कोरोना से ठीक हुए बच्चों को व्हाइट फंगस का खतरा, हार्ट और दिमाग पर प्रभाव
भारत के कई राज्यों में व्हाइट फंगस के मामले सामने आए हैं।
भारत के कई राज्यों में व्हाइट फंगस के मामले सामने आए हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ब्लैक फंगस की तुलना में व्हाइट फंगस ज्यादा खतरनाक है क्योंकि यह शरीर के अन्य हिस्सों के साथ-साथ फेफड़ों को भी प्रभावित करता है। इसमें नाखून, त्वचा, पेट, किडनी, मस्तिष्क, यौन अंगर और मुंह भी शामिल है। डॉक्टरों की मानें तो बच्चों को व्हाइट फंगस से ज्यादा खतरा है लेकिन क्यों?
क्या है व्हाइट फंगस
व्हाइट फंगस एक गंभीर फंगल इंफेक्शन है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार व्हाइट फंगस खून, हार्ट, मस्तिष्क, आंखों, हड्डियों या शरीर के अन्य हिस्सों को प्रभावित कर सकता है। जब कमजोर इम्यूनिटी वाला व्यक्ति फंगस वाली जगहों के संपर्क में आता है तो यह इंफेक्शन पैदा होता है। जैसे कि ऑक्सीजन सपोर्ट पर चल रहे कोरोना मरीज का वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सपोर्ट सिस्टम ठीक तरह से सैनिटाइज न हो, तो उसमें जमा फंगस मरीज तक पहुंच सकती है। इसके बाद स्टेरॉइड्स के अधिक इस्तेमाल और ऑक्सीजन सिलेंडर से जुड़े ह्यूमिडिफायर में नल के पानी के इस्तेमाल से भी व्हाइट फंगा का खतरा बढ़ सकता है।
बच्चों को है अधिक खतरा
व्हाइट फंगस ज्यादा खतरनाक माना जाता है क्योंकि यह बच्चों और महिलाओं को संक्रमित करता है। ल्यूकोरिया व्हाइट फंगस का प्रमुख कारण है। यह बीमारी नवजात शिशु में डायपर कैंडीडायसिस के रूप में होती है। इसमें बच्चे की स्किन पर क्रीम कलर के धब्बे दिखने लगते हैं।
व्हाइट फंगस एक तरह का इंफेक्शन है जो कैंडीडायसिस नामक बैक्टीरिया की वजह से होता है। बच्चों और महिलाओं में इस बैक्टीरिया के पनपने के चांसेस ज्यादा होते हैं। यह फंगस कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों पर हमला करता है और बच्चे इस लिस्ट में सबसे पहले आते हैं।व्हाइट फंगस जीभ या यौन अंगों से शुरू होता है जिसकी वजह से जीभ सफेद हो जाती है। इसके बाद यह फेफड़ों, मस्तिष्क और भोजन नली जैसे अन्य अंगों तक पहुंचने लगता है।
क्या है बचने का तरीका
विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना की दूसरी लहर पिछले साल के मुकाबले ज्यादा खतरनाक है और कुछ महीनों बाद इसकी तीसरी लहर भी आएगी। विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि कोरोना की तीसरी लहर बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगी, इसलिए उनमें व्हाइट फंगस या ब्लैक फंगस होने का खतरा भी बढ़ जाएगा।
बच्चों को इस बीमारी से बचाने का पहला तरीका है कि उन्हें कोरोना वायरस से बचाया जाए। इसके बाद बच्चों की इम्यूनिटी को मजबूत करने पर काम किया जाए। यदि कोरोना हो भी गया है, तो ट्रीटमेंट के दौरान स्टेरॉइड्स का ज्यादा इस्तेमाल न किया जाए। जब ऑक्सीजन लेवल गिर जाए और निमोनिया हो, बस तभी स्टेरॉइड्स देने चाहिए। मरीज की हालत में थोड़ा सुधार आने पर स्टेरॉइड्स का सेवन कम कर देना चाहिए ताकि ब्लड शुगर के उतार-चढ़ाव में कोई दिक्कत न आए। इस तरह से बच्चों को ही नहीं बल्कि बड़ों को भी व्हाइट फंगस से बचाया जा सकता है।