विजय गर्ग : प्राचीनकाल में व्रत की अवधारणा के पीछे संभवतः यही कारण रहा होगा कि ऋषि-मुनि आदि यह अनुभव करते होंगे कि भोजन मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी है और संकल्प शक्ति बढ़ाने और एक पवित्र जीवन व्यतीत करने में यह बहुत बड़ी बाधा है। इसके लिए सप्ताह में एक दिन भोजन नहीं करने की शुरुआत हुई होगी। अपनी बड़ी कमजोरी से दूर रहना । समय बदलता है, प्रवृत्तियां बदलती हैं । आज भोजन के अलावा कुछ अन्य है, जो मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ी बाधा है । वह है सोशल मीडिया की लत, जिसने किसी मादक पदार्थ के नशे की तरह युवा पीढ़ी के साथ सभी उम्र के लोगों को घेरे में ले रखा है।
यह सभी स्वीकार करेंगे कि बच्चों और युवाओं के लिए नियमित रूप से लगातार पढ़ना जरूरी है। उम्र के साथ-साथ मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सही रखना है। मगर वह सोशल मीडिया के दुश्चक्र में बुरी तरह उलझकर रह जाता है । फलस्वरूप वह पढ़ाई और सकारात्मक गतिविधियों से दूर होता चला जाता है। जब इसका गंभीरता से विश्लेषण किया जाए तो पाते हैं कि सोशल मीडिया पर अधिक समय देने वाली जीवन शैली इसके लिए जिम्मेदार है। फेसबुक, इंस्टा, रील्स और यूट्यूब । हम सभी समान स्थिति में हैं। सभी के हाथ में लगातार मोबाइल बना रहता है। सहजता से जो विषय आकर्षित करता है, वह हम देखते हैं। जैसे ही हम अपने पसंदीदा विषय पर रील या अन्य सामग्री देखते हैं तो स्वचालित ढंग से इंटरनेट हमारे रुचि की सामग्री से भरे वीडियो हमारी स्क्रीन पर धकेलता है । हम जिस आयाम जैसे सिनेमा, नृत्य, साहित्य, शेयर बाजार, खेल, हास्य- जिस विषय को तलाशते हैं, लगातार उसी विषय के वीडियो चलने लगते हैं। अब एक मिनट में हमें मन के अनुसार विषय पर वीडियो मिलता है, तो मस्तिष्क से खुशी का 'डोपामाइन' स्रावित होने लगता है। यहां सुविधा यह भी है कि एक मिनट का वीडियो ठीक नहीं लगता, तो हम स्क्रॉल कर आगे बढ़ जाते हैं ।
यहां समस्या यह हो गई कि कम समय में बिना किसी श्रम के मन में खुशी का रसायन 'डोपामाइन' बहने से मन एक आलस्य में पड़ जाता है। जबकि जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। जीवन की सफलताएं बहुत मेहनत कड़ी प्रतिस्पर्धा, विषम परिस्थतियां और आसपास फैले हुए बहुत से नकारात्मक चरित्रों से संघर्ष के बाद ही संभव हो पाती है। अब मन को जैसे ही कड़े पथ पर डालते हैं तो वह घबरा जाता है। मन के अनुभव एक मिनट में खुशी पाने के हैं, तो मन जल्दी ही कड़ी मेहनत या कठोर श्रम के रास्ते से ऊब जाता है और परिणाम में बड़े लक्ष्य की प्राप्ति लगभग असंभव हो जाती है। मन सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में जीने लगता है और जीवन यथार्थ रूप नर्क बनता चला जाता है।
दरअसल, सोशल मीडिया पर लगातार चल रहे रुचिकर विषय व्यक्ति को जीवन का केंद्र बिंदु मानते हुए उसमें आत्ममुग्धता का भाव पैदा कर देते हैं। सोशल मीडिया पर आमतौर पर वही सामग्री डाली जाती है, जिसका संबंध व्यक्ति के सामान्य जीवन से नहीं होता । मसलन, बाहर भ्रमण के बढ़िया चित्र, पार्टी, कोई बड़ी सफलता, 'ब्यूटी ऐप' से मांजकर खींचे गए अतिशयोक्ति से भरे चित्र | अब यहां एक स्वभावगत प्रतिस्पर्धा के कारण हर व्यक्ति यही महसूस कर रहा है कि पूरी दुनिया एक अच्छा जीवन जी रही है और वह बहुत पीछे रह गया। इसके अलावा, स्क्रीन पर लगातार बढ़ता वक्त एक अदृश्य मादक पदार्थ की लत लगा रहा है। जब सोशल मीडिया देखने से शरीर 'डोपामाइन' का स्राव करता है, व्यक्ति को पुरस्कारस्वरूप खुशी मिलती है तो उसकी सोशल मीडिया पर निरंतर बने रहने की इच्छा उत्पन्न होती है। एक स्वचालित ढंग से घंटों, अंगुलियां स्क्रीन को स्क्राल करती रहती है। यहां समस्या यह होती है कि व्यक्ति को बिना किसी श्रम के एक समृद्ध डोपामाइन के फलस्वरूप खुशी मिल जाती है, लेकिन जैसे ही वह यथार्थ जीवन में आता है तो वहां पहाड़ जैसी समस्याएं खड़ी मिलती हैं। उसके चारों ओर एक आभासी और काल्पनिक दुनिया है, जो उसे सुख दे रही थी ।
फिर यह समस्या खड़ी होती है कि एक सीमा के बाद पुरानी चीजों से खुशी मिलनी कम हो जाती है तो मन नई चीजों की तलाश में उलझता है और फिर व्यावसायिक संजाल उसे नई-नई चीजें देता चला जाता है। यहां व्यक्ति का स्क्रीन पर गुजरने वाला वक्त बढ़ जाता है और वह यथार्थ जीवन से बहुत दूर निकल जाता है । फिर जीवन के लक्ष्य बुरी तरह प्रभावित हो जाते हैं। सोशल मीडिया के भंवर से निकलना मुश्किल हो जाता है और फिर नाना प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। मानसिक और शारीरिक बीमारियां घर कर जाती हैं, गर्दन और पीठ दर्द, अवसाद, अकेलापन, आत्मविश्वास और स्मृति कम होना, नींद की कमी आदि ।
कुल मिलाकर तथ्य यह है कि सोशल मीडिया की अति से बचने और जीवन के यथार्थ को समझने की जरूरत है। इसका एक बड़ा उपाय यह है कि सप्ताह में एक दिन का सोशल मीडिया व्रत किया जाए। उस दिन चौबीस घंटे मोबाइल को अपने से दूर कर देना चाहिए । मुश्किल हो तो इसे अपने धार्मिक विश्वास से जोड़ लिया जा सकता । एक दिन के ऐसे व्रत के फलस्वरूप व्यक्ति की संकल्प शक्ति में वृद्धि होगी । इससे अनुभव होगा कि मोबाइल के बिना भी जिया जा सकता है। फिर सामान्य दिनों में काम करते हुए एक-दो घंटे के लिए मोबाइल को दूर रखा जा सकता है और धीरे - धीरे समय बढ़ाया जा सकता है। सोशल मीडिया से दूर होने में सकारात्मकता जरूरी है। उस समय व्यक्ति अपने को योग और ध्यान से जोड़ना चाहिए । सामाजिक मेल-मिलाप और अपने शौक, जैसे चित्रकारी, नृत्यकला, किताबें पढ़ना, बागवानी में अधिक समय व्यतीत करना चाहिए ।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कोर चंद मलोट पंजाब