इमरान खान का सत्ता से बाहर जाना भारत के लिए क्यों कोई जश्न की खबर नहीं है

साल 2018 में जब इमरान खान ने बतौर प्रधानमंत्री पाकिस्तान की कमान संभाली तब उनके सुर सकारात्मक थे

Update: 2022-03-31 12:43 GMT
जहांगीर अली.
साल 2018 में जब इमरान खान (Imran Khan) ने बतौर प्रधानमंत्री पाकिस्तान (Pakistan) की कमान संभाली तब उनके सुर सकारात्मक थे. हालांकि, कई लोग यह आरोप लगाते रहे कि उनकी सरकार रावलपिंडी के जनरलों के हाथों की कठपुतली है, लेकिन इमरान खान की मंशा भारत के शांति कायम करने की रही, यहां तक कि उन्होंने भारत (India) की तारीफ भी की, जिसकी वजह से वह एक आदर्श राजनेता के तौर पर उभरे, और इस मुस्लिम बहुल देश को इसकी लंबे समय से जरूरत थी.
अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों से अलग, इमरान खान इस उपमहाद्वीप में शांति स्थापित करना चाह रहे थे, हालांकि ऐसी चाह रखने वाले वह अकेले नहीं थे. पहली बार ऐसा हुआ, जब पाकिस्तान का राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व एक सुर में बात कर रहे थे और उनकी कोशिश रही कि भारत के साथ दशकों चली दुश्मनी को खत्म किया जाए. यही बात इमरान खान सरकार की एक खास विशेषता रही, हालांकि कई लोग इसे सेना के उस संदिग्ध भूमिका से जोड़कर देखते हैं जिसके तहत सेना इस पूर्व क्रिकेटर को पीएम की गद्दी पर बिठाया.
इमरान सरकार भारत के लिए बेहतर थी
बालाकोट हमलों ने इन दोनों परमाणु देशों को पूर्ण युद्ध के कगार पर ला दिया था, इसके दो साल बाद इमरान के नेतृत्व में, भारत और पाकिस्तान की सेनाओं द्वारा 2003 के युद्ध विराम (सीजफायर) समझौते को बनाए रखने के लिए एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. संघर्ष विराम की घोषणा के बाद, पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने दोनों देशों से "अतीत को दफनाने" का आह्वान किया. इस समझौते से जम्मू-कश्मीर की सीमाओं पर हिंसा कम हुई और कुछ हद तक शांति स्थापित हुई, जिससे बच्चों और महिलाओं सहित हजारों सीमावर्ती निवासियों को राहत मिली.
इसी तरह, भारत और पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक संबंधों में सुधार आने के संकेत भी मिलने लगे. पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इमरान खान का शानदार पत्र व्यवहार भी हुआ. धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए दोनों के बीच और अधिक धार्मिक स्थानों को खोलने की बात चल रही थी. यहां तक कि इमरान खान ने भारत से यह भी कहा कि पाकिस्तान से प्रत्यक्ष संबंध रखने से भारत को मध्य एशिया के बाजारों तक आसान पहुंच प्राप्त हो सकेगी. उनकी सरकार ने अफगानिस्तान के सहायता देने वाले भारतीय जहाज, पाकिस्तान से गुजरने की अनुमति दी. इमरान सरकार की सबसे बड़ी बात उस वक्त सामने आई जब उन्होंने इस साल जनवरी में अपने देश की पहली नेशनल सिक्योरिटी पॉलिसी पेश की. 50 पेजों वाली इस पॉलिसी में शांति की बात कही गई जिसमें भारत के साथ '100 वर्ष तक शत्रुता न रखने' की बात भी शामिल है.
इसमें भारत के साथ व्यापार और निवेश शुरू करने की भी बात कही गई, भले ही कश्मीर मसले को अंतिम हल निकले या न निकले. इस तरह के कदम से न केवल जम्मू-कश्मीर के लोगों को, बल्कि भारत और पाकिस्तान में रहने वाले लोगों को भी फायदा होगा. संक्षेप में कहा जाए तो, इस उपमहाद्वीप में शांति बनाए रखने के लिए इमरान सरकार भारत के लिए बेहतर थी. उनके बेदखल होने के साथ, जो अब केवल एक औपचारिकता ही रह गई है, पाकिस्तान का सैन्य नेतृत्व एक बार फिर पर्दे के पीछे काम करेगा और नागरिकों को चुनावी युद्ध के मैदान में उतार दिया जाएगा और भारत के लिए यह पता लगाना मुश्किल होगा कि उसके अशांत पड़ोसी देश में सत्ता की बागडोर किसके हाथों में है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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