उत्तराखंड के गांव अल्मोड़ा में बनी बाल मिठाई आखिर कैसे हुई वर्ल्ड फेमस

आखिर कैसे हुई वर्ल्ड फेमस

Update: 2023-08-18 07:40 GMT
कुछ ऐसी जगहें, चीजें और खाद्य पदार्थ होते हैं, जो अपने शहर को लोकप्रिय बना देते हैं। अब डल लेक सुनकर कैसे सबको कश्मीर याद आता है। पोहा कहें, तो लोग इंदौर की बात करते हैं। बारिश और वड़ा पाव का मतलब है मुंबई। इसी तरह उत्तराखंड की बात करते ही सुंदर पहाड़ और बाल मिठाई की याद आती है।
जी हां, बाल मिठाई जो मुंह में रखते ही घुलने लगती है। एक ऐसा चॉकलेट फज जिसमें चॉकलेट का नाम-ओ-निशान ही नहीं होता। एक ऐसी मिठाई जिसकी सफेद गोलियां देखकर आपको होम्योपैथिक दवाइयां याद आती हैं, लेकिन वो असल में खसखस होता है। बाल मिठाई का नाम जब भी लिया जाता है, तो लोगों की आंखें बड़ी हो जाती हैं और सब उसके रिच और क्रीमी टेक्सचर और स्वाद को याद करते हैं।
अब तो यह मिठाई कई जगहों पर मिलने लगी है, लेकिन इसे बनाने वाला उत्तराखंड का गांव अल्मोड़ा था। अल्मोड़ा को आज भी कुछ लोग बाल मिठाई वाले शहर के नाम से जानते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि यह मिठाई किसने बनाई थी और आखिर अल्मोड़ा में कैसे इसे बनाने की शुरुआत हुई? चलिए इस आर्टिकल में विस्तार से जानें बाल मिठाई के फेमस होने की कहानी।
कहां से आई बाल मिठाई?
कई विद्वान ऐसा मानते हैं कि यह मिठाई सदियों पहले नेपाल से उत्तराखंड पहुंची थी। वे कहते हैं कि 7वीं और 8वीं सदी में यह नेपाल से उत्तराखंड आई और फिर से अल्मोड़ा में बनाया गया। इसे सूर्य देव को प्रसाद के रूप में अर्पण किया जाता था। हालांकि, नेपाल से आने वाली बात का तथ्य किसी के पास नहीं है।
ऐसा माना जाता है कि 20वीं सदी में यह स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय हुई थी। अल्मोड़ा में आज ऐसी कई सारी दुकानें हैं जहां बाल मिठाई बनाई जाती है, लेकिन अल्मोड़ा में मौजूद जोगा लाल शाह की दुकान को इसे प्रसिद्ध करने का श्रेय जाता है।
अल्मोड़ा के जोगा लाला शाह ने कैसे बनाई थी मिठाई?
ऐसा माना जाता है कि 20वीं सदी में इसे अल्मोड़ा में लोकप्रिय बनाने वाले जोगा लाल शाह ही थे। इसके बाद इस मिठाई ने धीरे-धीरे पूरे राज्य में अपनी प्रसिद्धि पाई। जहां तक इसे बनाने की बात है, तो जोगा लाल शाह की एक छोटी-सी दुकान गांव के बीचो-बीच थी। वह मिठाइयां बनाने के लिए जाने जाते थे। चॉकलेट के बढ़ते क्रेज ने उन्हें भी कुछ नया बनाने पर मजबूर किया। हालांकि, कोको बीन्स की जगह उन्होंने इसका अल्टरनेटिव ढूंढने की कोशिश की।
ऐसा माना जाता है कि जोगा लाल जी फालसीनामा नामक गांव से मलाईदार दूध मंगवाते थे और फिर कड़ाही पर उसे घंटों पकाकर उससे खोया तैयार करते थे (घर पर कैसे बनाएं खोया)। यही मिठाई को चॉकलेट जैसा रंग देता था। उन्होंने पहले इस तरह से फज बनाना शुरू किया। इसके बाद, खसखस को चाशनी में डुबोकर मीठी गोलियां तैयार की। जब फज सेट होकर तैयार हो गए, तो उन्होंने मिठाइयों को इन गोलियों में लपेटकर बेचना शुरू किया। देखते ही देखते, लोगों के बीच यह मिठाई पॉपुलर हो गई। जोगा लाल शाह की पांचवी पीढ़ी आज भी अपनी दुकान में बाल मिठाई बनाने का काम करती है।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा से पहुंची इंग्लैंड तक बाल मिठाई
जब यह मिठाई बनकर तैयार हुई, तो उस दौरान बड़े लोगों और ब्रिटिशर्स के बीच काफी लोकप्रिय हुई। इसे लोग बड़ी-बड़ी भेंटों में देने लगे। स्थानीयों के बीच पसंद की जाने वाली इस मिठाई ने धीरे-धीरे इंग्लैंड में भी अपने पैर जमाने शुरू किए। ऐसा माना जाता है कि उस दौर में अंग्रेजों को भी यह मिठाई भा गई थी।
कई अंग्रेज क्रिसमस और न्यू ईयर के लिए इसे गिफ्ट के रूप में जहाज के द्वारा इंग्लैंड तक ले गए। यह भी कहा जाता है कि कुमाऊं के बेताज बादशाह सर हेनरी रैमजे की यह फेवरेट मिठाई हुआ करती थी। इतना ही नहीं, उस वक्त एक छोटे से गांव में बनी यह मिठाई आज अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया जैसे अन्य बड़े-बड़े देशों में पसंद की जाती है (मिठाइयों के अजीबो-गरीब नाम)।
अगर आपने भी कभी इसका मजा न लिया हो, तो एक बार इसे चखकर जरूर देखें। ऑथेंटिक बाल मिठाई खाने के लिए मेरी सलाह है कि आप अल्मोड़ा जरूर जाएं। आपको बाल मिठाई की कहानी जानकर कैसा लगा, मुझे कमेंट करके जरूर बताइएगा। अगर इससे जुड़ी कोई रोचक कहानी आपको पता है, तो भी शेयर करें। यह लेख पसंद आया, तो इसे लाइक और शेयर करें और ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।
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