Women Reservation Bill: महिला आरक्षण बिल मील का पत्थर सिद्ध होगा

Update: 2023-09-22 12:36 GMT
Women Reservation Bill: बीते सोमवार को केंद्रीय कैबिनेट (Central Cabinet) ने लोकसभा व विधानसभाओं में तैंतीस फीसदी आरक्षण को मंजूरी दी थी। इसके अगले दिन नई संसद में कामकाज का श्रीगणेश हुआ नारी शक्ति को उसके दशकों से लंबित अधिकार देने से हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने पुराने संसद भवन में अपने अंतिम भाषण में कहा कि दोनों सदनों में अब तक 7500 से अधिक जन प्रतिनिधियों ने काम किया है, जबकि महिला प्रतिनिधियों की संख्या करीब 600 रही है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के योगदान ने सदन की गरिमा बढ़ाने में मदद की है। इसके बाद नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चैधरी ने पिछले 75 सालों में कांग्रेस सरकारों के कामकाज का लेखा-जोखा पेश किया। इस दौरान सोनिया गांधी ने उन्हें महिला आरक्षण बिल की याद दिलाई थी। Women Reservation Bill
इतिहास के पन्ने पलटे तो महिला आरक्षण बिल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है। उस समय एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था। लेकिन पारित नहीं हो सका था। यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था। बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था।
इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था। इस बिल में प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए। आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के जरिए आवंटित की जा सकती हैं। इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण खत्म हो जाएगा।
1998 में वाजपेयी सरकार ने पेश किया था | Women Reservation Bill
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था। कई दलों के सहयोग से चल रही वाजपेयी सरकार को इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा। इस वजह से बिल पारित नहीं हो सका। वाजपेयी सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2003-2004 में भी पारित कराने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुई। बीजेपी सरकार जाने के बाद 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आई और डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने।
यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया। वहां यह बिल नौ मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ। बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था। यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया। इसका विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल शामिल थीं। ये दोनों दल यूपीए का हिस्सा थे। कांग्रेस को डर था कि अगर उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार खतरे में पड़ सकती है।
साल में 2008 में इस बिल को कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया था। इसके दो सदस्य वीरेंद्र भाटिया और शैलेंद्र कुमार समाजवादी पार्टी के थे। इन लोगों ने कहा कि वे महिला आरक्षण के विरोधी नहीं हैं, लेकिन जिस तरह से बिल का मसौदा तैयार किया गया, वे उससे सहमत नहीं थे। इन दोनों सदस्यों की सिफारिश की थी कि हर राजनीतिक दल अपने 20 फीसदी टिकट महिलाओं को दें और महिला आरक्षण 20 फीसदी से अधिक न हो। साल 2014 में लोकसभा भंग होने के बाद यह बिल अपने आप खत्म हो गया। लेकिन राज्यसभा स्थायी सदन है, इसलिए यह बिल अभी जिंदा है। इसीलिए अब इसे लोकसभा में नए सिरे से पेश किय गया है और इस पर चर्चा जारी है।
इससे लोकसभा में मौजूद 14 फीसदी व राज्यसभा में 12 फीसदी महिलाओं की स्थिति में अब सम्मानजक ढंग से इजाफा होगा। पहले संसद के विशेष सत्र को लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे थे, अब लगता है कि विशेष सत्र बुलाना एक सार्थक कदम साबित होगा। राजग सरकार ने इस बिल का नाम नारी शक्ति वंदन अधिनियम रखा है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1974 में महिलाओं की स्थिति का आकलन करने वाली समिति ने महिला आरक्षण की वकालत की थी।
2010 में संप्रग सरकार ने रास में पारित किया था | Women Reservation Bill
इस बीच विभिन्न सरकारों में इस विधेयक को सिरे चढ़ाने की कोशिश हुई। फिर वर्ष 2010 में संप्रग सरकार ने इस विधेयक को राज्यसभा में पारित किया था। लेकिन तब यूपीए सरकार में शामिल राजद, सपा व झामुमो आदि दलों ने इसमें जातिगत आरक्षण की मांग उठाकर विधेयक की गति थाम दी थी। वैसे सवाल उठाया जा सकता है कि वर्ष 2014 में महिला आरक्षण के मुद्दे को अपने घोषणापत्र में शामिल करने के बावजूद इसे मूर्त रूप देने में इतना वक्त क्यों लगा।
क्या जब देश आम चुनाव की ओर बढ़ चुका है तब महिला आरक्षण के मुद्दे को अमलीजामा पहनाने की कवायद हुई है? एक पहलू यह भी है कि विधेयक के कानून का रूप लेने के बावजूद इसका क्रियान्वयन तब संभव होगा, जब देश में जनगणना के उपरांत होने वाला परिसीमन पूर्ण होगा। यानी महिला आरक्षण का लाभ आगामी आम चुनाव में संभव नहीं होगा।
बहरहाल, जनप्रतिनिधि संस्थाओं में महिला आरक्षण की व्यवस्था होना भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में एक बड़ी घटना होगी। बेहतर होगा कि संसद के नये भवन में इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दल स्वस्थ चर्चा करें और आम सहमति बनाएं। इस तरह नया संसद भवन दोहरा इतिहास रचेगा। यद्यपि राजग सरकार ने विधेयक के मसौदे पर आधिकारिक स्तर पर विस्तृत जानकारी नहीं दी है, कयास लगाये जा रहे हैं कि इसके मूल स्वरूप को बरकरार रखने की कोशिश होगी।
अब देखना होगा कि जिन मुद्दों पर लंबे समय तक महिला आरक्षण का विरोध किया जाता रहा है, उन्हें किस तरह संबोधित किया जाता है। हालांकि, तब विरोध करने वाले राजनीतिक दल फिलहाल दबाव बनाने की स्थिति में नहीं हैं। जिनके विरोध के चलते ही महिला आरक्षण बिल को पांच बार पारित करने की असफल कोशिश हो चुकी है। बहरहाल, इस बिल के पारित होने से देश में लैंगिक समानता आएगी। इस समय दुनिया में लोकतांत्रिक संस्थाओं में महिलाओं की औसतन हिस्सेदारी 26 फीसदी है, जबकि वर्तमान में भारत में यह प्रतिशत 15.21 है। वहीं राज्य विधानसभाओं में स्थिति और ज्यादा खराब है, किसी भी राज्य में 15 फीसदी महिलाओं की भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में भागीदारी नहीं बन पायी। Women Reservation Bill
बहरहाल, नये विधेयक के कानून बनने के बाद भारतीय जनप्रतिनिधि संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी तैंतीस फीसदी हो जाएगी। वैसे तो देश के लोकतांत्रिक इतिहास में महिला जनप्रतिनिधियों की विशिष्ट भूमिका रही है। जिन्होंने न केवल सदन की गरिमा बनाने में बड़ी भूमिका निभाई, बल्कि अनेक महत्वपूर्ण निर्णयों में रचनात्मक योगदान भी दिया। देश की संसद के दोनों सदनों में पिछले साढ़े सात दशकों में करीब छह सौ महिला जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति रही। बहरहाल, देर आए दुरुस्त आए, की तर्ज पर इसे भारतीय लोकतंत्र की शुभ शुरूआत कहा जा सकता है। PM Modi
इसके बावजूद उम्मीद करें कि जमीन से जुड़ी व महिला सरोकारों को प्रतिबद्ध महिलाएं ही जनप्रतिनिधि सदनों में पहुंचें। ऐसा न हो कि पहले से मौजूदा राजनीति में सक्रिय राजनीतिक घरानों के नेता इस पहल को अपने परिवार की महिलाओं के नाम पर राजनीति करने के अवसर में ही बदल दें। यह प्रयास आम महिलाओं के सशक्तीकरण की राह भी खोलेगा। कह सकते हैं कि करीब तीन दशक से अटके महिला आरक्षण बिल को मूर्त रूप देने का नैतिक साहस मोदी सरकार ने दिखाया है।  
तारकेश्वर मिश्र, वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
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