यह कैसी सरकार

अफगानिस्तान में तालिबान ने आखिर सरकार गठित करने की घोषणा कर दी। हालांकि यह अंतरिम सरकार बताई जा रही है, लेकिन इससे भी अफगानिस्तान के नए निजाम के रंग-ढंग के काफी संकेत मिलते हैं।

Update: 2021-09-09 01:56 GMT

अफगानिस्तान में तालिबान ने आखिर सरकार गठित करने की घोषणा कर दी। हालांकि यह अंतरिम सरकार बताई जा रही है, लेकिन इससे भी अफगानिस्तान के नए निजाम के रंग-ढंग के काफी संकेत मिलते हैं। सरकार गठन को लेकर काबुल में चल रही रस्साकशी संबंधी खबरों की पुष्टि इस बात से भी होती है कि मौलाना हैबतुल्ला अखुंदजादा को सुप्रीम लीडर का स्थान देने की बात फिलहाल टालनी पड़ी है। हालांकि नए प्रधानमंत्री मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद उनके करीबी माने जाते हैं।

दिलचस्प है कि अफगानिस्तान के इस नए प्रधानमंत्री का नाम संयुक्त राष्ट्र की लिस्ट में आतंकवादी के रूप में दर्ज है। सिर्फ उन्हीं का नहीं इस मंत्रिमंडल में अहम जिम्मेदारी संभालने वाले ज्यादातर सदस्यों के नाम या तो आतंकी सूची में हैं या उन पर इनाम घोषित हैं। इन सबसे हटकर, सिर्फ तालिबान के नजरिए से देखा जाए तो भी उनके इस वादे की धज्जियां उड़ती दिखाई देती हैं कि अब नए दौर में वे ज्यादा खुलेपन से और सबको साथ लेकर चलने की कोशिश करते हुए आगे बढ़ेंगे। इस्लामी कानूनों के खांचे में ही सही, पर महिलाओं को सारे अधिकार देने की बात करने वाले तालिबान इस 33 सदस्यीय कैबिनेट में महिलाओं के लिए एक भी स्थान नहीं निकाल सके। इन 33 में से 30 पश्तून ही हैं।
जाहिर है, अन्य समुदायों को सत्ता में नुमाइंदगी देने की बात जुबानी जमाखर्च से आगे नहीं बढ़ सकी है। भारत और अन्य देशों के लिहाज से सबसे बड़ी बात यह है कि इस कथित सरकार पर आम तौर पर उग्र कट्टरपंथी धड़े का और खास तौर पर पाकिस्तान की आईएसआई का दबदबा साफ नजर आता है। दोहा में अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से समझौता वार्ता चला रहे और कतर में तालिबान की राजनीतिक शाखा के प्रमुख रहे मुल्ला अब्दुल गनी बारादर का उपप्रधानमंत्री पद स्वीकार करने के लिए मजबूर होना बताता है कि सरकार में इस ग्रुप की हैसियत कम हो गई है। इसी ग्रुप ने अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को तमाम आश्वासन दिए थे। यह सूचना भी महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री पद पर बैठाए गए शख्स ने ही 2001 में बामियान की बुद्ध मूर्ति को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया था।
आंतरिक मामलों के मंत्री बनाए गए सिराजुद्दीन हक्कानी न केवल हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख हैं और आईएसआई से करीबी के लिए जाने जाते हैं बल्कि काबुल में भारतीय दूतावास पर 2008 में हुए हमले के अलावा भारतीयों और भारतीय हितों पर किए जाने वाले अनेक हमलों में उनका हाथ माना जाता रहा है। एक सच यह भी है कि तालिबान की इस नई सरकार को अब नई परिस्थितियों में कठिन चुनौतियों से निपटते हुए आगे बढ़ना है। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि पुरानी छवि, पुराने चेहरों और आईएसआई मार्का पुराने प्रभावों से ग्रस्त यह नई सरकार कैसा और कितना नया कर पाती है।

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