दरअसल देश की राजनीति में इस सूबे का हमेशा से अहम योगदान रहा है. कहा जाता है कि अगर आपको दिल्ली के दिल पर राज करना है तो यूपी को जीतना ही पड़ेगा. भारतीय जनता पार्टी यूपी को लेकर जरा सी भी ढिलाई नहीं बरतना चाहती. खासतौर से उस वक्त जब वहां कोरोना वायरस ने जमकर तबाही मचाई हो. ऊपर से हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में मिले भारतीय जनता पार्टी की हार ने बीजेपी के बड़े नेताओं को चिंता में डाल दिया है. एक वजह यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी यूपी को लेकर गंभीर हो गई है.
यह साबित करना होगा कि कोरोना से निपटने में ढिलाही का आरोप गलत है
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यना कोरोना से मुक्त होने का बाद लगातार यूपी के प्रभावित जिलों का दौरा कर रहे हैं. इसके साथ ही लगातार ऐसे आंकड़े आ रहे हैं जिससे लगता है कि यूपी से भी खराब स्थित दिल्ली-महाराष्ट्र आदि राज्यों की है पर राज्य की छवि ऐसे बना दी गई है कि देश में सबसे ज्यादा कोरोना का कहर यूपी में ही है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में कोरोना संक्रमण के चलते दिल्ली में कुछ 96 सरकारी स्कूलों के टीचर्स की मौत हुई है. ये सरकारी आंकड़े हैं जिन्हें गवर्नमेंट स्वीकार करती है, दिल्ली शिक्षक संघ का मानना है कि इसके कहीं अधिक मौते हुईं हैं. दूसरी ओर यूपी में शिक्षक संघ के आंक़ड़े बताते हैं कि करीब 1600 से अधिक टीचर्स की मौत कोरोना के दौरान हुईं हैं. सवाल उठता है कि 2 करोड़ जनसंख्या वाले दिल्ली में अगर 96 टीचरों की मौत कोरोना से हो सकती है तो 20 करोड़ जनसंख्या वाले यूपी में तो 1600 टीचरों की जान गईं तो यूपी के साथ-साथ दिल्ली में शोरगुल क्यों नहीं हुआ ? क्या वाकई यूपी सरकार के खिलाफ प्रचारतंत्र मजबूती से काम कर रहा है? इसी तरह सबसे ज्यादे वैक्सीनेशन यूपी में ही हुआ है पर एक तस्वीर बना दी गई है कि यूपी कोरोना से लड़ने के लिए कुछ नहीं कर रहा है.
उत्तर प्रदेश की सियासत में क्या चल रहा है
एक साल बाद यानि 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव होने हैं. उत्तर प्रदेश में फिलहाल भारतीय जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है और योगी आदित्यनाथ उसके मुखिया. लेकिन बीते 2 वर्षों में जिस तरह से उत्तर प्रदेश में कोरोना ने अपना कोहराम मचाया और इस वजह से वहां की मेडिकल व्यवस्था जिस तरह से चरमराई है उससे राज्य सरकार की जनता में खूब किरकिरी हुई. ऊपर से कोरोना से मरने वालों का ठीक से दाह संस्कार ना होना इस सरकार के ऊपर एक बड़ा कलंक लगा गया है. सोशल मीडिया पर कई दिनों से गंगा के तटों पर गड़ी लाशों की फोटो खूब वायरल हो रही है, जिसकी वजह से बीजेपी की जमकर किरकिरी हो रही है. हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी को करारी शिकस्त मिली. जिसकी वजह से पार्टी चिंतित है.
एक हफ्ते पहले ही यूपी पंचायत चुनाव में मिली हार को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एक समीक्षा बैठक बुलाई थी, जिसमें बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, संगठन महामंत्री सुनील बंसल, क्षेत्रीय अध्यक्ष और पंचायत चुनाव से जुड़े तमाम पदाधिकारी मौजूद थे. मीटिंग से जो बात निकल कर सामने आई वह यह थी कि भारतीय जनता पार्टी के हारने की पीछे की सबसे बड़ी वजह थी अति आत्मविश्वास. मीटिंग में कई क्षेत्रीय अध्यक्षों ने इस बात पर जोर दिया कि बीजेपी कार्यकर्ताओं और क्षेत्रीय अध्यक्षों को लगा कि वह केंद्र और राज्य सरकार के नाम पर चुनाव जीत जाएंगे, जिसकी वजह से उन्होंने उस तरह की मेहनत नहीं की जैसा कि उन्हें करना चाहिए था. यही वजह थी कि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार चुनाव हार गए, हालांकि इस बात पर खुशी भी जाहिर की गई की गांव में प्रधान पद के प्रत्याशी के रूप में ज्यादातर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जीत हासिल की है.
पीएम मोदी समेत संघ सरकार्यवाहक दत्तात्रेय होसबले के बैठक के मायने
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक साल बाकी है, उससे पहले सूबे की ऐसी हालत देखकर भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व परेशान है, यही वजह है कि बीजेपी के संगठन मंत्री सुनील बंसल बीते 2 दिनों से दिल्ली में ही टिके हुए हैं और केंद्रीय नेतृत्व के बड़े-बड़े नेताओं के साथ बैठक कर रहे हैं. रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, संगठन मंत्री सुनील बंसल और संघ के सरकार्यवाहक दत्तात्रेय होसबले के बीच एक गंभीर बैठक हुई. जिसमें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति तैयार किए जाने पर चर्चा हुई. इस बैठक में चर्चा की गई कि कैसे राज्य में अपनी पकड़ मजबूत बनाई जाए. क्योंकि कोरोना वायरस और उससे फैली अव्यवस्थाओं ने जनता के बीच यूपी सरकार के बड़ी फजीहत कराई है. बीते कुछ दिनों से मीडिया में जिस तरह की खबरें उत्तर प्रदेश को लेकर चल रही हैं उससे देश में यूपी सहित भारतीय जनता पार्टी की छवि भी धूमिल हो रही है. खासतौर से गंगा के किनारे दफ़न हजारों लाशों की तस्वीरें, जिन्हें कुत्ते नोच-नोच कर खा रहे हैं. बीजेपी के नेता इन तस्वीरों पर भले ही तर्क दे रहे हों की महामारी से पहले भी कई संप्रदाय ऐसे हैं जो अपने परिजनों को जलाने की बजाय गंगा के किनारे दफनाते हैं. लेकिन जनता इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है, क्योंकि उसने कभी भी गंगा के किनारे इतनी तादाद में लाशों का दफन होना देखा ही नहीं है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सबसे चिंता का विषय है उनके लोकसभा क्षेत्र बनारस का हाल जो कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में से एक है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस के तमाम डॉक्टरों और अधिकारियों से बातचीत करते हुए बनारस के हाल को लेकर भावुक हो गए थे. जिससे पता चलता है कि बनारस की स्थिति को लेकर पीएम मोदी कितने आहत हैं. इस हाई लेवल मीटिंग में विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की छवि को फिर से बेहतर बनाने की रणनीति भी तैयार की गई. इसके साथ ही इस मीटिंग में यह भी तय किया गया कि उत्तर प्रदेश को किस तरह से जल्द से जल्द कोरोना से मुक्त कराया जाए. विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की स्थिति सुधारने के लिए अब संघ के स्वंयसेवक और भारतीय जनता पार्टी के नेता एक साथ मिलकर तेजी से काम करेंगे जिससे विधानसभा चुनाव आने से पहले तक जनता के बीच भारतीय जनता पार्टी की स्थिति बेहतर हो जाए.
क्या अरविंद शर्मा को मिलने जा रही है बड़ी जिम्मेदारी?
ब्यूरोक्रेसी छोड़कर राजनीति में आए अरविंद कुमार शर्मा को अब उत्तर प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी जल्द ही मिल सकती है, एके शर्मा ने जब जनवरी में भारतीय जनता पार्टी ज्वॉइन किया था और फरवरी में उन्हें एमएलसी बना दिया गया था तब से ही यह चर्चा थी कि उन्हें उत्तर प्रदेश में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है. हालांकि, कोरोनावायरस की त्रासदी में इस कार्यक्रम को कुछ महीनों के लिए टाल दिया गया. लेकिन अब यह चर्चा फिर से तेज हो गई है कि ए के शर्मा को यूपी में कोई बड़ी जिम्मेदारी जल्द ही मिलने वाली है. उसका कारण है कि अरविंद कुमार शर्मा शुक्रवार को दिल्ली पहुंचे थे, जहां उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और उसके बाद सीधे उत्तर प्रदेश आकर सीएम योगी से मिले. हालांकि इन दोनों से अरविंद कुमार शर्मा की क्या बातचीत हुई यह तो सार्वजनिक रूप से मीडिया में नहीं आई लेकिन सूत्रों की माने तो यह कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें जल्द ही उत्तर प्रदेश में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है.
अरविंद कुमार शर्मा के पास भले ही अभी तक कोई जिम्मेदारी नहीं थी, लेकिन वह प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में और पूर्वी यूपी के 21 जिलों में लगातार सक्रिय थे और कोरोनावायरस से जूझ रहे इन जिलों पर नजर बनाए हुए थे. अरविंद कुमार शर्मा उन अफसरों में से हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गुजरात से लेकर पीएमओ तक उनके साथ रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन पर बहुत विश्वास करते हैं और हाल ही में उनके द्वारा उत्तर प्रदेश में किए गए कामों की भी उन्होंने सराहना की. यही वजह है कि अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर अपने मंत्रिमंडल को विस्तार देने का दबाव है जिसमें अरविंद कुमार शर्मा को भी शामिल किया जाएगा. कहा जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी भले ही इस महामारी में बनारस ना पहुंचे हों लेकिन अरविंद कुमार शर्मा पीएम मोदी के लिए पुल का काम कर रहे थे और बनारस का हर हाल उन्हें सटीक रूप से पहुंचा रहे थे.