बच्चों की उम्र के अनुसार नींद होनी चाहिये। अगर यह कम होती है तो उन्हें अनेक प्रकार की बीमारियों का खतरा बना रहता है। इसलिए अगर आपके बच्चे को भी पर्याप्त नींद नहीं मिलती तो उसकी आदत बदल दें। रात में पर्याप्त नींद नहीं लेने वाले बच्चों को टाइप 2 मधुमेह होने का खतरा अधिक होता है। अनुसंधानकर्ताओं ने नौ से 10 आयुवर्ग के 4525 बच्चों के शारीरिक माप उनके रक्त के नमूने और प्रश्नावली आंकड़ा एकत्र किया। उन्होंने पाया कि जो बच्चे अधिक देर तक सोते हैं उनका वजन अपेक्षाकृत कम होता है। नींद के समय का इनसुलिन इनसुलिन प्रतिरोधक और रक्त में ग्लुकोज के साथ विपरीत संबंध है। यानी यदि नींद का समय अधिक होगा तो इनसुलिन इनसुलिन प्रतिरोधक और रक्त में ग्लुकोज का स्तर कम होगा। स्वास्थ्य सेवा के अनुसार 10 साल के बच्चे को 10 घंटे की नींद मिलनी चाहिये। बचपन में पर्याप्त नींद के संभावित लाभों का फायदा युवावस्था में स्वास्थ्य को मिल सकता है।
वहीं बच्चों में चिढ़िचढापन और अनेक तरह की बीमारियां भी मात्र नींद पूरी नहीं होने के कारण भी होती हैं। एक शोध में कहा कि एडीएचडी के लक्षण 70 फीसदी ऐसे बच्चों में पाए गए जिन्हें नींद आने में दिक्कत होती है। प्रमुख शोधकर्ताओं के अनुसार सोने के समय की नियमित आदतों में सुधार से एडीएचडी पीड़ित बच्चों में खास अंतर लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि शोधकर्ताओं ने संकेत दिया कि एडीएचडी ऐसे बच्चे जिनकी दिनचर्या एक सी होती है वे सोते समय कम परेशान रहते हैं और आसानी से सो जाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया जिन बच्चों में अच्छी आदतें होती है वे रात में सोते समय आम तौर पर बहस नहीं करते और लंबी व अच्छी नींद लेते हैं जबकि दिन में वे ज्यादा सतर्क रहते हैं व कम सोते हैं।
उन्होंने कहा यहां तक कि यदि आप अच्छी तरह से नहीं नींद लेते हैं तो आप एडीएचडी की शिकायत के बगैर भी अच्छी तरह से ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएंगे।हमारा बॉडी क्लॉक जो हमें सोने के संकेत देती है वह दिन के उजाले तापमान व भोजन के समय जैसे बाहरी संकेतों से प्रभावित होती है। उन्होंने कहा अगर आपका सेट रूटीन है जैसे- यदि आप ब्रश करते हैं और फिर पुस्तक पढ़ते हैं तो आपका शरीर इस रूटीन का आदी हो जाता है और आपके इस रूटीन के अनुसार ही आपको सोने की आवश्यकता महसूस होने लगती है।