मच्छरों से होने वाली इस बीमारी को हल्के मेें न लें, जरूरी जानें ये बात

कोरोना काल के दौरान मच्छरों से होने वाली बीमारियों को लेकर सतर्कता बरतनी जरूरी है

Update: 2021-09-07 01:55 GMT

 जनता से रिश्ता वेबडेस्क| कोरोना काल के दौरान मच्छरों से होने वाली बीमारियों को लेकर सतर्कता बरतनी जरूरी है क्योंकि इस सच्चाई को नाकारा नहीं जा सकता है कि दुनियाभर में मच्छरों के कारण होने वाली बीमारियों से हर साल हजारों लोगों की जान चली जाती है. यही कारण है कि प्रशासन ने दवा के छिड़काव से लेकर कई तरह के बचाव के उपायों का प्रबंधन किया है. प्रशासन और लोगों द्वारा मच्छरों से बचने के लिए क्या उपाय किए जाते हैं इस पर दैनिक जागरण में एक रिपोर्ट छपी है. लोकल सर्किल्स (Local Circles) द्वारा किए गए इस सर्वे की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं.

देश के 352 जिलों में 38 हजार से ज्यादा लोगों पर किए गए सर्वे में 70 फीसद ने बताया कि उनके यहां नगर निगमों और पंचायतों ने कभी छिड़काव नहीं किया या साल में बमुश्किल एक या दो बार किया. सोचिए, कोरोना काल में मॉनसून से संबंधित बीमारियों को हम हल्के में ले रहे हैं. निश्चित तौर पर यह चिंताजनक बात है. इस सर्वे में मच्छरों से बचाव के तौर-तरीकों पर भी कई बातें सामने आई हैं. यह स्थिति तब है जब दुनिया मच्छरजनित रोगों से कराह रही है और भारत इससे बड़ा प्रभावित देश माना जाता रहा है.

डेंगू के सालाना इतने करोड़ मामले

हर साल डेंगू के करीब 9.6 करोड़ मामले सामने आते हैं और करीब 40 हजार लोगों की मौत हो जाती है. सर्वे के मुताबिक संक्रामक रोगों की तुलना में मच्छर से 17 गुना अधिक लोग शिकार होते हैं.

सरकार द्वारा छिड़काव पर लोगों की राय

इस सर्वे के दौरान जब लोगों से पूछा गया कि साल में कितनी बार उनके इलाकों में छिड़काव हुआ तो उसमें से 37 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके इलाके में कभी छिड़काव हुआ ही नहीं. वहीं, 33 प्रतिशत लोगों ने कहा कि साल में एक से दो बार

10 प्रतिशत लोग ऐसा मानते हैं कि साल में 3 से 6 बार छिड़काव हुआ है. 8 प्रतिशत का मानना है कि साल में 6 से 12 बार छिड़काव होता है, वहीं 5 प्रतिशत का कहना है कि 12 से ज्यादा बार उनके यहां सरकार द्वारा छिड़काव किया जाता है. सर्वे में 1 प्रतिशत लोग वो भी रहे जिनका जवाब था कि कुछ कह नहीं सकते हैं, छिड़काव हुआ भी है या नहीं.

मच्छरों से बचाव के लिए लोग क्या करते हैं?

1. सर्वे के मुताबिक 5 प्रतिशत लोग प्राइवेट सर्विस द्वारा छिड़काव करवाते हैं.

2. सर्वे में 33 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो रिपेलेंट मशीन, कॉइल या रैकेट का प्रयोग करते हैं.

3. इसमें 15 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो रिपेलेंट लिक्विड, स्प्रे, क्रीम या पैच का इस्तेमाल करते हैं.

4. सर्वे में 1 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वो दोनों विकल्प अपनाते हैं.

5. इसके अलावा 13 प्रतिशत लोग ऐसे भी हैं जो इन सबके अलावा अन्य विकल्प अपनाते हैं.

6. सर्वे में 23 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो पहले दोनों विकल्प अपनाते हैं, मतलब वो रिपेलेंट मशीन, रैकेट रिपेलेंट लिक्विड, स्प्रे, क्रीम या पैच का इस्तेमाल करते हैं.

इनके अलावा सर्वे में 3 प्रतिशत लोग कुछ बता नहीं पाए, 5 प्रतिशत लोग पहले तीनों विकल्प अपनाते हैं. और 3 प्रतिशत है ऐसे हैं जो 1 और 3 विकल्प अपनाते हैं.

मच्छरों से बचाव पर महीने में कितने खर्च करते हैं?

सर्वे में 44 % ऐसे लोग मिले जो 200 रुपये तक मच्छरों से बचाव पर खर्च करते हैं. सर्वे के अनुसार 18 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो महीने में 200 से 500 रुपये मच्छरों से बचाव के लिए खर्च करते हैं. वहीं 12 प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जो 500-1000 रु. इस पर खर्च करते हैं

5 प्रतिशत संख्या 1000-2000 रु. प्रतिमाह मच्छरों से बचाव पर खर्च करने वालों की है. 20 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो इस पर कोई खर्चा नहीं करते हैं. वहीं 1 प्रतिशत ऐसे हैं जो ये बता नहीं पाए कि वो महीने में कितने रु. मच्छरों से बचाव के लिए खर्च करते हैं.

खतरा बड़ा है, सावधानी जरूरी है

जानकार बताते हैं कि सभी संक्रामक बीमारियों की तुलना में 17 प्रतिशत ज्यादा लोग मच्छर व इस तरह के कुछ अन्य कीटों के काटने से होने वाली बीमारियों का शिकार होते हैं. और इनके कारण दुनियाभर में सालाना 7 लाख लोगों की जान चली जाती है. एनाफिलीज मच्छर के कारण होने वाले मलेरिया के दुनियाभर में सालाना 21.9 करोड़ मामले सामने आते हैं. वहीं मलेरिया से सालाना 4 लाख लोगों की जान चली जाती है. और इनमें ज्यादातर 5 साल से कम उम्र के बच्चे होते है.

129 देशों में डेंगू का प्रकोप

रिपोर्ट के मुताबिक, एडीज मच्छर के कारण होने वाला डेंगू सबसे ज्यादा होने वाली संक्रामक बीमारी है. 129 देशों में 3.9 अरब आबादी इसके खतरे की जद में है. चिकुनगुनिया, जीका, येलो फीवर, वेस्ट नाइल फीवर और जापानी इंसेफलाइटिस मच्छरों के कारण होने वाली अन्य बीमारियां है.

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