भारत में कोरोना संकट की दूसरी लहर के बीच अमेरिका से वैक्सीन के कच्चे माल की आपूर्ति

बीते दिनों लक्षद्वीप में अमेरिका द्वारा भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र के उल्लंघन और हाल में भारत

Update: 2021-04-27 16:48 GMT

विवेक ओझा। बीते दिनों लक्षद्वीप में अमेरिका द्वारा भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र के उल्लंघन और हाल में भारत को करेंसी मैनिपुलेटर देश की सूची में डालने के बाद से अमेरिका की सोच के बारे में कुछ अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा था कि क्या वह भारत में कोविड की दूसरी घातक लहर के बीच स्वास्थ्य सहयोग करेगा या निष्ठुर बना रहेगा। दरअसल अमेरिका ने कोरोना वैक्सीन के उत्पादन में काम आने वाले प्रमुख कच्चे माल के भारत को निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। उसने तर्क दिया था कि उसका पहला दायित्व अमेरिकी लोगों की जरूरतों को देखना है। लेकिन अब दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के मध्य बनी सहमति के बाद अमेरिकी व्हाइट हाउस ने बयान जारी किया है। बयान में कहा गया है कि अमेरिकी एनएसए जैक सुलिवान ने भारत के साथ एकजुटता जाहिर की है। दोनों देशों की सात दशकों की स्वास्थ्य साझेदारी है जिसमें पोलियो, एचआइवी और स्मॉलपॉक्स के खिलाफ लड़ाई लड़ी गई। अब दोनों देश कोरोना वायरस के खिलाफ भी साथ लड़ाई जारी रखेंगे।

महामारी की शुरुआत में जिस तरह भारत ने अमेरिका के लिए मदद भेजी थी, उसी तरह अमेरिका ने भी भारत को मुश्किल समय में मदद करने के लिए दृढ़ता दिखाई है। व्हाइट हाउस से जारी वक्तव्य के अनुसार अमेरिका ने कोविशील्ड वैक्सीन के भारत में निर्माण के लिए आवश्यक कच्चे माल की पहचान की है जो तुरंत भारत के लिए उपलब्ध कराए जाएंगे। भारत में फ्रंटलाइन हेल्थकेयर वर्कर्स को बचाने और कोरोना मरीजों के इलाज के लिए जरूरी वेंटीलेटर्स, पीपीई किट्स, रैपिड डायग्नॉस्टिक टेस्ट किट्स आदि भी तुरंत मुहैया करवाई जाएंगी।
इसके साथ ही यूएस डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन भारत के हैदराबाद स्थित वैक्सीन विनिर्माता कंपनी बायोलॉजिकल ई लिमिटेड की कोविड वैक्सीन की विनिर्माण क्षमता में महत्वपूर्ण विस्तार देने के लिए उसे फंडिंग कर रहा है जिससे बायोलॉजिकल ई लिमिटेड वर्ष 2022 के अंत तक कम से कम एक अरब कोविड वैक्सीन डोजों को उत्पादित कर सके। इसके अलावा, अमेरिका भारत के कोविड आपदा से निपटने में उसे सहयोग देने के नाम पर पब्लिक हेल्थ एडवाइजर्स की एक विशेषज्ञ टीम की तैनाती कर रहा है जो सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल और यूएस एड से जुड़े हुए हैं।
यहां भारतीय हितों की भूमिका का भी उल्लेख किया जा सकता है। भारतीय मूल के अमेरिकी सांसद राजा कृष्णमूर्ति ने बाइडन प्रशासन से निवेदन किया था कि वो एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की डोज को उन देशों में भेजे जहां कोरोना महामारी विकराल रूप ले चुकी है। उनका कहना था कि अभी अमेरिका के पास एस्ट्राजेनेका के लगभग चार करोड़ डोज हैं जिसे अमेरिका अभी उपयोग में नहीं ला रहा है और इसे मैक्सिको व कनाडा को मदद देने के लिए भेजने की बात हुई है। उन्होंने इसे भारत व अर्जेंटीना भी भेजने का निवेदन किया। भारत में बढ़ते कोरोना मामलों को देखते हुए जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने भी कहा है कि वे भारत को सहायता देने के लिए 'मिशन टू सपोर्ट' को तैयार कर रही हैं। इसी क्रम में यूरोपीय संघ ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वह भारत को हरसंभव सहायता प्रदान करेगा। यूरोपियन इमरजेंसी रिस्पॉन्स कोर्ऑिडनेटर ने भी हाल ही में सूचित किया है कि यूरोपीय संघ ने भारत को कोविड संकट से निपटने के लिए मदद करने के लिए अपने सिविल प्रोटेक्शन मैकेनिज्म को सक्रिय किया है। ब्रिटिश हाइ कमीशन ने भी घोषणा की है कि वह भारत को इस मुश्किल घड़ी में 600 से अधिक अति महत्वपूर्ण उपकरण भेजेगा।
वैश्विक सहयोग पाने का हकदार भारत : भारत ने वैश्विक स्तर पर अपनी चिकित्सा मानवाधिकारवादी आपूर्ति के जरिये विश्व समुदाय की जो सेवा पिछले एक वर्ष में की है, उससे भारत अपने संकट की घड़ी में दुनिया के देशों के सहयोग का हकदार है। भारत ने मार्च तक 69 देशों को 583 लाख कोविड वैक्सीन की डोज दी है। खास बात यह है कि वैक्सीन की इन डोज में से बहुत सारी वैक्सीन मैत्री के तहत मुफ्त में भी उपलब्ध कराई गई है। भारत ने वैक्सीन मैत्री के तौर पर करीब 80 लाख वैक्सीन डोज देशों में मुफ्त में पहुंचाई है। वहीं, 338 लाख डोज कमर्शियल तौर पर दी गई है यानी बेची गई है।

भारत की भूमिका को संज्ञान में लेते हुए नोबेल शांति पुरस्कार विजेता संगठन डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने हाल ही में अमेरिका यूरोपीय संघ के देशों और अन्य संबंधित देशों से यह निवेदन किया था कि वह सस्ते कीमत वाली कोरोना वैक्सीन के निर्माण के लिए भारत और दक्षिण अफ्रीका के पेटेंट छूट संबंधी प्रस्ताव का विरोध न करें। भारत और अफ्रीका यह चाहते हैं कि डब्ल्यूटीओ कोरोना वैक्सीन से संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकारों और पेटेंट सीमाओं का उन्मूलन करें, ताकि इस महामारी से निपटने के लिए विकासशील देशों में कोविड वैक्सीन और अन्य संबंधित नई प्रौद्योगिकियां पहुंच सकें, क्योंकि कोविड वैक्सीन के पेटेंट संबंधी मुद्दे को लेकर विश्व व्यापार संगठन की एक अनौपचारिक बैठक होने वाली है।
लिहाजा डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने डब्ल्यूटीओ सहित बड़े देशों से यह आग्रह किया है। यहां मार्च में क्वाड के चार सदस्य देशों के नेताओं की पहली वर्चुअल मीटिंग का उल्लेख महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के शासनाध्यक्षों ने कोविड वैक्सीन को लेकर सकारात्मक सोच को जाहिर किया था। इससे क्वाड को एक सकारात्मक और समावेशी सोच वाले फोरम के रूप में प्रस्तुत किया गया था। अब जब मार्च में दुनिया के ये बड़े देश विशेषकर अमेरिका कोविड के मुद्दे पर बेहतर स्वास्थ्य साझेदारियों को बढ़ाने की बात कर चुका है तो उसे कायदे से भारत को सहयोग देने के लिए अग्रसर होना चाहिए था, उसे भारत के लिए अड़चने नहीं पैदा करनी थी। नहीं तो ऐसे संगठनों और साझेदारों का कोई फायदा नहीं होगा। अब जब अमेरिका ने इस बात को समझा है कि लगभग साढे़ तीन लाख कोविड मामलों को प्रतिदिन झेलने वाले भारत को मदद नहीं की और प्रतिबंधात्मक रुख नहीं हटाया तो उस पर तमाम सवाल उठ खड़े होंगे, उसकी मानवाधिकारवादी सोच पर देश प्रश्न उठाने लगेंगे, तब जाकर अमेरिका के रुख में बदलाव आया है।
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