भारत को विश्व की डायबिटीज़ राजधानी कहा जाता है. सात करोड़ से अधिक भारतीय डायबिटीज़ से पीड़ित हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुमान के मुताबिक़ यही ट्रेंड रहा तो वर्ष 2030 तक भारत में डायबिटीज़ पीड़ितों की संख्या नौ करोड़ अस्सी लाख का आंकड़ा पार कर लेगी. शरीर में इंसुलिन का उत्पादन कम होने के चलते होने वाली यह बीमारी विकसित देशों के निवासियों के मुक़ाबले हम भारतीयों को औसतन 10 वर्ष पहले अपने गिरफ़्त में ले लेती है. वैसे तो डायबिटीज़ शरीर में कई केमिकल चेंजेस का कारण बनती है. इसके कई ख़तरे भी हैं, पर हार्ट फ़ेलियर और मैक्युलर इडिमा दो बड़े ख़तरे हैं. इस वर्ल्ड डायबिटीज़ डे आइए जानते हैं इन दोनों ख़तरों के बारे में.
डायबिटीज़ और हार्ट फ़ेलियर
डायबिटिक कार्डियोमायोपैथी से हार्ट फ़ेल हो सकता है. यह एक प्रोग्रेसिव कंडिशन है, जिसमें दिल पूरे शरीर में पहुंचाने लायक ब्लड पम्प नहीं कर पाता. टाइप 2 डायबिटीज़ मरीज़ों में हार्ट फ़ेल होने का ख़तरा उन लोगों की तुलना में ढाई गुना अधिक होता है, जिन्हें यह रोग नहीं होता. इसके अलावा क्रोनिक हार्ट फ़ेलियर के 25% मरीज़ों को डायबिटीज़ की समस्या होती है.
दिल्ली में एम्स के कार्डियोलॉजी के प्रोफ़ेसर डॉ अंबुज रॉय कहते हैं,“हमें डायबिटीज़ के ख़तरों को मैनेज करने पर काफ़ी ध्याना देने की ज़रूरत है, वर्ना आगे चलकर यह बहुत तक़लीफ़ दे सकती है. डायबिटीज़ के चलते दिल की बीमारियों का ख़तरा कई गुना बढ़ जाता है. क्रोनिक हार्ट फ़ेलियर से जूझ रहे 25 फ़ीसदी मरीज़ डायबिटीज़ का शिकार होते हैं. गंभीर हार्ट फ़ेलियर के चलते अस्पताल में भर्ती 40 फ़ीसदी मरीज़ों को डायबिटीज़ की बीमारी होती है. इसलिए हमें डायबिटीज़ और हार्ट फ़ेलियर के संबंध को जानना बेहद ज़रूरी है. इसके साथ-साथ हमें डायबिटीज़ के रोगियों में हार्ट फ़ेलियर के लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए.’’
डायबिटीज़ के रोगियों में हार्ट फ़ेलियर के कुछ लक्षण हैं: सांस लेने में तक़लीफ़ होना, लगातार थकान और सुस्ती, अनियंत्रित ग्लूकोज स्तर, टखनों, पैरों और पेट में दर्द होना.
डायबिटीज़ और डायबिटिक मैक्युलर इडिमा
डायबिटिक मैक्युलर इडिमा (डीएमई) डायबिटिक रेटिनोपैथी की सबसे आम समस्या है. यह तब होता है, जब क्षतिग्रस्त रक्तवाहिकाओं में सूजन आ जाती है. इससे रक्त वाहिकाएं रिसती रहती हैं और रेटिना के मैक्युला में पहुंच जाती है. इससे नज़र कमज़ोर हो जाती है. धुंधला नज़र आता है. एक निश्चित दूरी से देखने में मुश्क़िल होती है. यह 35-65 साल के कामकाजी वयस्कों में दृष्टिहीनता का प्रमुख कारण बनता है. डायबिटीज़ के किसी भी रोगी को डायबिटिक रेटिनोपैथी होने का ख़तरा होता है. डायबिटीज़ के शिकार 3 में से 1 व्यक्ति को डायबिटिक रेटिनोपैथी होती है. यही नहीं, डायबिटीज़ के 10 में से 1 रोगी को दृष्टिहीनता का ख़तरा होता है.
डॉ राजवर्धन आज़ाद, सीनियर कंसल्टेंट विट्रिओरेटिनल सर्जन, नई दिल्ली के एम्स के डॉ आरपी सेंटर के पूर्व चीफ़, ऑल इंडिया कलीजियम ऑफ़ ऑप्थैलमोलॉजी के प्रेसिडेंट, इंडियन आरओपी सोसाइटी के प्रेसिडेंट और सार्क अकैडमी ऑफ़ ऑप्थैलमोलॉजी के सेक्रेटरी कहते हैं,‘‘मेरे पास हर महीने आनेवाले कुल मरीज़ों में क़रीब 40 फ़ीसदी को डायबिटिक मैक्युलर इडिमा होता है. इस बीमारी से जूझ रहे 50% मरीज़ रेटिना में गड़बड़ी के शिकार होते हैं. जब वे हमारे पास आते हैं, तब तक उनकी बीमारी एडवांस्ड स्टेज पर पहुंच चुकी होती है. डायबिटीज़ से जूझ रहे रोगियों को अन्य आबादी की तुलना में दृष्टिहीनता का ख़तरा 25 फीसदी अधिक होता है. यह स्थिति मरीज़ों के जीवन के कामकाजी वर्षों में प्रभाव डालती है. इससे उन पर सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से भी असर पड़ता है. इसलिए इन लक्षणों को किसी भी स्थिति में नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए और मरीजों को अपनी नियमित जांच करानी चाहिए.’’
डीएमई के कुछ आम लक्षण हैं: आंखों के विज़न (दृष्टि) के केंद्र में धुंधलापन, ब्लाइंड स्पॉट या धब्बों का बढ़ जाना. सीधी लाइन का लहरदार दिखना. रंग धुंधले नज़र आना या रंगों को समझने में कठिनाई होना. पढ़ने, लिखने, ड्राइविंग करने, चेहरों को पहचानने की क्षमता पर असर होना.