क्या मोड़ लेंगे भारत-ब्रिटेन संबंध : नई प्रधानमंत्री लिज ट्रस की चुनौतियां और मजबूत होते रणनीतिक-आर्थिक संबंध

क्योंकि ट्रस रूस के साथ किसी भी तरह के संबंध रखने का घोर विरोध करती हैं।

Update: 2022-09-22 02:39 GMT

महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन के कारण ब्रिटिश नागरिकों के लंबे दुख और शोक की घड़ी वहां की नई प्रधानमंत्री लिज ट्रस के लिए परीक्षा की घड़ी रही होगी, जो भारत, अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ रिश्तों को मजबूत करने के लिए लिए तैयार हैं। मार्गरेट थैचर (53) और टेरीजा मे (59) की तुलना में युवा महिला प्रधानमंत्री के रूप में लिज ट्रस (50) को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जो उन्हें अपनी पार्टी के पूर्ववर्ती नेता बोरिस जॉनसन से विरासत में मिली हैं।



दूसरी बात यह है कि महारानी के निधन ने उनके समक्ष नए सम्राट चार्ल्स तृतीय से निपटने की चुनौती पैदा कर दी है, क्योंकि वह स्थापित विरासत को जारी रख सकते हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ट्रस यूनिवर्सिटी के लिबरल डेमोक्रेट की प्रसिडेंट बनीं और राजशाही को खत्म करने के पक्ष में बोलीं थी, इसलिए उन्हें अपनी उस छवि को बदलने के सुनिश्चित प्रयास करने होंगे। तीसरी बात, ट्रस ने ऐसे समय में पदभार ग्रहण किया है, जब ब्रिटेन को ब्रेग्जिट के गंभीर नतीजों का सामना करना पड़ रहा है और अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव ने आम लोगों के जीवन और उद्योग को काफी प्रभावित किया है।


मुद्रास्फीति चालीस साल के उच्चतम स्तर (10.1) पर है, जो भविष्य में और भी बढ़ सकती है। चौथी बात, ऊर्जा बिलों के बारे में ट्रस के निर्णय का व्यापक प्रभाव हो सकता है, क्योंकि औसत ब्रिटिश परिवारों की सीमा प्रति वर्ष 2,500 पाउंड होगी, जो अक्तूबर के नियोजित स्तर से 1,000 पाउंड कम है, इसलिए वह ब्रिटेन के ऊर्जा स्रोतों-अक्षय ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा- में विविधता लाने के लिए मजबूर होंगी। पांचवीं बात, रूस के साथ भारत की नरम कूटनीति के प्रति उनकी तीव्र अस्वीकृति के कारण, उन्हें भारत के प्रति तर्कसंगत राजनयिक दृष्टिकोण अपनाने में समय लग सकता है।

छठी बात, वर्ष 2024 के आम चुनाव से पहले ट्रस को पार्टी सांसदों को एकजुट करने का भी कठिन काम करना होगा, क्योंकि उन्हें विरासत में विभाजित पार्टी मिली है और मुख्य रूप से आर्थिक मंदी के कारण जनमत सर्वेक्षणों में पीछे है। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में ऋषि सुनक उनसे सम्मानजनक तरीके से हार गए। इसलिए उन्हें उन लोगों में एक नया विश्वास पैदा करना होगा, जिन्होंने उनकी नीतियों के खिलाफ मतदान किया। सातवीं बात, ब्रेग्जिट के बाद के व्यवधान अब भी महसूस किए जा रहे हैं और ट्रस को बदहाल राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा, रेलवे और अन्य बीमार औद्योगिक क्षेत्रों की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रेग्जिट के बाद की जटिलताएं, बड़ी संख्या में प्रवासियों के आने की चुनौती और स्कॉटिश स्वतंत्रता की फिर से मांग उठने से उनका संकट बढ़ सकता है। नस्लीय भेदभाव ब्रिटेन के सभी पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों के लिए परेशानी का सबब रहा है, जिससे निपटने के लिए नए प्रधानमंत्री को प्रभावी रणनीति अपनानी होगी। इसके अलावा, लिज के सामने पर्यावरणीय संकट से निपटने का कठिन काम है, जिसके समाधान पर ध्यान देना अनिवार्य है।

जहां तक भारत से रिश्तों की बात है, तो पूर्व प्रधानमंत्री जॉनसन के साथ हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का व्यक्तिगत रिश्ता बहुत अच्छा था। लेकिन रूस के प्रति ट्रस का सख्त और आक्रामक तेवर तथा पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद रूस से तेल खरीदने की भारत की नीति समस्याएं पैदा कर सकती हैं। हालांकि लिज लचीलेपन का विकल्प चुन सकती हैं, क्योंकि वह भारत-ब्रिटेन मित्रता की प्रबल समर्थक रही हैं। वह उन वरिष्ठ ब्रिटिश नेताओं में से हैं, जो भारत-ब्रिटेन के रणनीतिक एवं आर्थिक संबंधों को मजबूत बना रहे हैं।

व्यापार मंत्री के रूप में, ट्रस ने पिछले साल मई में भारत-ब्रिटेन के भावी संबंधों के लिए एक रोडमैप-2030 तैयार किया था, जो दोनों देशों के बीच आभासी शिखर सम्मेलन में जारी किया गया था। दोनों देश व्यापार और निवेश, रक्षा और प्रवास की प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में लाभप्रद प्रयासों को और तेज करने पर सहमत हुए थे। अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री के रूप में, ट्रस ने बोरिस जॉनसन के नेतृत्व वाली सरकार के लिए इंडिया-यूके एन्हांस्ड ट्रेड पार्टनरशिप (ईटीपी) पर हस्ताक्षर किए थे, जिसने मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) वार्ता के शुरुआती बिंदु को चिह्नित किया था।

ईटीपी पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद ट्रस ने भारत को बड़ी क्षमता वाला राष्ट्र बताया था। अब ब्रिटेन-भारत एफटीए वार्ता को गति मिल सकती है, क्योंकि वह ब्रिटिश सत्ता के शीर्ष पद पर हैं। लेकिन ट्रस के विरोधियों का तर्क है कि वह जॉनसन की तरह भारत के साथ संबंध नहीं बना सकती हैं, जो मार्च, 2022 में विदेशमंत्री के रूप में उनकी हालिया भारत यात्रा से स्पष्ट है, क्योंकि उन्होंने यूक्रेन पर रूस के हमले के मामले में भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की थी।

भारत स्थित ब्रिटिश उच्चायुक्त एलेक्स एलिस के अनुसार, दोनों देशों के रिश्ते मजबूत होंगे, क्योंकि ट्रस भारत और भारतीय भोजन से प्यार करती हैं और उन्होंने पिछले 18 महीनों में तीन बार नई दिल्ली का दौरा किया है। उनके नेतृत्व में एफटीए वार्ता को गति मिलेगी और दोनों देश 2030 तक अपने व्यापार को दोगुना कर लेंगे। जहां तक विजय माल्या के प्रत्यावर्तन का संबंध है, ट्रस ऐसे भगोड़ों के लिए ब्रिटेन को सुरक्षित पनाहगाह बनाने के पक्ष में नहीं होंगी।

विश्लेषकों का मानना है कि भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, क्योंकि यह व्यापार, प्रौद्योगिकी और निवेश में महत्वपूर्ण भागीदार है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री लिज ट्रस सहयोग के नए युग की शुरुआत कर सकती हैं और लोगों को जोड़ने के लिए लचीला रुख अपनाने के अलावा दोनों देशों के बीच पर्यावरण, निवेश और तकनीकी सहयोग को फिर से सक्रिय करने के साथ '2030 रोडमैप ऑफ टाइज' को पुनर्जीवित कर सकती हैं। लेकिन भारत को रूस से रियायती तेल खरीदने के लिए कूटनीतिक सावधानी बरतनी होगी, क्योंकि ट्रस रूस के साथ किसी भी तरह के संबंध रखने का घोर विरोध करती हैं।

सोर्स: अमर उजाला


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