किसान हो गए सावधान इस मौसम में अमरूद में कई तरह की बीमारियां लगने लगती है

इस मौसम में अमरूद में कई तरह की बीमारियां लगने लगती है. विल्ट रोग किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या में से एक है. इस रोग का सबसे पहला लक्षण मानसून की शुरुआत के साथ शुरू होते हैं. हल्के पीले रंग के पत्ते का दिखना, साथ ही तीक्ष्णता और पत्तियों का मुरझाना (एपिनेस्टी ) इत्यादि प्रमुख लक्षण है.

Update: 2021-08-24 10:22 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | अमरूद की खेती कर रहे किसानों के लिए बरसात का मौसम कुछ हद अच्छा भी है तो कुछ हद खतरनाक भी होता है, इस मौसम में अमरूद में कई तरह की बीमारियां लगने लगती है. डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर, बिहार के अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक एवं एसोसिएट डायरेक्टर रिसर्च डॉ एसके सिंह टीवी9 डिजिटल को बताते हैं कि अमरूद की खेती करने वाले किसान इस मौसम में बाग को भगवान भरोसे न छोड़े. विल्ट(wilt) सबसे बड़ी समस्या है. इस रोग का सबसे पहला लक्षण मानसून की शुरुआत के साथ शुरू होते हैं. हल्के पीले रंग के पत्ते का दिखना, साथ ही तीक्ष्णता और पत्तियों का मुरझाना (एपिनेस्टी ) इत्यादि प्रमुख लक्षण है.इस समय पौधे की अवस्था में, कुछ टहनियाँ नंगी हो जाती हैं और नए पत्ते या फूल नहीं निकाल पाती हैं और अंततः सूख जाती हैं. सभी प्रभावित शाखाओं के फल अविकसित, कठोर और पथरीले रहते हैं. बाद में, पूरा पौधा मुरझा जाता है और अंततः मर जाता है.

डाक्टर एस के सिंह बताते हैं कि जड़ें भी जमीन की सतह में सड़ती हुई दिखाई देती हैं और छाल आसानी से तने से अलग हो जाती है. संवहनी ऊतकों में हल्के भूरे रंग का मलिनकिरण (discoloration) भी देखा जाता है. रोगज़नक़ युवा और साथ ही पुराने फल देने वाले पेड़ों पर हमला करता है लेकिन पुराने पेड़ों में इस बीमारी का खतरा बहुत अधिक होता है. अक्सर देखा जाता है की 10 से 15 साल होते होते अमरूद में विल्ट की बीमारी की वजह से बाग उजड़ जाता है.
इस रोग का प्रसार रोग रहित क्षेत्रों में बीमार मिट्टी वाले पौधों की आवाजाही के माध्यम से एवं कम दूरी का फैलाव पानी से होता है. अमरूद के पेड़ की जड़ जब चोट ग्रस्त होती है तो विल्ट रोग की संभावना अधिक हो जाती है.डाक्टर सिंह का कहना है कि बरसात के मौसम में अगस्त/सितंबर के दौरान अधिक वर्षा इस रोग को फैलाने में बहुत सहायक होता है अमरूद के खेत में लंबे समय तक पानी का ठहराव भी इस रोग को फैलाने में सहायक होते है. अधिकतम और न्यूनतम तापमान 23-32oC के साथ 76% की आर्द्रता इस रोग के लिए अनुकूल है.
अमरूद के विल्ट रोग का प्रबंधन कैसे करें?
बगीचे में उचित स्वच्छता द्वारा रोग को नियंत्रित किया जा सकता है. मुरझाए हुए पेड़ों को उखाड़कर जला देना चाहिए और पेड़ के तने के चारों ओर खाई खोदनी चाहिए.
समय पर और पर्याप्त खाद, इंटरकल्चर और सिंचाई द्वारा उचित वृक्ष शक्ति का रखरखाव उन्हें संक्रमण का सामना करने में सक्षम बनाता है.
हल्दी या गेंदा के साथ इंटरक्रॉपिंग करने से अमरूद का मुरझाना बंद हो जाता है. मानसून के दौरान और उसके बाद दिसंबर तक जुताई से बचना चाहिए क्योंकि इससे रोग की घटना बढ़ जाती है.
रोग मिट्टी जनित है, इसलिए खुली सिंचाई की सिफारिश नहीं की जाती है. किस्म प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन करें. रोको एम नामक फफुंदनाशक @2ग्राम/लीटर के घोल से सभी पेड़ों की मिट्टी को भींगा दे.
एक पेड़ को भीगने में कम से कम 20लीटर घोल की आवश्यकता पड़ेगी. 20दिन के बाद पुनः दुहराए. ट्राइकोडरमा को खूब अच्छी तरह से सड़ी गोबर की खाद में बहुगुणित करके प्रति पेड़ 10किग्रा ट्राइकोडरम से उपचारित गोबर की खाद /पेड़ में दे.
Tags:    

Similar News