इस नैरेटिव को सपा नेताओं द्वारा यह कह कर फैलाना था कि देवबंद में इस्लामिक शिक्षा का बड़ा केंद्र है, ऐसे में देवबंद में एटीएस सेंटर खोलकर यूपी सरकार सिर्फ मुसलमानों को डराने की कोशिश में है। जाहिर है योगी और उनके सलाहकारों ने तालिबानी मौके को लपका है। इसके बहाने सुरक्षा-व्यवस्था में सख्ती के साथ वे यह मैसेज बनवाने में कामयाब हैं कि आगे तालिबानी याकि मुस्लिम चुनौती होगी तो योगी हैं जो उसे हैंडल कर सकते हैं। प्रशासन द्वारा तुरंत देवबंद में दो हजार वर्ग मीटर जमीन एटीएस को ट्रांसफर करना और टीवी चैनलों में लगातार तालिबानी बर्बरता और उसकी विचारधारा के देवबंदी लिंक की प्रायोजित खबरों ने भी योगी आदित्यनाथ का ग्राफ बढ़ाया है।
मानो यह कम हो जो जन्माष्टमी पर मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पहुंचकर योगी ने भक्त हिंदुओं पर और जादू किया। मथुरा में मांस-शराब की बिक्री पर रोक लगाने का ऐलान कर द्वापर युग की याद दिलाते हुए योगी ने लोगों को दूध बेचने के लिए प्रोत्साहित करने का एजेंडा बनाया। अपने आप मथुरा में जन्मस्थान की मुक्ति का ख्याल बना। जाहिर है यह सब नरेंद्र मोदी या संघ परिवार की सलाह से नहीं है, बल्कि योगी आदित्यनाथ और उनकी टीम की सोची-विचारी रणनीति में है। गौर करें योगी हाल के महीनों में कितनी बार अयोध्या, काशी, विंध्याचल जैसे धर्मस्थान गए हैं? मामूली बात नहीं है जो अयोध्या हो या काशी विश्वनाथ मंदिर सभी जगह दिल्ली के वीवीआईपी मतलब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हो या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबके साथ योगी के फोटो मिलेगी। पिछले ढाई सालों में वे बीस बार अयोध्या गए होंगे। यह चर्चा अपनी जगह है कि वे कहीं अयोध्या से चुनाव न लड़ें। फैजाबाद को अयोध्या जिला बनाना हो या इलाहाबाद को प्रयागराज से लेकर मंदिर कॉरिडोर जैसे निर्माण, साधु-संतों के जमावड़े आदि से योगी आदित्यनाथ ने संघ परिवार के औसत वोट और कट्टर हिंदू के दिल-दिमाग में अपनी वह छाप बना डाली है, जिसके बूते तय मानें कि वे आगे अपनी ताकत पर ही उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। मतलब योगी को यूपी में चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की कतई जरूरत नहीं है।
इसके आगे कई अर्थ हैं। मथुरा में योगी के दौरे के बाद जिन हिंदुओं से मुझे योगी के जादू का भान हुआ वे ब्राह्मण, बनिए और ओबीसी हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि योगी के कारण यूपी में ठाकुर बनाम ब्राह्मण राजनीति की वास्तविकता नहीं है। वह है। मगर भाजपा के जो कट्टर परंपरागत ब्राह्मण व हिंदू वोट हैं वे योगी को अपना योगीराज मान रहे हैं। उन्हीं से वे मुसलमानों से अपनी सुरक्षा समझते हैं। सो, आगे जितनी हिंदू-मुस्लिम राजनीति होगी उसके महानायक योगी होंगे न कि नरेंद्र मोदी। यूपी के कट्टर हिंदू वोटों में नरेंद्र मोदी महंगाई, महामारी, पेट्रोल-डीजल, विदेश नीति, बेरोजगारी के कारण फेल हैं, जबकि इन सब मोर्चों पर कट्टर हिंदुओं में योगी के खिलाफ कोई नाराजगी नहीं है। सो, आश्चर्य नहीं होगा कि यूपी का अगला विधानसभा चुनाव योगी के खिलाफ एंटी इन्कंबेंसी का न हो, बल्कि योगी की छप्पन इंची छाती पर हो जो बुनियादी तौर पर मोदी सरकार की असफलताओं की ढाल भी बने।