चाणक्य नीति: ये 6 प्रकार के विकार मनुष्य की सफलता में हैं बाधा
चाणक्य नीति
Safalta Ki Kunji: चाणक्य की चाणक्य नीति कहती है कि वही व्यक्ति जीवन में मान सम्मान और सफलता प्राप्त करता है जो 6 प्रकार के विकारों पर विजय प्राप्त कर लेता है. गीता के उपदेश में भी भगवान श्रीकृष्ण इन विकारों की अर्जुन से चर्चा करते हुए इनसे मुक्त रहने का संदेश देते हैं. शास्त्रों में इन 6 विकारों को षडरिपु के नाम से जाना गया है.
षडरिपु क्या है?
1-काम
2- क्रोध
3- लोभ
4- मद
5- मोह
6- मत्सर
काम वासना से दूर रहें
विद्वानों की मानें तो व्यक्ति को काम वासना से दूर रहना चाहिए. अधिक काम और वासना व्यक्ति की प्रतिभा को नष्ट करती है. ऐसे व्यक्ति अपने लक्ष्यों से भटक जाता है और सफलता उससे दूर हो जाती है.
क्रोध सबसे बड़ा शत्रु है
गीता के उपदेश में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि क्रोध व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु है. क्रोध में व्यक्ति अच्छे और बुरे का भेद नहीं कर पाता है और ऐसी गलतियां कर बैठता है जिससे वह स्वयं का तो नुकसान करता ही है. साथ ही साथ दूसरों का जीवन भी कष्ट में डाल देता है.
लोभ सभी दुखों का कारण है
चाणक्य की मानें तो लोभ से व्यक्ति को दूर ही रहना चाहिए. लोभ के कारण व्यक्ति स्वार्थी बन जाता है. लोभी व्यक्ति कभी संतुष्ठ नहीं होता है. जिस कारण उसके जीवन की शांति नष्ट हो जाती है.
मद यानि अहंकार से दूर रहें
विद्वानों के अनुसार अहंकार से व्यक्ति को दूर रहना चाहिए. अहंकार में डूबा व्यक्ति सच्चाई से दूर रहता है. बुरा समय आने पर ऐसा व्यक्ति दुख और कष्ट भोगता है.
मोह भ्रम पैदा करता है
व्यक्ति को मोह से दूर रहने का प्रयत्न करना चाहिए. मोह के कारण भ्रम की स्थिति भी उत्पन्न होती है. मोह के कारण ऐसे लोगों को कभी-कभी परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है.
मत्सर यानि ईर्ष्या का त्याग करें
विद्वानों के अनुसार ईर्ष्या दुखों में वृद्धि करती है. ईर्ष्या से युक्त व्यक्ति नकारात्मक विचारों से घिर जाता है. ऐसा व्यक्ति सफलता से वंचित हो जाता है.