अगर ख़त्म करना है टीबी का प्रभाव, तो मरीज़ों के साथ न हो भेदभाव

Update: 2023-06-13 13:40 GMT
टीबी मरीजों को भेदभाव नहीं, आपके सहयोग की दरकार है
टीबी एक संक्रामक बीमारी है. हालांकि इसका इलाज उपलब्ध है, पर समाज में इसको लेकर अब भी एक तरह का डर है. यह डर कहीं न कहीं इसके मरीज़ों के साथ भेदभाव का कारण बनता है. इस बात को समझने के लिए हमने ख़ुद टीबी के तीन मरीज़ों से बातचीत की. उससे यह बात सामने आई कि टीबी के मरीज़ और उनके परिजन सामाजिक भेदभाव से इतने डरे हुए होते हैं, कि वे लोगों को इस बारे में बताना ही ठीक नहीं समझते.
केस#1: होशंगाबाद निवासी राघवेन्द्र तिवारी (परिवर्तित नाम) को अप्रैल 2021 में खांसी, बुखार की शिकायत हुई. जांच कराने पर पता चला कि कोरोना वायरस का संक्रमण है. स्थिति ख़राब होने पर मई में हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा. कोविड की रिपोर्ट मई में निगेटिव आने के बावजूद जब तबीयत में सुधार नहीं हुआ तो जून में भोपाल में इलाज शुरू हुआ. तब संक्रमण से फेफड़ों के पत्थर के समान कठोर होने की जानकारी एक निजी अस्पताल के डॉक्टर ने दी. बाद में एम्स में इलाज के दौरान विस्तृत जांच से पता चला कि कोविड की वजह से टीबी हो गई है. टीबी का इलाज शुरू होने के बाद भले ही तबीयत में सुधार होने लगा, लेकिन राघवेन्द्र और उनके परिवार के सदस्यों ने किसी भी तरह के भेदभाव के डर से तय किया कि वह इसके बारे में किसी को नहीं बताएंगे, बल्कि रिश्तेदारों या जानने वालों को वह सिर्फ़ लंग्स इंफ़ेक्शन या पोस्ट कोविड समस्या ही बताएंगे.
केस#2: पिपरिया निवासी 56 वर्षीय सुरेश कुमार (परिवर्तित नाम) को सांस में तक़लीफ़ होने के कारण जब हॉस्पिटल में एडमिट किया गया तब शुरू में हार्ट प्रॉब्लम के बारे में पता चला. आख़िर में उन्हें डायबिटीज़ के कारण टीबी का संक्रमण होने की जानकारी मिली. टीबी के बारे में पूरी जानकारी न होने तथा लोगों द्वारा किए जाने वाले भेदभाव पूर्ण व्यवहार से बचने के लिए परिवार ने तय किया कि वह इस बीमारी के बारे में किसी को नहीं बताएंगे और ज़्यादा लोगों तक बात न पहुंचे इसलिए नज़दीकी स्वास्थ्य केन्द्र से टीबी की दवा लेने के बजाय दूसरे शहर में अपनी बेटी के घर के नजदीक स्थित स्वास्थ्य केन्द्र से दवा (डॉट) ली. सुरेश और उनका परिवार जानता था कि अगर उन्होंने अपने नज़दीकी या जानने वालों को इस बारे में बताया तो वह उनके संग दूरी बनाएंगे. बीमारी के ठीक होने के बाद भी उनके संग भेदभाव करेंगे.
केस#3: रागिनी ठाकुर (परिवर्तित नाम) को बच्चे के जन्म के कुछ साल बाद टीबी की शिकायत हुई. उसने इस बारे में सिर्फ़ अपने पति को बताया और दवाई लेना शुरू कर दिया. पति-पत्नी ने तय किया कि वह इस बारे में किसी को नहीं बताएंगे और जब तक ठीक नहीं हो जाती किसी के घर एहतियातन नहीं जाएंगी. उन्होंने यह निर्णय इसलिए लिया कि लोग उन्हें ठीक होने के बाद भी अपने घर बुलाने में संकोच करेंगे और उनके साथ बर्तन अलग करने, दूर बैठने, खाना संग न खाने जैसा व्यवहार करेंगे.
क्या है टीबी को लेकर इस डर की वजह?
आपने देखा सुना होगा कि टीबी हो जाने पर मरीज़ों के साथ कुछ इस तरह का व्यवहार किया जाता है.
-मरीज़ के बर्तनों को अलग करना.
-उसके संग बातचीत से कटने लगना.
-मां को अगर टीबी है तो बच्चे को उससे दूर कर देना, दूध न पिलाने देना.
-मरीज़ को घर के बाक़ी लोगों से दूर कर देना.
अब सोचिए भला कौन अपने साथ इस तरह का व्यवहार किया जाना चाहेगा. यही कारण है कि लोग टीबी की बीमारी को छुपाना ज़्यादा सही समझते हैं, जो कि ग़लत है, पर ज़्यादातर मामलों में होता यही है. कहते हैं कि अगर दर्द या तक़लीफ़ को बांट लिया जाए तो वह कम हो जाती है, लेकिन टीबी की बीमारी के साथ ऐसा नहीं है. अब भले ही जागरूकता के कारण टीबी चैंपियन अपनी संघर्ष की कहानी को लोगों के साथ साझा करने के लिए खुलकर सामने आने लगे हैं, लेकिन अब भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो परिवार के बुरे बर्ताव, शादी टूटने, लोगों के दूरी बनाने, नौकरी छूटने जैसे डरों की वजह से टीबी की बीमारी के बारे में बात नहीं करते हैं. जबकि वास्तविकता यह है कि फेंफड़ों की (पल्मोनरी) टीबी का ही संक्रमण फैलने का ख़तरा 15 दिन से दो माह तक रहता है क्योंकि अगर कोई टीबी का मरीज छींकता है, या खांसता है, तो इसके ड्रॉपलेट पांच फ़ीट तक जाते हैं. ऐसे में, हम मास्क लगाकर और दूरी बनाकर टीबी के संक्रमण को रोक सकते हैं, और उसे ख़त्म कर सकते हैं. इसके अलावा आंख, आंत, मस्तिष्क, हड्‌डी, त्वचा यानी एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी के फैलने का ख़तरा नहीं होता है. फिर भी लोग इससे जुड़ी भ्रांतियों (स्टिगमा) के कारण इसकी चर्चा नहीं करना चाहते हैं.
टीबी क्या है, कैसे फैलती है और कैसे रोकें?
हालांकि हमने पिछले लेख में टीबी के संक्रमण के बारे में बात की थी, पर आज दोबारा उसे दोहराना चाहेंगे. इसका केवल एक ही कारण है कि जागरूकता फैलानेवाली बातें इतनी बार बताई जानी चाहिए कि वे जाने-अनजाने हमारे मस्तिष्क में बैठ जाएं. तो टीबी की वजह है शरीर में मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस बैक्टीरिया का संक्रमण होना. यह बैक्टीरिया सीधे तौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है. फेफड़ों के बाद यह बैक्टीरिया शरीर के दूसरों अंगों को प्रभावित करने लगता है.
रही बात टीबी के संक्रमण की तो संक्रमित इंसान के मुंह से निकली लार की बूंदों में टीबी के बैक्टीरिया होते हैं जो संक्रमण फैलाते हैं. मरीज के छींकने, खांसने, बोलने और गाना गाने से टीबी का बैक्टीरिया सामने वाले इंसान को संक्रमित कर सकता है. ऐसी स्थिति में अपना बचाव करें.
टीबी का हर संक्रमण खतरनाक नहीं होता, बच्चों में टीबी के मामले और फेफड़ों के बाहर होने वाला टीबी का संक्रमण अधिक परेशान नहीं करता. शरीर का इम्यून सिस्टम बैक्टीरिया को ख़त्म कर देता है.
टीबी का असर तब दिखता है जब इम्यून सिस्टम कमज़ोर पड़ता है. जैसे-मरीज़ डायबिटीज़ से जूझ रहा है या उसमें पोषक तत्वों की कमी हो गई है या फिर तम्बाकू और अल्कोहल का अधिक सेवन करता है. ऐसी स्थिति में संक्रमण का ख़तरा बढ़ता है.
टीबी के गंभीर मामलों में गले में सूजन, पेट में सूजन, सिरदर्द और दौरे भी पड़ सकते हैं. टीबी का पूरी तरह से इलाज संभव है. इसलिए ऐसा होने पर दवाएं समय से लें और कोर्स अधूरा न छोड़ें.
डर नहीं सावधानी की ज़रूरत है
अगर आपकी जानकारी में कोई व्यक्ति ऐसा है, जिसे टीबी हो गई है तो हमें घबराने की आवश्यकता नहीं है बल्कि सतर्कता बरतने की आवश्यकता है चूंकि टीबी हवा के माध्यम से फैलती है, इस बीमारी के संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपाय है कि टीबी से ग्रसित व्यक्ति खांसते या छींकते समय मास्क पहने या अपने मुंह को रूमाल या कपड़े से ढके. इसके अलावा एक बार जब टीबी से प्रभावित व्यक्ति का इलाज शुरू हो जाता है, तो वे कुछ ही हफ्तों में गैर संक्रामक हो जाते हैं, यानी वे संक्रमण नहीं फैला सकते. सही दवाएं, सही संयोजन और सही खुराक लेना महत्वपूर्ण है. इसी के साथ घरों को हवादार रखना भी ज़रूरी है. टीबी केवल हवा से फैलती है. न कि भोजन, बर्तन और पानी साझा करने से.
कैसे पहचानें टीबी के रोगी को?
पल्मोनरी टीबी: यदि किसी को लगातार खांसी हो, जो घरेलू व अन्य दवाओं से ठीक नहीं हो रही हो तो उसके लिए डॉक्टर से संपर्क करने की सलाह दी जाती है. इस बीमारी में रोगी को लगातार खांसी आती है. इसके अलावा लगातार खांसी के साथ ख़ून आना, शरीर में थकान रहना, भूख कम लगना, व्यक्ति को ठंड लग कर पसीने के साथ बुखार आना, कई लोगों में शरीर में गांठे भी देखने को मिलती हैं.
एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी: एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी के मामले में, व्यक्ति में ऐसे लक्षण विकसित होते हैं जो प्रभावित अंग पर ही होते हैं. उदाहरण के लिए आंतों की टीबी में व्यक्ति को पेट में दर्द या दस्त का अनुभव हो सकता है, या फिर किसी विशेष जोड़ की टीबी में व्यक्ति को उस अंग में दर्द और सूजन का अनुभव हो सकता है. इसके अलावा शाम को बुखार, भूख न लगना और वजन कम होने की शिकायत भी होती है.
इस बारे में क्या कहना है विशेषज्ञों का
टीबी के मरीज या उसके परिवार के साथ भेदभाव पूर्ण बर्ताव करने पर उसके बेहद नकारात्मक मानसिक प्रभाव हो सकते हैं, कहती हैं लखनऊ की साइकोलॉजिस्ट डॉ नम्रता सिंह. डॉ सिंह आगे बताती हैं,‘‘ऐसा देखा गया है कि ऐसे मरीजों में सोशल फ़ोबिया डेवलप होने लगता है. ऐसे में वो घर से बाहर जाने, लोगों से घुलने-मिलने, बात करने में असहज महसूस करने लगते हैं. उनको लगने लगता है कि लोगों को उनकी बीमारी के बारे में पता लगेगा तो लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे. ऐसे में उनमें डिप्रेशन होने और एंग्जाइटी बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है. किसी भी तरह की बीमारी होने पर सबसे ज़्यादा प्रभाव जिन लोगों पर पड़ता है, वो है उनका परिवार. ऐसे में इस तरह की बीमारियां जिसे छुपाने की ज़रूरत पड़ती है तो घर के हर सदस्य को ये दुविधा रहती है कि वे बीमारी के बारे में बताएं या नहीं. इसकी वजह से उनमें एंग्जाइटी और डिप्रेशन की आशंका बढ़ जाती है.’’
टीबी के मानसिक प्रभाव पर डॉ मनोज वर्मा, ज़िला टीबी अधिकारी, भोपाल का भी ऐसा ही कहना है. ‘‘टीबी को लेकर आज भी समाज में कुरीतियां (स्टिगमा) बरकरार है, लोग अभी भी कोशिश करते हैं कि इसके बारे में लोगों को न बताएं क्योंकि अगर वह बताएंगे तो उन्हें कई तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए हम भी मरीजों को जानकारी उनकी इज़ाज़त के बिना किसी से साझा नहीं करते हैं. जबकि सतर्कता बरतकर टीबी के मरीज को सहयोग किया जाए तो मानसिक संबल से वह जल्दी ठीक हो सकता है.’’
विशेषज्ञों की राय और वैज्ञानिक कारणों से एक बात तो तय हो गई है कि टीबी के मरीज़ों को भेदभाव नहीं, बल्कि संवेदना और सहयोग की दरकार होती है. टीबी को ख़त्म करने का केवल एक यही रास्ता है.
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