नॉइज पॉल्यूशन से पौधों का विकास रुकता है और बढ़ता है तनाव: नई रिसर्च में दावा
नई रिसर्च में दावा
जीव-जंतुओं पर शाेर का असर हाेता है, यह बात ताे वैज्ञानिक अध्ययनाें में कई बार साबित हाे चुकी है। इसमें भी काेई संदेह नहीं था कि जीवाें पर असर हाेने के कारण पाैधाें के पॉलिनेशन (परागण) की प्रक्रिया बाधित हाेती है और वनस्पति संसार इससे प्रभावित हाेता है। बेसिक एंड एप्लाइड इकाेलाॅजी जर्नल में प्रकाशित हाल में हुए अध्ययन में शाेर प्रदूषण का पाैधाें के विकास पर सीधे असर का खुलासा हुआ है। तेहरान की शाहिद बहश्ती यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञानी अली अकबर घाेतबी रवांडी ने शाेर से पाैधाें के प्रभावित हाेने काे लेकर अध्ययन किया है।
ईरानी वैज्ञानिक ने शहरी माहाैल में बहुतायत में पाए जाने वाले दाे पाैधाें गेंदा (फ्रेंच मेरीगाेल्ड) और स्कारलेट सेज काे अपने लैब में उगाया। एक ही वातावरण में दाे महीने उगाए जाने के बाद उन्हें दाे वर्गों में बांटा गया। एक समूह काे दिन में 16 घंटे तक तेहरान के व्यस्त यातायात के 73 डेसिबल के शाेर के बीच रखा गया। दूसरे समूह काे शांत माहाैल में रखा गया। 15 दिन बाद दाेनाें से अध्ययन के लिए सैम्पल लिया गया।
यातायात के शाेर में रहे पाैधाें पर इसका असर देखा जा सकता था। उनके पत्ताें के एनालिसिस से जाहिर हाे रहा था कि वे पीड़ित हैं। पाैधाें मेें हाइड्राेजन पेरॉक्साइड और मैलाेनडियाल्डिडाइड जैसे केमिकल्स की ज्यादा मात्रा में माैजूदगी तनाव का संकेत दे रही थी। शांत वातावरण में उग रहे पाैधाें की तुलना में शाेर के बीच रहे स्कारलेट सेज के सैंपल में मैलाेनडियाल्डिडाइड दाेगुना और फ्रेंच मैरीगाेल्ड के सैंपल में तीन गुना था।
वैज्ञानिकाें की टीम ने पाया कि शाेर में रखे पाैधाें में स्वस्थ विकास और वृद्धि करने वाले हार्मोन्स का स्तर भी बेहद कम हाे गया था। तनाव पैदा करने वाले दाे हार्मोन्स जासमाेनिक एसिड और एब्सिसिक एसिड का स्तर ज्यादा था। यह हार्मोन्स कीटाें के हमले काे राेकने और अल्कलाइन (क्षारीय) मिट्टी या बहुत कम तापमान की स्थितियाें से निपटने के लिए ईजाद हाेते हैं। शाेर प्रदूषण वाले पाैधाें के सैंपल की पत्तियाें का वजन भी कम था।
पौधों के कान नहीं होते, पर शोर के वाइब्रेशन से वे सब महसूस करते हैं
अध्ययन से सामने आया है कि भले ही पाैधाें के कान नहीं हाेते, लेकिन यातायात के शाेर से हाेने वाले वाइब्रेशन से उनके भीतर तनाव की प्रतिक्रिया उसी तरह की हाेती है जैसी सूखा-अकाल के हालात में या मिट्टी के अल्कलाइन या भारी धातु से युक्त हाेने पर हाेती है। क्या सभी तरह का शाेर प्रदूषण सभी प्रजातियाें काे एक ही तरह से प्रभावित करता है?
शहराें में अगर यातायात का शाेर हाेता है ताे जंगल या प्रकृति भी खामाेश कहां रहती है। ऊंचे पर्वतीय इलाकाें के घास मैदान आंधी के कटु शाेर का सामना करते हैं। गर्जना करते हुए जल प्रपाताें के आसपास भी वनस्पति हाेती है। वैज्ञानिकाें का कहना है कि हाे सकता है कि पाैधाें की कुछ प्रजाति इस शाेर से निपटने का मैकेनिज्म विकसित कर लेती हाे। यह फिलहाल अभी रहस्य है।