सेना में महिला शक्ति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को देश में बना पहला विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत नौसेना को समर्पित किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने देश की महिला शक्ति को नौसेना की शक्ति के साथ सांकेतिक तौर पर मिलाते हुए कहा कि आईएनएस विक्रांत जब हमारे समुद्री इलाके की रक्षा करने उतरेगा तो उस पर महिला सैनिक भी होंगी
नवभारत टाइम्स: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को देश में बना पहला विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत नौसेना को समर्पित किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने देश की महिला शक्ति को नौसेना की शक्ति के साथ सांकेतिक तौर पर मिलाते हुए कहा कि आईएनएस विक्रांत जब हमारे समुद्री इलाके की रक्षा करने उतरेगा तो उस पर महिला सैनिक भी होंगी। उनके शब्दों में, सागर की निस्सीम शक्ति के साथ असीम महिला शक्ति अब नए भारत की पहचान होगी। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि नौसेना ने सभी ब्रांच महिलाओं के लिए खोलने का फैसला कर लिया है। यह बड़ी घोषणा इसलिए भी है क्योंकि पिछले कुछ समय से किए गए अथक प्रयासों के बावजूद भारतीय सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है।
ध्यान रहे, आर्मी और एयरफोर्स के मुकाबले नेवी में महिलाओं की मौजूदगी अच्छी है, लेकिन वहां भी यह महज 6.5 फीसदी है। प्रसंगवश एयरफोर्स में महिलाओं का प्रतिशत 1.08 फीसदी है और आर्मी में महज 0.56 फीसदी। बेशक सशस्त्र सेनाओं को दुनिया भर में पुरुषों का क्षेत्र माना जाता रहा है, लेकिन इसमें महिलाओं की संख्या हर जगह इतनी कम नहीं है। उदाहरण के लिए, 2020 में यूएस मिलिटरी अकैडमी में 23 फीसदी कैडेट महिलाएं थीं। भारत में सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं की कम संख्या की एक वजह शायद यह है कि यहां नर्सिंग जैसी शाखाओं को छोड़ दें तो महिलाओं को प्रवेश भी देर से मिला। लेकिन यह बात भी सही है कि वहां उनकी भूमिकाएं भी सीमित ही रहीं।
होना तो यह चाहिए था कि उन्हें नई-नई भूमिकाओं में खुद को आजमाने और कठिन चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता, लेकिन कई मामलों में इसका उलटा देखने को मिला। हालांकि इसके पीछे किसी तरह की दुर्भावना के बजाय समाज की पितृसत्तात्मक सोच और महिलाओं की सुरक्षा की चिंता का ही ज्यादा रोल रहा, लेकिन फिर भी यह सचाई है कि सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं ने जो उपलब्धियां अपने नाम दर्ज की हैं और जिस तरह से अपने लिए स्पेस क्रिएट करती जा रही हैं उसका सबसे ज्यादा श्रेय पुरुष वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में प्रवेश करने वाली पहली और दूसरी पीढ़ी की महिलाओं को और देश की न्यायपालिका को जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर दखल देकर महिलाओं के लिए यहां लेवल प्लेइंग फील्ड सुनिश्चित करने की कोशिश की है। हालांकि अब भी महिलाओं को आर्मी में कॉम्बैट रोल नहीं दिया जा रहा, लेकिन पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बदौलत प्रतिष्ठित नैशनल डिफेंस अकैडमी की प्रवेश परीक्षा में बैठने की इजाजत पा लेने के बाद अब महिलाएं सेना के विभिन्न मोर्चों पर खुद को साबित करने में पीछे नहीं रहेंगी। ऐसे में प्रधानमंत्री की ताजा घोषणा न केवल सशस्त्र सेनाओं के अंदर सेवा दे रही महिलाओं को बल्कि इसका सपना देख रही लड़कियों को भी ताकत देगी।