बैठे-बैठे है हाथ -पैर हिलाने की आदत? तो हो सकते है 'मिसोकिनेशिया' रोग के शिकार
हमारे आसपास बैठा कोई शख्स जब बेवजह उछल-कूद कर रहा हो, बैठे-बैठे बार-बार हाथ या पैर हिलाने लगे तो हमें परेशानी होने लगती है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हमारे आसपास बैठा कोई शख्स जब बेवजह उछल-कूद कर रहा हो, बैठे-बैठे बार-बार हाथ या पैर हिलाने लगे तो हमें परेशानी होने लगती है। कई बार दूसरों की यह हरकत एकाग्रता में खलल डालती है। यह सामान्य बात है। लेकिन दूसरों की शारीरिक अस्थिरता पर कई बार हद से ज्यादा चिड़चिड़े और परेशान हो जाते हैं। यह दरअसल मिसोकिनेशिया' के लक्षण हैं। एक हालिया अध्ययन के अनुसार दूसरों को बेवजह कुलबुलाता देखकर होने वाली तनावपूर्ण संवेदनाएं दरअसल एक तरह की सामान्य मनोवैज्ञानिक घटना है। यह तीन में से एक व्यक्ति को प्रभावित करती है।
क्या है 'मिसोकिनेशिया' ?
'मिसोकिनेशिया' एक मनोवैज्ञानिक विकार है, जिसमें आसपास के लोगों को शारीरिक रूप से अस्थिर देखने पर चिड़चिड़ाहट और गुस्सा हावी होने लगता है।
'मिसोफोनिया' से मिलती-जुलती स्थिति हैः
'मिसोकिनेशिया' को 'हेट्रिड ऑफ मूवमेंट' कहा जाता है यानी व्यग्रता से नफरत करने वाला। इस अजीबोगरीब घटना पर वैज्ञानिकों द्वारा बहुत कम अध्ययन किया गया है। लेकिन इससे ही संबंधित एक स्थिति 'मिसोफोनिया' के शोध में इसका जिक्र किया गया है।
'मिसोफोनिया' एक ऐसा विकार है, जहां कुछ दोहराव वाली आवाजें सुनकर लोग चिढ़ जाते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि मिसोकिनेसिया के लक्षण भी कुछ हद तक 'मिसोफोनिया' के समान हैं, लेकिन यह आमतौर पर ध्वनि से संबंधित होने के बजाय विजुअल से होता है।
बड़ी संख्या में प्रभावित लोगः
प्रमुख अध्ययनकर्ता एवं कनाडा में ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय (यूबीसी) के छात्र सुमीत जसवाल का कहना है कि मिसोकिनेसिया में किसी दूसरे को दोहराव वाली शारीरिक मूवमेंट करते देखकर कर नकारात्मक भावनात्मक प्रतिक्रिया होती है। जैसे कि किसी को बार-बार हाथ या पैर हिलाते देखकर दिमागी रूप से विचलित होना।
हैरानी की बात यह है कि इस विषय पर वैज्ञानिक शोध की कमी है। समझ में सुधार करने के लिए जसवाल और उनके साथी शोधकर्ताओं ने मिसोकिनेसिया पर अपनी तरह का पहला व्यापक अध्ययन किया। इसके निष्कर्ष बताते हैं कि फिडगेटिंग के प्रति बढ़ी संवेदनशीलता कुछ ऐसी है, जिससे बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होते हैं।
एक तिहाई लोगों पर असर देखा गयाः
अध्ययन में 4,100 से अधिक प्रतिभागियों को शामिल किया गया। शोधकर्ताओं ने विश्वविद्यालय के छात्रों और सामान्य आबादी के लोगों के एक समूह में मिसोकिनेसिया के प्रसार को मापा। उन पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन किया और पता लगाया कि संवेदनाएं क्यों प्रकट हो सकती हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक हमने पाया कि लगभग एक तिहाई प्रतिभागियों ने अपने दैनिक जीवन में सामने आने वाले दूसरों के दोहराव, विचित्र व्यवहारों के प्रति कुछ हद तक मिसोकिनेसिया संवेदनशीलता की जानकारी दी। परिणाम इस बात को बताते हैं कि मिसोकिनेसिया संवेदनशीलता सिर्फ नैदानिक आबादी तक सीमित स्थिति नहीं है, सामान्य आबादी में भी बड़े स्तर पर यह स्थिति है। यह एक सामाजिक चुनौती है।