजुर्ग भी बच्चे में अपना बचपना ढूंढ़कर उनके साथ समय व्यतीत करना बेहद पसंद करते हैं। कहावत भी हैं ना कि ब्याज हमेशा मूलधन से प्यारा होता है। दादा-दादी जिंदगी में बहुत कुछ देख और समझ चुके होते हैं, जिसके कारण वे मुश्किल चीजों का हल भी कई बार अपने अनुभव से चुटकियों में हल कर देते हैं। बच्चे भी उनसे वे सब चीजें सीखते हैं। दौड़ती-भागती जिंदगी में जब माता-पिता अपनी नौकरी के लिए भागते फिरते रहते हैं, ऐसे में दादा-दादी के साथ बच्चे शांत से रहना सीखते हैं। दादी-दादी या नाना-नानी ही बच्चों को अपनी मातृभाषा सिखाते हैं। रामायण आदि की कहानियां सुनाकर वह बच्चों को धर्म से जोड़ते हैं।
बच्चे भगवान के आगे हाथ जोड़ना, बड़ों का सम्मान करना, छोटों को प्यार करना यह सब उनके बड़े ही उन्हें सिखाते हैं। ऐसे में बच्चों के लिए दादा-दादी का साथ बहुत जरूरी होता है। वे अपनी परंपराओं और संस्कृति के बारे में दादा-दादी अथवा नाना-नानी से ही सीखते हैं। कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि दादा-दादी और नाना-नानी का साथ मिलने पर बच्चों में धैर्य बढ़ता है। जो बच्चे अपने दादा-दादी के साथ रहते हैं, वो कठिन से कठिन समस्याओं में भी घबराते नहीं है। संयुक्त परिवार में रहने वाले बच्चों की तुलना ज्यादा जिद्दी और गुस्सैल होते हैं।
बच्चों को जीवन में दादा-दादी और नाना-नानी का साथ मिलना उनके बचपन को पूरा बनाता है क्योंकि वे ही परिवार और संस्कारों की नींव बच्चों में रखते हैं। बच्चों के विकास में इन की सबसे बड़ी भूमिका होती है। ग्रैंड पैरेंट्स का बच्चों के लिए उपयोगिता को देखते हुए अमेरिका सहित कई देश में ग्रैंड पैरेंट्स डे मनाया जाने लगा है। लोगों को उनके दादा-दादी या नाना-नानी के करीब लाना।
30 वर्षीय प्रियंका बताती हैं, ‘दादी का मेरे जीवन में बेहद अहम रोल है, पिता की नौकरी शहर में होने की वजह से मेरे माता उनके साथ रहने लगी और मुझे दादी के पास उनकी मदद करने के लिए छोड़ा गया। मेरी दादी ने मुझे स्कूली पढ़ाई के अलावा घर के काम भी सिखा दिए। आज जब मैं अपनी पढ़ाई के लिए दूसरे देश में अकेली रहती हूं तो मुझे किसी काम को करने में परेशानी नहीं होती है। मैं बचपन से ही दादी को ही अपनी मां कहती थी। दादी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। मैं कभी भी उनको छोड़ कर नहीं रह पाती थी। साल 2003 में उन्हें हार्ट अटैक आया और वह दुनिया को अलविदा कह गईं। मेरे लिए उनकी मौत बहुत बड़ा सदमा था। मैं दादी को बिल्कुल भूल नहीं पा रही थी। मुझे हर वक्त दादी अपनी करीब ही लगती थी। दादी की मौत ने मुझे सिखाया कि आपको अपनी जिंदगी में प्रिय लोगों की लिस्ट लंबी रखनी चाहिए क्योंकि किसी एक की मौत से आपको इतना धक्का लगता है कि आप जीने लायक नहीं रहते।’
यह कहानी केवल प्रियंका की नहीं है, बहुत से ऐसे बच्चे हैं जिन्हें कुछ समय बाद दादा-दादी से अलग रहना पड़ता है तो वह तनाव में चले जाते हैं। 35 वर्षीय शिखा दो बच्चों की मां हैं, शिखा ने अपने अनुभव हमसे साझा करते हुए बताया, ‘मेरा बड़ा बेटा 2 साल की उम्र से ही मेरे सास-ससुर के साथ ही रहता था। एक बार अचानक मम्मी-पापा को कुछ वक्त के लिए गांव जाना पड़ा तो मेरे बेटे ने मेरा जीना दुश्वार कर दिया था। वह खाना-पीना नहीं खाता और ना ही दूसरे बच्चों के साथ खेलता था। मेरे लिए उसे संभालना बेहद मुश्किल हो गया था
नौकरी, घर और बच्चे तीनों की जिम्मेदारियों के बीच में मैं फंस गई थी। मेरा बेटा उन्हें याद करते हुए रात को रोने लगता था। आप ये सुनकर हंसेंगे लेकिन बेटा भगवान के पास हाथ जोड़कर विनती करता था कि मेरे दादा-दादी को जल्दी मेरे पास भेज दो। वीडियो कॉल पर भी वह उन्हें देखकर रोने लगता और बोलता आप भी जल्दी घर आ जाओ। मैंने अपनी परेशानी पड़ोस में रहने वाली एक बुजुर्ग आंटी को बताया तो उन्हें मुझे सुझाव देने के साथ एक बहुत अच्छी बात भी कही जिसे मैं आपके साथ भी शेयर करना चाहती हूं। उन्होंने कहा बेटा जीवन में किसी का भी कोई भरोसा नहीं होता है बच्चे को किसी की ऐसी आदत नहीं लगानी चाहिए कि उसके बिना वह रह ना पाएं। आप लोगों ने बच्चे को दादा पर इतना ज्यादा निर्भर कर दिया था कि वह उनके बिना रह नहीं पाता था। बच्चे को सबके साथ रहने की आदत होनी चाहिए। आस-पड़ोस के लोगों के साथ भी जुड़ाव बनाए जाना चाहिए। समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है। बच्चों का मन बहुत कोमल होता है, उनकी भावनाओं को भी ठेस पहुंचती हैं। उनके कोमल मन में यह बात भी आ सकती है, मम्मी-पापा ने तो दादा-दादी को नहीं भगाया होगा।
आंटी ने कहा कि तुम परेशान मत हो इतना अपने बच्चे को मेरे पास कुछ घंटे के लिए भेज दो, मैं उसे अपने पोते-पोतियों के साथ खिलाउंगी। फिर शिखा ने आंटी के पास भेजना शुरू किया, कुछ दिन तो वो रोता था लेकिन धीरे-धीरे उसका मन लगने लगा और वह खुश रहने लगा।
 जिन बच्चों के दादा-दादी या नाना-नानी दूसरे शहर में रहते हैं, वह आसानी से उनसे नहीं मिल सकते हैं वह अपने आस-पड़ोस के लोगों के साथ खेले-कूदें, उनके साथ उठना-बैठना शुरू करें।
 अपनी सोसायटी में बुजुर्ग लोगों की एक कम्यूनिटी बनाएं और बच्चों को उनके साथ खेलने-कूदने के परिवार वाले प्रेरित करें।
 माता-पिता को चाहिए कि वह रिश्तेदारों से बच्चों को मिलाएं और उन्हें रिश्ते की अहमियत समझाएं।
 बच्चों को सप्ताह में एक दिन बुजुर्ग रिश्तेदारों के साथ अकेले मंदिर जानें दें।
 पार्क में खेलने के लिए भेजें।
दादा या दादी की मौत के बारे में बच्चों को कैसे बताएं
बच्चे को सीधी तरह बताएं कि, ‘मुझे आपसे बहुत दुखद बात बतानी है। दादाजी पिछले कुछ समय से बहुत बीमार थे और अब उनका निधन हो गया है। बच्चे को बताएं कि जन्म लेने की तरह, मरना भी जीवन चक्र का एक हिस्सा है। ग्रैंड पैरेंट्स का बच्चों के लिए उपयोगिता को देखते हुए अमेरिका सहित कई देश में ग्रैंड पैरेंट्स डे मनाया जाने लगा है। लोगों को उनके दादा-दादी या नाना-नानी के करीब लाना।
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