एक बार फिर नाम बदलकर क्या व्यापमं घोटाले का दाग धो सकेगी मध्य प्रदेश सरकार
कर्मचारी चयन बोर्ड का प्रस्ताव कमलनाथ सरकार में बना
पहली बार जब मध्यप्रदेश सरकार (MP Goverment) ने व्यवसायिक परीक्षा मंडल का नाम बदला था तब यह उम्मीद की जा रही थी कि अब घोटाले की पुनरावृत्ति नहीं होगी. नए नाम के पांच साल बाद ही व्यापमं 2.0 सामने आ गया. नाम बदलने से व्यापमं (Vyapam Scam) में कुछ नहीं बदला था. दूसरी बार नाम बदलकर व्यापमं के दाग धोने की कोशिश हो रही है. देश में भर्ती परीक्षाओं में जस तरह के घोटाले सामने आ रहे हैं,उसमें कर्मचारी चयन बोर्ड ( Staff Selection Board) अपने अतीत से पीछा छुड़ा पाएगा, मुश्किल दिखाई देता है.देश में अभी भी संघ लोक सेवा आयोग की विश्वसनीयता बरकरार है. जबकि कई राज्यों के लोक सेवा आयोग गड़बड़ियों के कारण ही जाने जाते हैं. जिन राज्यों में वर्ग तीन की भर्ती के लिए अलग बोर्ड है,वहां निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया का अभाव लगातार सामने आता है. मेडिकल की प्रवेश परीक्षाओं में भी बड़े पैमाने पर गडबडियां सामने आईं.
मध्यप्रदेश का व्यापमं घोटाला सबसे बड़ा घोटाला माना जाता है. इस घोटाले के कारण शिवराज सिंह चौहान सरकार की काफी बदनामी भी हुई थी. कई तरह के आरोप भी उन पर लगाए गए थे. यद्यपि कोई भी आरोप अब तक साबित नहीं हुआ है. मामले की जांच सीबीआई को सौंपे जाने के साथ विपक्ष ने भी इस मामले को नहीं उठाया. सरकार में आने के बाद भी कमलनाथ सरकार ने उन मामलों की जांच की पहल नहीं की जो एसटीएफ की फाइलों में बंद हैं.
कर्मचारी चयन बोर्ड का प्रस्ताव कमलनाथ सरकार में बना
प्रोफेशनल एक्जामिनेशन बोर्ड का नाम बदलकर राज्य कर्मचारी चयन आयोग किए जाने का प्रस्ताव कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने तैयार किया था. कमलनाथ की सरकार दिसंबर 2018 में आई थी. नाम बदलने का प्रस्ताव वर्ष 2019 में तैयार किया गया था. प्रस्ताव की मंजूरी से पहले ही मार्च 2020 में कमलनाथ की सरकार गिर गई. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पीईबी का नाम बदले जाने के इसी प्रस्ताव को आगे बढ़ाया है. कमलनाथ सरकार की व्यापमं को चयन आयोग में बदले जाने की परिकल्पना थी. लेकिन,शिवराज सिंह चौहान की सरकार इसे बोर्ड के स्वरूप में ही गठित कर रही है. बोर्ड का ढांचा अभी सामने नहीं आया है. कमलनाथ सरकार में जो आयोग प्रस्तावित था उसमें कुल 31 सदस्य रखे जाने का प्रस्ताव था. चौदह सदस्य पदेन हैसियत से रखे जाने थे. ग्यारह सदस्यों का मनोनयन सरकार को करना था इसमें दो विधायक भी नामांकित किए जाने थे.
व्यापमं के लिए भाजपा सरकार ने बनाया था कानून
व्यावसायिक परीक्षा मंडल का पहली बार नाम वर्ष 2015 में बदला गया था. यद्यपि इसके स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया गया था. सिर्फ हिन्दी के स्थान पर नाम को अंग्रेजी स्वरूप दिया गया था. प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (पी.ई.बी.) व्यापमं का गठन व्यावसायिक परीक्षा मंडल अधिनियम 2007 के तहत किया गया था. इससे पहले यह सरकार के प्रशासनिक आदेश से संचालित हो रहा था. पहले व्यापमं और फिर पीईबी इसके चेयरमैन भारतीय प्रशासनिक सेवा का मुख्य सचिव स्तर का अधिकारी रहता है. यह राज्य सरकार की एक स्व-वित्तपोषित, स्वायत्त निगमित निकाय है. इसकी शुरुआत वर्ष 1970 में मध्य प्रदेश मेडिकल कॉलेज की प्रवेश परीक्षाओं के लिए किया गया था. 1981 में इंजीनियरिंग कॉलेज की प्रवेश परीक्षाओं का काम भी सरकार ने इसे सौंप दिया. व्यापमं का नाम इसे 1982 में मिला था. व्यापमं का अलग कानून बन जाने के बाद यह सरकारी विभागों की भर्ती परीक्षाएं करने की जिम्मेदारी भी सरकार ने इसे दे दी.
संदिग्ध मौतों के बाद घोटाले ने पकड़ा था तूल
व्यापमं की परीक्षाओं में होने वाली गड़बड़ियों का मामला वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव के बाद तूल पकड़ा था. इसमें गंभीर मोड़ उस वक्त आया जब घोटाले से जुड़े कुछ लोगों की संदिग्ध मौत हो गई. आज तक के विशेष संवाददाता अक्षय सिंह की मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पूरा मामला जांच के लिए सीबीआई को सौंप दिया था. व्यापमं घोटाले से जुड़ी सौ से अधिक एफआईआर मध्य प्रदेश के विभिन्न शहरों और थानों में दर्ज हुईं थीं. सरकार की ओर से जो मामले जांच के लिए सीबीआई को सौंपे गए,उनमें कई मामलों में आरोपियों को अदालतों ने सजा भी सुना दी है. लेकिन,जिन हाई प्रोफाइल चेहरों के कारण व्यापमं का घोटाला देश के सबसे बड़े भर्ती घोटाले के रूप में चर्चित हुआ वे चेहरे सीबीआई की जांच में भी सामने नहीं आए हैं. सबसे चर्चित नाम पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा का था. शर्मा का कुछ माह पहले ही कोरोना संक्रमण के कारण निधन हो गया है.
नाम बदलने से भी नहीं रुकी गड़बड़ी
घोटाले से जुड़े कई आरोपी अभी कोर्ट के अंतिम फैसले का इंतजार कर रहे हैं. घोटाले के उजागर होने के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि भविष्य में होने वाली भर्ती और प्रवेश परीक्षाएं दोष रहित और पारदर्शी तरीके से होंगी. लेकिन,नाम बदलने के बाद भी प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आया. कृषि विस्तार अधिकारी की परीक्षा में भी गड़बड़ी सामने आई. टॉपर की लिस्ट में उन छात्रों के नाम थे,जो कॉलेज में फिसड्डी रहे थे. एक ही इलाके के रहने वाले थे. रोल नंबर भी आगे-पीछे थे. आंसरशीट में सभी की गलतियां भी समान थीं. इसके बाद बोर्ड की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठना स्वाभाविक है. यह सवाल दूसरी बार नाम बदले जाने के बाद नहीं बदलेंगे. कांग्रेस अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक है क नाम बदलने से व्यापमं के दाग कभी धुलने वाले नहीं हैं। जब कभी भी कर्मचारी चयन बोर्ड भर्ती परीक्षाएं आयोजित करेगा,तब व्यापमं उसके अतीत के तौर पर सामने खड़ा होगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)