क्या नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बीजेपी के लिए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में तुरुप का इक्का साबित होंगे?

भारतीय जनता पार्टी आलाकमान ने उत्तराखंड के नवनियुक्त मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सिर पर कांटों भरा ताज रख दिया है

Update: 2021-07-06 11:21 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | अजय झा | भारतीय जनता पार्टी (BJP) आलाकमान ने उत्तराखंड (Uttarakhand) के नवनियुक्त मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) के सिर पर कांटों भरा ताज रख दिया है. एक युवा नेता जिसे प्रशासन का कोई खास अनुभव नहीं हो, उसके जिम्मे प्रदेश में बीजेपी को आगामी विधानसभा चुनाव में जीत दिलाने का दायित्व आ गया है. धामी अकेले ऐसे अनुभवहीन नेता नहीं हैं जिन्हें बीजेपी ने सत्ता की बागडोर थमा दी. धामी से पहले इस श्रृंखला में गुजरात में नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi), हरियाणा में मनोहरलाल खट्टर (Manohar lal Khattar) और उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का नाम शामिल है. जब मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ अक्टूबर 2001 में ली थी तो वह विधानसभा के सदस्य भी नहीं थे, पूर्व में कभी चुनाव लड़ा भी नहीं था. खट्टर 2014 में पहली बार चुनाव लड़ें और विधायक के रूप में शपथ लेने से पहले मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

योगी आदित्यनाथ को भी किसी तरह का प्रशासनिक अनुभव नहीं था, पर जब 2017 में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद सौंपा गया तो उस समय तक वह पांचवी बार लोकसभा के सदस्य जरूर बन चुके थे और उनके पास 17 वर्ष का सांसद के तौर पर अनुभव था. मोदी और खट्टर से विपरीत, धामी को एक विधायक के तौर पर नौ वर्षों का अनुभव जरूर है. पर किसी अनुभवहीन नेता को चुनाव जीतने की जिम्मेदारी, वह भी जब अगला चुनाव मात्र आठ महीने ही दूर हो, शायद ही मिली हो.
धामी के पास उत्तराखंड में कुछ करने के लिए ज्यादा समय नहीं बचा
धामी को प्रशासन को नज़दीक से देखने का संक्षिप्त अनुभव जरूर है. जब उत्तराखंड में 2002 विधानसभा के ठीक चार महीने पहले भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गया था, तो उनकी टीम में युवा नेता धामी को OSD यानि ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी पद पर निकुक्त किया गया था. धामी की योग्यता पर किसी को संदेह नहीं है. बस उन्हें पर्याप्त समय नहीं मिला है कि वह कुछ करिश्मा कर दिखायें. वर्तमान वर्ष के आखिरी में या जनवरी की शुरुआत में चुनाव की घोषणा हो जायेगी. चुनाव की घोषणा होते ही आचार संहिता लग जाता है और सरकार पंगु हो जाती है. इस दृष्टि से धामी के पास सिर्फ सात महीने ही शेष हैं. इस दौरान उनकी सरकार बजट भी पेश नहीं करेगी, यानि धामी सिर्फ नयी और लोकप्रिय योजनाओं की घोषणा ही कर पायेंगे, उन योजनाओं के लिए धनराशि भी उनकी सरकार नहीं जुटा पाएगी. धामी की हालत को एक उदहारण के जरिये समझा जा सकता है. उन्हें एक सैनिक बना कर बीजेपी ने युद्ध भूमि में उतार तो दिया है, पर उस सैनिक का हाथ पीठ पीछे बंधा हुआ है और उससे यह उम्मीद की जाती है कि वह बन्दूक से गोली चला कर दुश्मनों को ध्वस्त कर दे.
बीजेपी से उत्तराखंड को लेकर चूंक हुई
बीजेपी आलाकमान से उत्तराखंड के मामले में कहीं ना कहीं चूक हो गयी. त्रिवेन्द्र सिंह रावत के चार वर्षों तक मुख्यमंत्री बने रहने के बाद उन्हें पद से हटा कर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया. तीरथ सिंह रावत को चार महीनों के बाद इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि वह लोकसभा के सदस्य हैं और विधानसभा उपचुनाव होने की दूर-दूर तक कोई सम्भावना नहीं है. बस बीजेपी ने एक ही सही काम किया कि तीरथ सिंह रावत को 6 महीनों की जगह चार महीनों में ही पद मुक्त कर दिया और बागडोर 45 वर्ष के युवा नेता धामी को सौंप दी.
उत्तराखंड में हमेशा से अफसरशाही हावी रही है
धामी की सिर्फ यही समस्या नहीं है कि उन्हें प्रशासन चलाने का अनुभव नहीं है और चुनाव निकट है, उत्तराखंड की गिनती उन राज्यों में होती है जहां विधायकों और मंत्रियों पर प्रशासनिक (IAS) अधिकारी हावी रहते हैं, जिसके अनेक कारण हैं, जिनमे से एक प्रमुख है उत्तराखंड के ज्यादातर विधायक और मंत्री ठेकेदारी का काम करते रहे हैं. उन अधिकारीयों पर जिनके पीछे वह कभी ठेका लेने के लिए लगे होते थे नेताओं की धौंस नहीं चल पाती है. उत्तराखंड में ज्यादातर IAS ऑफिसर दूसरे राज्यों के हैं. स्थानीय युवा, सेना में नौकरी करना ज्यादा पसंद करते हैं. उत्तराखंड के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई का स्तर इतना अच्छा नहीं है कि प्रदेश का युवा IAS-IPS बनने की परीक्षा पास कर सके. दूसरे राज्यों के अधिकारियों को सुदूर पहाड़ों के बारे में खास पता नहीं होता जिसके कारण जनता और सरकार के बीच वह सम्बन्ध नहीं बन पता है जो चुनाव जीतने के लिए ज़रूरी माना जाता है.
अगला विधानसभा चुनाव बीजेपी जीतती है तो यह कांग्रेस की नाकामी होगी
इसी वजह से उत्तराखंड में हर एक पांच साल में सरकार बदल जाती है. 2002 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी सफल रही थी, 2007 में बीजेपी की सरकार बनी. 2012 में त्रिशंकु विधानसभा चुनी गयी जिसमें कांग्रेस पार्टी जो विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी, सरकार बनाने में सफल रही. 2017 में बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आयी पर बार-बार मुख्यमंत्री बदलने से बीजेपी ने अपने लिए स्थिति कठिन जरूर कर ली है.
देर से ही सही, लगता है कि बीजेपी ने इस बार एक सही नेता को मुख्यमंत्री बनाया है. यह माना जा रहा है कि धामी में वह काबिलियत है कि वह बीजेपी के लिए चुनाव में सफलता हासिल कर सकें. धामी के पास जादुई छड़ी नहीं है, पर उनका युवा होना, बेदाग जीवन और एक जुझारू नेता की छवि बीजेपी के लिए प्लस पॉइंट बन सकता है. वैसे भी कांग्रेस पार्टी की तरफ से भूतपूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत चुनौती पेश करेंगे. रावत का कार्यकाल भ्रष्टाचार के लिए ज्यादा जाना जाता है. रावत ही उस समय मुख्यमंत्री थे जब बीजेपी 70 में से 57 सीटों पर जीत कर सत्ता में आई और कांग्रेस पार्टी लुढ़क कर 11 सीटों पर पहुंच गयी थी. रावत खुद दो क्षेत्रों से चुनाव लड़ें और दोनों ही क्षेत्रों में जनता ने उन्हें नकार दिया
इंदिरा हृदयेश, जो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थीं, की करोना के कारण पिछले महीने हुई मृत्यु से कांग्रेस पार्टी को बड़ा झटका लगा है, क्योंकि उनकी छवि और उनमे क्षमता थी कि वह कांग्रेस को सफल बना सकती थी. अगर बीजेपी इतिहास पलटते हुए फिर से चुनाव जीत जाती है तो इसका श्रेय कांग्रेस पार्टी की ख़राब छवि का उतना ही होगा जितना कि धामी के रूप में बीजेपी को एक तुरुप का इक्का मिल जाना. धामी शायद एक हारी हुई बाजी जीता दें.


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