डाइट खाना खाने से सिर्फ 70 फीसद ही पोषण की प्राप्ति होती है 30 फीसद पोषण की कमी रहेती है, विटामिन बी12 और डी3 की कमी टॉप पर - सर्वे

आप ये सोच कर डाइट खाते हैं कि उससे शरीर को पर्याप्त पोषक तत्व मिलते हैं. लेकिन ताजा रिसर्च के मुताबिक उससे मात्र 70 फीसद ही पोषण की प्राप्ति होती है. इस तरह 30 फीसद पोषण की कमी का अंतर उजागर हुआ है.

Update: 2021-09-10 09:52 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। क्या आपकी डाइट आपके शरीर की पोषण जरूरत को पूरा करती है? हम अक्सर सोचते हैं कि सब्जियों, अनाजों और फलों से भरपूर डाइट हमारे पोषण की कमी को पूरा करने के लिए काफी है. लेकिन एक ताजा रिसर्च से खुलासा हुआ है कि भारतीय डाइट से 70 फीसद तक ही पोषक तत्व मिल सकते हैं.

30 पोषण से खाली है आपके भोजन की थाली
मंगलवार को जारी सर्वे के मुताबिक 10 में से 9 डॉक्टरों और न्यूट्रिशनिस्टों ने माना है कि औसत रोजाना भारतीय डाइट मात्र 70 फीसद ही पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करती है. नतीजे राष्ट्रीय स्तर पर किए गए 220 डॉक्टरों और न्यूट्रिशनिस्ट के सर्वे पर आधारित हैं. सर्वे से भारत के सभी जोन्स में शरीर के लिए 100 फीसद पोषण की जरूरतों को पूरा करने में चिंताजनक गैप का पता चलता है. करीब 90 फीसद डॉक्टरों और न्यूट्रिशनिस्ट ने कम से कम 30 फीसद औसत दैनिक डाइट में पोषण के अंतर पर सहमति जताई यहां तक कि ये मामला उन सूबों में भी देखा गया है जहां प्रमुखता से गैर वेजेटेरियन फूड्स का सेवन किया जाता है.
विटामिन बी12 और डी3 की कमी टॉप पर
सर्वे से ये भी पता चला कि देश भर में औसत रोजाना की डाइट में विटामिन बी12 और डी3 की कमी टॉप पर है. उसके बाद जिंक, आयरन, कैल्शियम, फोलिक एसिड और विटामिन सी की बारी आती है. 73 डॉक्टरों और न्यूट्रिशिनस्टों का कहना है कि रोजाना मल्टीविटामिन-मल्टीमिनरल सप्लीमेंट्स की डोज से कमी को पूरा किया जा सकती है. फिजिशियन डॉक्टर जेनम पी मेहता कहते हैं, "इस सर्वे से चौंकानेवाली सच्चाई सामने आई है: रोजाना की औसत डाइट हमेशा आपके शरीर की पोषण आवश्यकता को पूरा नहीं कर सकती. मल्टीविटामिन- मल्टीमिनरल सप्लीमेंट रोजाना शामिल करने से पोषण के बीच की खाई को पाटा जा सकता है और अधिक से अधिक ऊर्जा और इम्यूनिटी लेवल आपके शरीर को उपलब्ध कराया जा सकता है." सर्वे में बताया गया कि कोविड-19 ने लोगों के दिमाग पर सेहत की प्राथमिकता को उजागर कर दिया है. लेकिन, पोषक तत्वों की रोजाना जरूरतों की पूर्ति को बेहद आवश्यक के तौर पर देखा जाना चाहिए, न कि सिर्फ एक अतिरिक्त फायदे के तौर पर


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