किसके दलाई लामा? तिब्बतियों की आस्था का प्रश्न

अमेरिकी सीनेट ने नया दलाई लामा चुनने के तिब्बतियों के अधिकार से जुड़ा वह बिल पास कर दिया

Update: 2020-12-25 11:56 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आखिर अमेरिकी सीनेट ने नया दलाई लामा चुनने के तिब्बतियों के अधिकार से जुड़ा वह बिल पास कर दिया, जिसका काफी समय से इंतजार किया जा रहा था। हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स जनवरी में ही इसे पारित कर चुका है। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के हस्ताक्षर के साथ ही यह कानून अमेरिकी नीति का हिस्सा बन जाएगा और यह नीति कहती है कि नया दलाई लामा चुनने की प्रक्रिया में अगर चीन की सरकार ने किसी तरह की दखलंदाजी की तो उसे कड़े प्रतिबंध झेलने होंगे। स्वाभाविक रूप से चीन इसे अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बता रहा है, लेकिन दुनिया भर में फैले तिब्बती समुदाय के लोग इस फैसले से खुश हैं। इस पहल की जरूरत इसलिए महसूस की जा रही थी क्योंकि मौजूदा दलाई लामा 85 साल से ऊपर के हो चुके हैं और चीन सरकार अपने तईं नए दलाई लामा की खोज शुरू कर चुकी है।




ध्यान रहे, दलाई लामा महज एक राजनीतिक पद नहीं है। वह तिब्बती समुदाय के आध्यात्मिक प्रमुख भी होते हैं। उनके चुने जाने की एक खास प्रक्रिया है जो सैकड़ों साल पुरानी है। तिब्बती बौद्ध परंपरा में माना जाता है कि दलाई लामा के रूप में बोधिसत्व अवतार लेते हैं। सो उनकी मृत्यु के बाद उनके करीबी शिष्य कुछ खास संकेतों के जरिए यह तय करते हैं कि उनका पुनर्जन्म किस बच्चे के रूप में हुआ है। नियमतः इस चयन को चीन सरकार का अनुमोदन प्राप्त होना जरूरी है, जो अब तक 13 मामलों में चीनी राजशाही द्वारा और मौजूदा चौदहवें दलाई लामा के मामले में वहां की क्वोमिंतांग पार्टी की राष्ट्रवादी सरकार द्वारा किया गया था। निश्चित रूप से नेता चुनने का यह तरीका आधुनिक नहीं कहा जाएगा।

चूंकि दलाई लामा के पास राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकार भी होते हैं, इसलिए उन्हें चुनने की लोकतांत्रिक और पारदर्शी प्रक्रिया को ही बेहतर माना जाता। लेकिन सवाल औरों के मानने का नहीं है। चूंकि यह मामला तिब्बती समुदाय की आस्था और संस्कृति से जुड़ा है, इसलिए इसमें कोई बदलाव भी आना हो तो उस समुदाय के अंदर से ही आना चाहिए। बहरहाल, चीन की मौजूदा कम्यूनिस्ट सरकार का जोर तिब्बतियों द्वारा नेता के चयन से ज्यादा अनुमोदन के अपने अधिकार पर है।

1995 में तिब्बत के दूसरे आध्यात्मिक व्यक्तित्व पंचेन लामा के चुने जाने के तीन दिन के अंदर ही उनको गिरफ्तार कर लिया गया और तबसे उनको यानी गेधुन न्यिमा को आज तक नहीं देखा गया। उनकी जगह ग्याल्त्सेन नोरबू को 11वां पंचेन लामा घोषित कर दिया गया। इसी वजह से तीसरे गुरु यानी 17वें करमापा भी दो हैं और शायद कल को दलाई लामा भी दो हो जाएं। यह स्थिति तिब्बतियों के लिए तो तकलीफदेह होगी ही, चीन के लिए भी फायदेमंद नहीं होगी। तिब्बतियों को अपने विश्वास के मुताबिक जीने की छूट देने से चीन का कुछ नुकसान नहीं होना है, बल्कि उनका भरोसा जीतने और दीर्घकालिक शांति बहाल करने में इससे कुछ आसानी ही होगी।


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