सार्वजनिक माफी के साथ कृषि कानूनों को वापस लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्या साबित किया ?
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का फैसला लेकर केवल विपक्ष को ही झटका नहीं दिया बल्कि ये भी साबित कर दिया है
संयम श्रीवास्तव कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का फैसला लेकर केवल विपक्ष को ही झटका नहीं दिया बल्कि ये भी साबित कर दिया है कि सही मायने में वे जननेता हैं. जननेता जनता की आवाज होते हैं, जननेता जनता की नब्ज समझते हैं, जननेता जनता के लिए हर कुर्बानी देने को तैयार रहते हैं. वास्तविक लोकतंत्र वहीं होता है जहां हर आदमी की सुनी जाती है, देश के अंतिम आदमी तक की आवाज को अनसुना नहीं किया जाता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज वही किया. उन्होंने यह जानते हुए भी कि किसान आंदोलन कोई राष्ट्रीय आंदोलन नहीं है फिर भी किसान कानूनों को वापस लेने की जहमत उठाई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज जिस तरह जनता के सामने आकर माफी मांगी वो उन्हें महान बनाता है. राष्ट्र के नाम संबोधन के दौरान उनका जेस्चर आज उन्हें विश्व के महान नेताओं की कतार में खड़ा करता है. उनके आलोचकों का ये कहना कि कृषि कानूनों की वापसी चुनावों को ध्यान में रखकर की गई है, अगर सही भी है, तो भी इसे जनता को ध्यान में रखकर लिया गया फैसला ही कहा जाएगा. वैसे भी किसान कानूनों की वापसी से बीजेपी को कोई बहुत बड़ा फायदा नहीं होने वाला है. यह भी हो सकता है कि बीजेपी को इस फैसले के चलते नुकसान उठाना पड़ जाए, क्योंकि विपक्ष अब इसे अपनी जीत के रूप में पेश करेगा. पंजाब को छोड़ दें तो जिन्हें बीजेपी को वोट नहीं देना है वे कृषि कानूनों की वापसी के बाद बीजेपी को वोट देंगे यह कहना सिर्फ खयाली पुलाव भर है. और पंजाब में बीजेपी का वैसे भी कोई स्टैक नहीं है.
जब चुनाव सर पर हों, जनता से सार्वजनिक माफी मांगना आसान काम नहीं
इतिहास में बहुत कम मौके ऐसे आए होंगे किसी देश में जनता के भारी बहुमत से चुनकर आया हुआ कोई लोकप्रिय नेता, विश्व राजनीति में अपनेी कौशल का परचम लहराने वाला कोई शख्स जनता के सामने क्षमा प्रार्थी बन गया हो. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने जेस्चर से अपने आलोचकों का मुंह हमेशा के लिए बंद करा दिया जो मानते रहें हैं कि वे अपने आगे किसी को नहीं समझते. प्रधानमंत्री ने जनता को संबोधित करते हुए कहा कि
' मैं देशवासियों से क्षमा मांगते हुए, सच्चे मन से कहता हूं कि शायद हमारी तपस्या में भी कोई कमी रह गई थी. हम अपनी बात कुछ किसान भाइयों को समझा नहीं पाए. आज गुरु नानक जी का प्रकाश पर्व है. आज मैं पूरे देश को ये बताने आया हूं, हमने 3 कृषि कानूनों को वापस करने का निर्णय किया है. हम तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की संवैधानिक प्रक्रिया जल्द शुरू करेंगे.
यह स्वीकार करना सरकार अपने बनाए कानून को समझा नहीं सकी
दीये के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसान भाइयों को समझा नहीं पाए, पीएम मोदी ने कहा कि हमारी सरकार देश के हित में, किसानों के हित में, कृषि के हित में, किसानों के प्रति पूर्ण समर्पण भाव से ये कानून लेकर आई थी. लेकिन इतनी पवित्र बात, पूर्ण रूप से किसानों के हित की बात, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए. कृषि अर्थशास्त्रियों ने किसानों को कृषि कानूनों को समझाने का पूरा प्रयास किया. हमने भी किसानों को समझाने की कोशिश की. हर माध्यम से बातचीत भी लगातार होती रही. पीएम ने कहा कि किसानों को कानून को जिन प्रावधानों पर दिक्कत था, उसे सरकार बदलने को भी तैयार हो गई. दो साल तक सरकार इस कानून को रोकने पर तैयार हो गई.
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने देश के हर चौक चौराहे पर , अपनी हर सभा में किसान कानूनों से होने वाले फायदे के बारे में देश की जनता को समझाया. पर किसान आंदोलन का रूप राजनीतिक हो जाने के चलते कुछ संगठन ये मानकर चल रहे थे कि पीएम की बात नहीं मानना है. पीएम ने अपनी ओर से हठधर्मिता न दिखाते हुए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने का फैसला ले लिया. यह उनके विरोधियों के लिए उनका मास्टर स्ट्रोक था. पीएम ने कहा कि किसानों की स्थिति सुधारने के लिए ही 3 कृषि कानून लाए गए थे. मकसद था कि किसानों को और ताकत मिले. उनको अपनी उपज बेचने का ज्यादा से ज्यादा विकल्प मिले. पहले भी कई सरकारों ने इसपर मंथन किया. इस बार भी संसद में चर्चा हुई, मंथन हुआ और ये कानून लाए गए. देश के कोने-कोने अनेक किसान संगठनों ने इसका स्वागत किया, समर्थन किया. मैं आज उन सभी का बहुत-बहुत आभारी हूं.
पीएम ने कहा कि किसानों को उनकी उपज का सही दाम मिले इसके लिए कई कदम उठाए गए हैं. हमारी सरकार द्वारा की गई उपज की खरीद ने पिछले कई दशकों के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. देश की 1000 से ज्यादा मंडियों को ई नाम योजना से जोड़कर हमने किसानों को कहीं पर भी अपनी उपज बेचने का एक प्लेटफॉर्म दिया. कृषि मंडियों के आधुनिकीकरण पर करोड़ों खर्च किए हैं. देश का कृषि बजट पहले के मुकाबले 5 गुना बढ़ गया है. हर वर्ष सवा लाख करोड़ कृषि पर खर्च किया जा रहा है. पीएम मोदी ने कहा कि आपदा के समय ज्यादा से ज्यादा किसानों को मुआवजा मिल सके इसके लिए नियम बदले गए. पिछले 4 सालों में किसान भाई बहनों को 1 लाख करोड़ से ज्यादा का मुआवजा मिला है. छोटे किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए सीधे उनके बैंक खातों में 1.62 लाख करोड़ रुपये ट्रांसफर किए गए.
केवल किसानों के एक वर्ग को थी दिक्कत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में एक बात नोट करने वाली थी कि उन्होंने जोर देते हुए कहा कि किसानों के एक वर्ग ने उनकी बात नहीं समझी. मतलब ये कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यकीन है कि आज भी अधिकतर किसानों को सरकार के तीनों कृषि कानूनों से कोई दिक्कत नहीं थी. इसके बावजूद पीएम ने कृषि कानूनों को वापस लेने का जज्बा दिखाया.
पीएम मोदी किसान कानूनों की जब भी चर्चा करते रहे उन्होंने ये बताने की कोशिश रहती कि ये कानून छोटे किसानों की जिंदगी में बहार लाएंगे. दरअसल देश में करीब 85 प्रतिशत किसान छोटे किसान ही हैं. कृषि कानूनों का मुख्य उद्दैश्य ही छोटे किसानों का कल्याण करना था. कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले करते हुए पीएम ने एक बार फिरछोटे किसानों की समस्याओं का जिक्र किया. पीएम मोदी ने कहा कि मैंने 5 दशक के अपने सार्वजनिक जीवन में किसानों की समस्याओं और चुनौतियों को काफी करीब से देखा है. जब देश ने 2014 में मुझे सेवा करना का मौका दिया तो हमने कृषि कल्याण को प्राथमिकता दी. छोटी सी जमीन के सहारे छोटे किसान अपना और अपना परिवारों का गुजारा करते हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी परिवारों में होने वाला बंटवारा इसे और छोटा कर रहा है. छोटे किसान की चुनौतियों को कम करने के लिए बीज, बीमा, बाजार और बचत पर चौतरफा काम किया है.