भारत के अनाज पर दुनिया की निगाहें
एक समय था जब यूरोप को ‘रोटी की टोकरी’ कहा जाता था। आजादी के बाद भारत ने लंबे समय तक आस्ट्रेलिया से गेहूं आयात करते हुए अपनी बड़ी आबादी का पेट भरा है। लेकिन आज भारत गेहूं ही नहीं, अनेक आवश्यक खाद्य पदार्थों के उत्पादन में अग्रणी देश है।
प्रमोद भार्गव; एक समय था जब यूरोप को 'रोटी की टोकरी' कहा जाता था। आजादी के बाद भारत ने लंबे समय तक आस्ट्रेलिया से गेहूं आयात करते हुए अपनी बड़ी आबादी का पेट भरा है। लेकिन आज भारत गेहूं ही नहीं, अनेक आवश्यक खाद्य पदार्थों के उत्पादन में अग्रणी देश है। गर्म हवाओं के प्रभाव में आने के कारण गेहूं का कुल उत्पादन 10.6 करोड़ टन सालाना हुआ है, जबकि अनुमान 11.13 करोड़ टन का था। अकेले पंजाब में प्रति एकड़ पांच क्विंटल उत्पादकता घटी है, बावजूद इसके भारत में अन्न के भंडार भरे हैं।
इसीलिए भारत कोरोना महामारी के दौर में भी अस्सी करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध करा पाने में कामयाब हो पाया। जबकि रूस व यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोप में रोटी का संकट गहरा गया है। इस महासंकट पर संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दुनिया के पास महज दस सप्ताह, यानी सत्तर दिन का गेहूं बचा है। ऐसे में भी कहा है, यदि विश्व व्यापार संगठन अनुमति दे तो वह दुनिया की भूख मिटाने को तत्पर है। इसलिए गेहूं के मामले में दुनिया की निगाहें भारत की ओर हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते गेहूं व अन्य खाद्य पदार्थों के निर्यात की व्यवस्था गड़बड़ा गई है। यूरोप, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के दर्जनों देश अनाज के संकट से जूझ रहे हैं। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका भी इससे अछूते नहीं हैं। ऐसे में भारत एक प्रमुख देश के रूप में उभर कर आया है, जो आज दुनिया को अनाज, तकनीकी उपकरण और दवाएं बड़े स्तर पर निर्यात कर रहा है। विकास के बहाने चीन द्वारा कर्ज में डुबो दिए गए श्रीलंका को मानवीयता के आधार पर भारत अनाज की दो खेप मुफ्त दे चुका है। अनाज की यह प्रचुरता उन किसानों के बूते है जो आज भी भ्रष्टाचार के चलते सबसे ज्यादा शोषित और पीड़ित हैं।
लेकिन भारत ने गेहूं के निर्यात पर फिलहाल प्रतिबंध लगा दिया है। इससे अमेरिका और यूरोपीय देश परेशान हैं। संयुक्त राष्ट्र की 'गो इंटेलिजेंस' की मुखिया सारा मेनकर ने चेतावनी दी है कि 'दुनिया खाद्यान्न आपूर्ति की असाधारण चुनौतियों से जूझ रही है। इसमें खाद की कमी, जलवायु परिवर्तन, खाद्य तेल और अनाज के भंडारों में कमी जैसे संकट गहराते जा रहे हैं। नतीजतन हम असाधारण मानवीय त्रासदी और आर्थिक नुकसान की ओर तो बढ़ ही रहे हैं, तेंतालीस देशों के करीब पांच करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं।'
दरअसल रूस और यूक्रेन दुनिया के एक चौथाई देशों को गेहूं की आपूर्ति करते हैं। इस संघर्ष के चलते पश्चिमी देशों को आशंका है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन गेहूं के निर्यात को एक कूटनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। रूस में इस साल गेहूं की फसल की पैदावार भरपूर हुई है, जबकि खराब मौसम के चलते अमेरिका और यूरोप में गेहूं की पैदावार घटी है। ऐसे में लाचारी से मुक्ति के लिए इन देशों की निगाहें भारत पर टिकी हैं। स्वाभाविक है, भारत पर गेहूं के निर्यात के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है। यूरोपीय देशों के बाद अब अमेरिका ने भी भारत से फैसले पर पुनर्विचार को कहा है।
इधर, भारत का रुख साफ है कि वह गेहूं निर्यात के संदर्भ में अपने कूटनीतिक हितों का ध्यान रखेगा। किन देशों को गेहूं की आपूर्ति की जानी है, इसका फैसला वैश्विक व्यवस्था में अपनी स्थिति का आकलन करते हुए किया जाएगा। साफ है, भारत उन देशों को गेहूं की आपूर्ति करेगा, जिनसे उसके द्विपक्षीय मधुर संबंध हैं। वर्तमान में दुनिया भारत को मुख्य गेहूं आपूर्तिकर्ता के रूप में देख रही है।
सयुंक्त राष्ट्र में अमेरिका की प्रतिनिधि लिंडा थामस ग्रीनफील्ड ने कहा भी है कि हम इस वैश्विक संकट से निपटने के लिए भारत से गेहूं निर्यात पर लगाए प्रतिबंध को हटाने का अनुरोध करेंगे। हालांकि भारत ने गेहूं के निर्यात पर पूरी तरह प्रतिबंध नहीं लगाया है, बल्कि सच कहें तो इसे नियंत्रित किया है। भारत मित्र व पड़ोसी देशों को गेहूं उपलब्ध करवा रहा है।
दरअसल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनाज निर्यात के दो तरीके हैं। एक अंतरराष्ट्रीय विपत्ति में संकटग्रस्त देशों की मदद के लिए और दूसरे कारोबार में लाभ के लिए। भारत सरकार ने दूसरे तरीके पर रोक लगाई है। फिर भी भारत के निर्यात संबंधी प्रतिबंध पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और जी-7 देश सवाल उठा रहे हैं। भारत के कुछ अर्थशास्त्रियों ने भी इस प्रतिबंध की निंदा की है।
कहा जा रहा है कि इस पहल से भारत की जो वैश्विक उदार छवि है, वह प्रभावित होगी। दरअसल अब मुख्य रूप से पश्चिमी देश चाहते हैं कि भारत के किसान अन्य फसलों की ज्यादा पैदावार के बजाय केवल गेहूं की पैदावार बढ़ा दें जिससे भारत को गेहूं के विश्व-बाजार में निर्यात की स्थायी जगह मिल जाए। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यह स्थान खाली भी हो गया है। ऐसे आग्रह मानवीय जिम्मेदारियों के पालन के लिए जा रहे हैं। किंतु इस कथित मानवता के परिप्रेक्ष्य में भारतीय हितों को नजरअंदाज किया जा रहा है।
दरअसल इस संदर्भ में सोचने की बात है कि यदि भारत गेहूं की खेती का रकबा बढ़ाता है तो उसे धान, तिलहन और दालों का रकबा घटाना होगा। नतीजतन इन फसलों के संदर्भ में भारत अपनी आत्मनिर्भरता खो देगा और उसे आयात के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जो कालांतर में देश में खाद्य पदार्थों के भाव बढ़ने का कारण बन सकता है।
वैसे भी गेहूं के निर्यात बाजार में भारत की हिस्सेदारी मात्र 0.47 फीसद ही है, जो एक से सवा करोड़ टन के बीच है। बावजूद इसके भारत जरूरतमंद देशों को न केवल सशुल्क, बल्कि निशुल्क भी गेहूं देता है। श्रीलंका इसका ताजा उदाहरण है। वैसे भी गेहूं निर्यात के विश्व बाजार में पचहत्तर फीसद से अधिक भागीदारी रूस, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, यूक्रेन, आस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना की है।
भारत की यह कूटनीतिक मंशा डब्ल्यूटीओ के व्यर्थ के दबाव से भी संबद्ध है। इस वैश्विक संगठन का मानना है कि भारत और अन्य विकासशील देश अपने किसानों को अधिक कृषि सहायता (सबसिडी) देकर अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। केवल कृषि ही नहीं, भारत की पशु और मछली पालन में सुधर रही स्थिति पर भी पश्चिमी देशों की टेड़ी निगाहें हैं।
भारत ने इन उद्योगों से जुड़े खाद्य पदार्थों के उत्पादनों को बढ़ावा देकर निर्यात को भी सुगम बनाया है, जबकि पश्चिमी देशों की समृद्धि का प्रमुख कारण डेयरी, मत्स्य पालन व निर्यात है। नतीजतन ये देश डब्ल्यूटीओ के माध्यम से भारत के हर तरह के खाद्य उत्पादन पर अंकुश लगाए रखना चाहते हैं।
विश्व बाजार में कीमतें बढ़ने से भारत के गेहूं और चावल की मांग जरूरतमंद देश लगातार कर रहे हैं। फिलहाल भारत एक सौ पचास देशों को चावल और अड़सठ देशों को गेहूं निर्यात करता है। वित्त वर्ष 2021-22 में भारत ने सत्तर लाख टन गेहूं का निर्यात किया। वैश्विक बाजार में बढ़ती मांग के चलते व्यापारी तीस लाख टन गेहूं निर्यात के अनुबंध भी कर चुके हैं।
भारतीय खाद्य निगम के गोदाम अन्न से भरे पड़े हैं। चावल का सुरक्षित भंडार एक करोड़ छत्तीस लाख टन रखना जरूरी है, जबकि गोदामों में करीब दो करोड़ बत्तीस लाख टन चावल उपलब्ध है। वैसे भी भारत दुनिया में गेहूं और चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। इसीलिए भारत ने कहा भी है कि डब्ल्यूटीओ अनुमति दे तो भारत तत्काल दुनिया को खाद्य आपूर्ति करने के लिए तैयार है।