कश्मीर के इतिहास और परंपरा में स्त्री: नए 'आत्मनिर्भर भारत' की नींव में है 'स्त्रीदेश '
नए 'आत्मनिर्भर भारत' की नींव में है 'स्त्रीदेश '
आजादी का अमृत महोत्सव जारी है। इस 75 साल में हम आजादी का न सिर्फ उत्सव मना रहे हैं, बल्कि इस यात्रा के पड़ावों पर मिले योगदानों को भी याद कर सलाम कर रहे हैं। निश्चय ही 1947 से अब 'आत्मनिर्भर भारत' तक का सफर तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद कई दिलचस्प मोड़ों से गुजरता हुआ यहां तक पहुंचा है।
दरअसल, मुझे लगता है कि आजादी का असली अमृत महोत्सव तब है जब हम अपने इतिहास से जुड़े स्त्री के उन गौरवशाली पन्नों को भी शामिल करें जिनमें देश और समाज के वर्तमान की नीव के वो पत्थर शामिल हैं जो इतिहासकारों ने भी जान बूझकर दर किनार किए। सीधा सा सिद्धांत रहा कि वो हरसंभव प्रयास हों कि जिससे पुरुष का वरदहस्त हो और महिला और उसकी उपलब्धियां रसातल में दब जाएं।
वो कहानियां कही ही नहीं गई कि जिनमें स्त्री सुपरहीरो थी। मुझे लगता है देश के इस अमृत महोत्सव में कश्मीर के उस बिसरा दिए गए इतिहास और खासकर महिलाओं के गौरवशाली इतिहास को शामिल किया जाना बेहद जरूरी है। इसी प्रयास में मैंने बड़ी मुश्किल सेनीलमत पुराण, राजतरंगिणी और कुछ बचे रह गए खंडहरों की मदद से कड़ियां जोड़ी है।
कश्मीर इतिहास नहीं बल्कि परंपरा का हिस्सा है
मैंने अपनी टीम के साथ मिलकर छह सालों के सघन शोध के बाद, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अनुक्रम इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की मदद से पहला ऐसा दृश्य श्रव्य दस्तावेज खड़ा किया है जो कश्मीर के इतिहास के पन्नों से उन 13 रानियों और देश और कश्मीर के प्रगतिपथ में उनके योगदान को खोजकर लाया है। इस प्रयास को हमने "स्त्रीदेश" नाम दिया जो कोई काल्पनिक शीर्षक न होकर वो ऐतिहासिक नाम है जो कश्मीर को स्वयं श्री कृष्ण ने दिया था।
वैसे ये कहना भी अतिश्योक्ति न होगी कि वो कश्मीर की धरती और उसका इतिहास ही है जो महाभारत काल के पात्रों जैसे पांडव, बलराम, श्रीकृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल, मथुरा और कश्मीर के बीच युद्ध जैसी घटनाओं की पुष्टि करता है। इतना ही नहीं ये वो ही इतिहास है जो महाभारत काल से थोड़ा पहले दुनिया की पहली महिला साम्राज्ञी के कश्मीर में होने कान सिर्फ जिक्र करता है, बल्कि उसके साक्ष्य भी मौजूद हैं।
अगर 5000 साल के इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो इसमें कुछ खास पन्ने हैं जो कश्मीर की महिला शासकों या प्रशासकों के नाम हैं। अपने इस प्रयास में नीलमतपुराण और राजतरंगिणी के अलावा लेह, लद्दाख, कश्मीर, अफगानिस्तान के सुदूर और दुर्गम इलाकों में घूमकर हमने वो साक्ष्य जुटाए जो अपरिचित और उपेक्षित ही पड़े थे। सिरों को जब जोड़ा तो कश्मीर, देश और महिलाओं का वो गौरवशाली इतिहास सामने खड़ा था जिसमें से अधिकांश न कभी देखा न सुना।
दरअसल, ये इतिहास और ये तथ्य खोए नहीं, जानबूझकर छुपाए गए। शोधपरख इस परियोजना के लिए मेरा दावा है कि देश ही नहीं दुनिया का ये अपनी तरह का महिलाओं के ऐतिहासिक योगदानों को खोज निकालने का ये पहला प्रयास है और इस प्रयास ने नारी को शोषित को तमगे से आजाद करके विदुषी और दूरदर्शी सशक्त किरदारों के तौर पर पुनर्स्थापित किया है।
देश में नवाचार और व्यवस्थाओं की नींव दरअसल कश्मीर की महिलाओं ने ही रखी। ये वो महिलाएं थी जिन्होंने देश निर्माण के हवन में अपने ढंग से नवनिर्माण और नवाचार की आहुति दी।
कश्मीर की महान नायिकाएं और स्त्री देश
यशोवति, सुगंधादेवी, दिद्दा, कोटा देवी, इशान देवी, वाक्पुशटा, श्रीलेखा, सूर्यमती, कलहानिका, सिल्ला, चुड्डा, लछमा, बीबी हौरा ये तरह स्त्रीदेश की महनायिकाएं हैं।
दरअसल, ये सिर्फ नाम भर नहीं हैं। ये कश्मीर और भारत के गौरवशाली इतिहास के वो पन्ने हैं जो कभी पलटे ही नहीं गए। चाहे वो पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम हो, लोकतंत्र हो, कर सुधार व्यवस्था हो, नहर व्यवस्था हो, भवन निर्माण तकनीक हो, वर्तमान ओपन हॉल संवाद संस्कृति हो ,पहली ब्लैक कमांडो फोर्स हो, सबकी नींव यहीं हमारे भारत और कश्मीर में अलग अलग समय में इन रानियों ने रखी।
इतना ही नहीं, कई कठिन परिस्थितियों में विदेशी आक्रांताओं से देश की सीमा पर युद्ध करके उसको पटकनी देने वाली भी यही महिलाएं ही थीं।
स्त्रीदेश अपनी तरह का एक ऐसा पहला दृश्य श्रव्य दस्तावेज है जो इस तरह महिलाओं की शोध परख कहानियां सामने लाकर उनका दस्तावेजीकरण कर रहा है। 'स्त्रीदेश ' एक तरह से इन सभी महानायिकाओं से आपका प्रथम परिचय कराता है। इसी दौरान मैंने और मेरी टीम ने ये फैसला किया कि हम इन रानियों और इनमें छुपी रोल मोड़ल्स को देश के सामने उनकी पूरी कहानी के तौर पर एक एक कर के लाएंगे।
वो कहानियां न सिर्फ शोध परख होंगी बल्कि उनको लिखने का ढंग इस कदर रोचक और सिनेमाई होगा कि इतिहास मनोरंजन के कैप्सूल में लपेटकर पाठकों को परोसा जाए। कहानी की रोचकता इतिहास के भारीपन को हर ले। सबसे पहली किताब रानी दिद्दा पर लिखकर दुनिया के सामने रखी।
पितृसत्तात्मक समाज में एकलंगड़ी रानी के महायोद्धा और साम्राज्ञी बनने की इस कहानी को पाठकों का भरपूर प्यार भी पिछले दो साल से मिल रहा है। पढ़ने वाले अक्सर ये कहते पाए गए कि इस कहानी को पढ़ते वक्त उन्हें ऐसा लगा कि वो सिनेमा देख रहे हैं। यही तो हम चाहते थे, उपन्यास लिखने का ये अपनी तरह का अनूठा तरीका सफल रहा।
ऐसे ही स्त्रीदेश को धुरी बनाकर हर एक कहानी एक एक कर के दुनिया के आगे रखने का मिशन जारी है। पाठकों के अलावा ध्यान बच्चों और किशोर-किशोरियों पर भी है कि उन तक भी कॉलेज और स्कूल्स के ओपन फोरम्स और एनीमेशन फिल्म शृंखला के जरिया पहुंचा जा सके। बात एक फीचर फिल्म और वेब सीरीज की भी चल रही है।
मिशन सिर्फ एक है इन महानायिकाओं को वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों से इस कदर परिचित करा देना कि जोश, ऊर्जा, इतिहास के प्रति सही समझ, महिलाओं के लिए रवैय्या और अपनी विरासत पर भरपूर गर्व 'सिखाने -समझाने ' की जरूरत न पड़े। मेरी समझ में, इन कहानियों को कोई कहने वाला चाहिए था, सुनने वाले तो तैयार खड़े हैं।
कश्मीर और देश की इन 13 महानायिकाओं ने मुझे इस अपने तरह के अनूठे और पहले काम के लिए चुना जिसका फक्र है। विगत् मार्च में महिला दिवस के उपलक्ष्य में दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला संस्थान में मेरी फिल्म 'स्त्रीदेश' न सिर्फ लांच हुई, बल्कि इन महिलाओं की जिन्दगी पर विमर्श का सिलसिला भी चल निकला। कोशिश जारी है कि ये विमर्श बेरोक-टोक जारी रहे और ये महानायिकाएं 'आत्मनिर्भर भारत ' के स्मृति पटल पर आगे सदियों तक अंकित रहे। नया 'आत्मनिर्भर भारत ' ये याद रखे कि इसकी नींव स्त्रीदेश कश्मीर ने ही रखी है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।