जानिए कड़ाही में भोजन करने की क्यों नहीं दी जाती सलाह
कई बार आपने बड़े बूढ़ों के मुंह से सुना होगा कि कड़ाही में भोजन नहीं करना चाहिए। कहते हैं कि अगर कुंआरे लोग कड़ाही में खाना खाएं, तो उनकी शादी में बारिश होती है,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कई बार आपने बड़े बूढ़ों के मुंह से सुना होगा कि कड़ाही में भोजन नहीं करना चाहिए। कहते हैं कि अगर कुंआरे लोग कड़ाही में खाना खाएं, तो उनकी शादी में बारिश होती है, वहीं शादीशुदा लोगों को जीवन भर आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। इसी डर से लोग आज तक कड़ाही में खाने से परहेज करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कड़ाही में ,खाना ना खाना सिर्फ कहावत नहीं है , बल्कि इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है। इसे हमारी सेहत से जोड़कर देखा गया है। आइए जानते हैं इसके बारे में-
राख से धोते थे बर्तन-
पहले के समय में न तो स्टील के बर्तन थे, न ही बर्तन धोने के लिए डिटर्जेंट या लिक्विड। उस समय ज्यादातर लोग लोहे की कड़ाही का इस्तेमाल करते थे। चावल या अन्य खाना पकाने के बाद उसमें जलने या चिकनाई के निशान रह जाते हैं। इससे बचने के लिए कड़ाही को तुरंत पानी में डाल दिया जाता था, ताकि बर्तन में कोई जंग या ग्रीस न बचे। इसके बाद इसे राख या मिट्टी से साफ किया जाता था। लेकिन आज राख का इस्तेमाल नहीं होता, ऐसे में लोहे की कड़ाही में चिपकी हुई गंदगी पेट तक जाती है, जिससे व्यक्ति बीमार हो जाता है।
चिकनाई होने की संभावना-
अगर खाना पकाने के तुरंत बाद कड़ाही से खाना नहीं हटाया जाता, तो बर्तन चिकना हो जाता है। ऐसे में राख और मिट्टी से भी इसकी चिकनाई नहीं जाती, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होती है।
खराब हो जाता है पेट
चिकनाई लगी कड़ाही में ,खाना खाने से पेट खराब होने की संभावना ज्यादा रहती है। भरपूर सफाई के बावजूद भी कड़ाही में पिछले दिन के खाने के अंश चिपके रह ही जाते हैं। ऐसे में अगर आप कड़ाही में भोजन करते हैं, तो ये अंश पेट में जाकर इंसान का पेट खराब कर देते हैं।
वैज्ञानिक तथ्य को दे दिया मान्यता का रूप-
उस समय यह बात प्रचलित हुई कि जो कुंवारे लोग कड़ाही में खाना खाएंगे, उनकी शादी में बारिश होगी और शादीशुदा लोगों को आर्थिक तंगी से जूझना पड़ेगा। वैज्ञानिक तथ्य को मान्यता का रूप दे दिया गया, ताकि लोग कड़ाही में खाना खाने से बच सकें। हालांकि, लोग आज तक इसे मानते आ रहे हैं और कड़ाही में भोजन करने से परहेज करते हैं।