क्या से क्या हुआ, गांधी तेरा देश !

​‘‘बिना पढ़े ही कह रहे, समाचार का सार।मानवता के खून से लथपथ है अखबार।।विजयदशमी के दिन जयश्री राम का उद्घोष करने वाले राष्ट्र में ऐसी क्रूर घटनाएं सामने आई कि हर किसी का दिल दहल उठा।

Update: 2021-10-17 01:15 GMT

आदित्य नारायण चोपड़ा: ​''बिना पढ़े ही कह रहे, समाचार का सार।मानवता के खून से लथपथ है अखबार।।विजयदशमी के दिन जयश्री राम का उद्घोष करने वाले राष्ट्र में ऐसी क्रूर घटनाएं सामने आई कि हर किसी का दिल दहल उठा। हर भारतीय को अपने देश पर गर्व है लेकिन जब मोर की भांति हम अपने पैरों की ओर देखते हैं तो बड़ी वितृषणा होती है।संपादकीय :ड्रग्स, रैकेट, आर्यन और क्षमा'दुर्गा पूजा' और 'शेख हसीना'आर्यन की जमानत और न्यायरूस, भारत और तालिबानचीन की अरुणाचल पर नजरेंदशहरे का व्यावहारिक अर्थ!लखीमपुर में किसानों को वाहनों से कुचल दिए जाने से उड़ी धूल अभी जमीन पर नहीं लौटी थी कि सिंधू बार्डर पर किसानों के प्रदर्शन स्थल के​ निकट एक युवक की निर्मम हत्या ने झकझोर कर रख दिया। हत्यारों ने पंजाब के युवक के हाथ-पांव काट दिए। वायरल वीडियो में मृतक रहम की भीख मांगता रहा लेकिन किसी को कोई रहम नहीं आया। कुछ निहंगों का दावा है कि उस व्यक्ति ने पवित्र पुस्तक का अनादर किया। यद्यपि धर्म की रक्षा को लेकर हथियार उठाने के संबंध में बहुत तर्क दिए जा रहे हैं और आरोपी ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण भी कर दिया है लेकिन किसान आंदोलन के साथ एक बहुत ही दुखद अध्याय जुड़ गया है। जो कुछ हुआ वह संविधान और मानवीयता की दृष्टि से किसी भी तरह से सहन करने योग्य नहीं है। किसान आंदोलन के नाम पर 26 जनवरी के दिन लालकिले पर तांडव को देश पहले ही देख चुका है लेकिन किसान आंदोलन के प्रति सहानुभूति के चलते समाज ने उस हुड़दंग को भुला भी दिया हो परन्तु सवाल यह खड़ा हो रहा है कि समाज में क्या देश में सड़कों पर खुलेआम हत्याएं करने वाला एक वर्ग तो पैदा नहीं हो रहा? ऐसी हिंसा समाज के लिए काफी खतरनाक है। इस देश में सजा देने का अधिकार केवल अदालत को है और किसी को नहीं। यद्यपि किसान आंदोलनकारियों ने इस घटना से पल्ला झाड़ लिया है लेकिन वे आंदेलन काे हिंसा मुक्त रखने की अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। इस निर्मम हत्या का दूसरा पहलू यह है कि पवित्र ग्रंथ की बेअदबी की घटनाएं पहले भी हुई हैं लेकिन दोषियों को दंडित किया ही नहीं गया। जो लोग पकड़े जाते रहे वे कुछ दिनों में ही जेलों से बाहर आ गए। ऐसे लग रहा है कि समाज अराजक हो चुका है। किसी की कोई सामाजिक प्रतिबद्धता नहीं। किसी के पास कोई कार्यक्रम नहीं, समाज में भटकाव की स्थिति है।''झूठ-घृणा, नफरत, दंगा, वैरभाव, विद्वेष,क्या था, क्या से क्या हुआ गांधी तेरा देश।''विजयदशमी के दिन छत्तीसगढ़ के जशपुर में गांजे से भरी गाड़ी दुर्गा झांकी निकाल रहे लोगों पर चढ़ा दी गई। जिसमें एक युवक की मृत्यु हो गई और 20 लोग घायल हो गए। यह घटना भी हृदय विदारक थी। लोग शांतिपूर्ण तरीके से भजन गाते जा रहे थे कि अचानक तेज रफ्तार गाड़ी घुस आई और लोगों को रौंदती चली गई। लोग इधर-उधर गिरते चले गए, इससे पहले वह कुछ समझ पाते बेसुध हो गए। कार के ड्राइवर और कार में मौजूद उसके एक साथी पर गांजे की तस्करी से जुड़े होने का आरोप है। गाड़ी में भारी मात्रा में गांजा बरामद होने से इसकी पुष्टि हो रही है। कार से लोगों को कुचल देने वाली घटना भले ही हादसा हो लेकिन नशे के कारोबार का रावण बेसुध होकर कई घरों को मातम दे गया और घायलों को गहरे जख्म दे गया। ऐसा लगता है ​कि असामाजिक तत्वों को सड़क पर चलते लोगों को रौंदने का अधिकार मिल गया है। अगर जुुलूस निकल रहा था तो पुलिस ने रूट डायवर्ट क्यों नहीं किया। आरोप लग रहे हैं कि पुलिस वालों की नशे के तस्करों से सांठगांठ है। सरकारों के पास किसी भी घटना को शांत करने के​ लिए दो-तीन ही हथियार होते हैं। एक पुलिस कर्मियों या अफसरों का निलम्बन और मृतकों और घायलों के लिए मुआवजे की घोषणा। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी ऐसा ही किया। विडम्बना यह है कि यहां हर हादसे पर सियासत शुरू हो जाती है। जिन लोगों को दंडित किया जाना चाहिए उनकाे महिमामंडित किया जाता है।सिंघू बार्डर पर युवक की हत्या करने के मामले में आरोपी काे कानूनी सहायता देने की घोषणा कर उसकी क्रूरता को जायज ठहराये जाने की कोशिशें की जा रही हैं। क्या सभ्य समाज सड़कों पर हत्याएं करने और राह चलते किसानों या धार्मिक जुलूस में शामिल लोगों को कुचलने वालों को स्वीकार नहीं कर सकता। सवाल यह है कि हम राष्ट्र का आराधन करे तो कैसे करें? अगर 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' है तो इसका यह हाल है यह सारे जहां से थोड़ा खराब होता तो क्या स्थिति रहती। यह बहुत जरूरी है कि समाज संविधान के अनुरूप व्यवहार करे लेकिन हो इसके​ विपरीत रहा है। अगर देश में संविधान की नहीं चली तो फिर लोगों का खून बहता रहेगा। धर्म के नाम पर कट्टरवाद पनपना घातक प्रवृत्ति है। समाज सहिष्णु बने इसलिए जरूरी है कि ठोस कदम उठाए जाएं। समाज के मूल्य कैसे बचें यह सवाल समाज से भी और सत्ता से भी है।

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