Editorial: शीतलहर और प्रदूषण का दोहरा प्रहार

Update: 2024-12-21 12:37 GMT
Vijay Garg: कें द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक बुधवार सुबह आठ बजे 481 अंकों के साथ फिर से 'गंभीर श्रेणी' में पहुंच गया। वायु प्रदूषण में इस कदर की वृद्धि करीब तीन सप्ताह के अंतराल के बाद हुई है, जब 'ग्रेडेड रेस्पॉन्स एक्शन प्लान' के चौथे चरण के तहत प्रतिबंध लगाए गए थे। प्रदूषण को ठंड का भी साथ मिला है। दिल्ली स्थित क्षेत्रीय मौसम पूर्वानुमान केंद्र ने सुबह में धुंध और मध्यम से घना कोहरा रहने, आंशिक रूप से बादल छाए रहने और न्यूनतम तापमान लगभग छह डिग्री रहने का अनुमान लगाया। जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के साथ ही दिल्ली में भी शीतलहर चलने की बात कही गई है।
दरअसल, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग शीतलहर की घोषणा तब करता है, जब किसी मैदानी इलाके में न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस या इससे कम हो जाता है, जबकि पहाड़ी इलाकों में तापमान शून्य डिग्री या इसके नीचे चला जाता है। सामान्य और मूल तापमान के बीच के अंतर के लिहाज से देखें, तो शीतलहर की स्थिति तब मानी जाती है, जब तापमान सामान्य से 4.5 से 6.4 डिग्री सेल्सियस कम हो, जबकि गंभीर शीतलहर में तापमान में सामान्य से 6.4 डिग्री सेल्सियस से अधिक की गिरावट आती है। वैसे, वास्तविक न्यूनतम तापमान (केवल मैदानी इलाकों के लिए) के आधार पर बात करें, तो शीतलहर में न्यूनतम तापमान चार डिग्री या इससे कम हो जाता है, जबकि गंभीर शीतलहर की स्थिति में यह घटकर दो डिग्री सेल्सियस या इससे कम हो जाता है। हालांकि, नवंबर से मार्च तक उत्तर भारत सहित अन्य क्षेत्रों में शीतलहर की स्थिति आम मानी जाती है,
लेकिन दिसंबर से फरवरी के बीच इसकी मारकता हमें ज्यादा परेशान करती है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है।
अत्यधिक गर्मी की तरह अत्यधिक सर्दी भी बेघरों, बुजुर्गों, आर्थिक रूप से विपन्न, दिव्यांगों, गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली स्त्रियों, बच्चों, किसानों, खुले में काम करने वाले मजदूरों और उन लोगों को परेशान करती है, जो बिना उचित गर्माहट के या मौसम के प्रतिकूल हालात में काम करने के लिए मजबूर हैं। अगर एहतियाती उपाय नहीं किए गए, तो अत्यधिक ठंड कई तरह से नुकसान भी पहुंचा सकती है, यहां तक कि इंसान की मौत भी हो सकती है।
ठंड लगने से हाइपोथर्मिया, फ्रॉस्टबाइट, यानी अत्यधिक ठंड से सुन्न हो जाना, ट्रेंचफुट, चिलब्लेन जैसी परेशानियां हो सकती हैं। इनमें सबसे अधिक जानलेवा स्थिति हाइपोथर्मिया है, जो बहुत ठंडे तापमान के संपर्क में लंबे समय तक रहने के कारण होती है और शरीर जितनी गर्मी पैदा कर सकता है, उससे ज्यादा तेजी से खोने लगता है। इससे शरीर का तापमान बहुत कम हो जाता है, जिससे मस्तिष्क प्रभावित होता है. और व्यक्ति ठीक ढंग से सोचने या चलने में असमर्थ हो जाता है। उल्लेखनीय है कि हाइपोथर्मिया तब भी खतरनाक बन सकती है, जब कोई व्यक्ति बारिश, पसीने या ठंडे पानी में डूबने से ठंडा हो जाता है।
होता यह भी है कि तापमान के नीचे गिरने के बाद हमारे शरीर की रक्त वाहिकाएं सिकुड़ने लगती हैं और हमारा रक्तचाप (बीपी) बढ़ने लगता है। इससे हमारे हृदय पर दबाव बढ़ने लगता है, जिससे स्वाभाविक तौर पर दिल के दौरे या हृदयाघात का खतरा बढ़ जाता है । अत्यधिक ठंड हमारे हृदय की धड़कनों को भी असामान्य बना देती है, जिससे खासतौर पर उन लोगों के लिए जानलेवा स्थिति बन सकती है, जो पहले से ही हृदय संबंधी बीमारियों से ग्रसित हैं। ब्रिटेन, आयरलैंड और नीदरलैंड में 60 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों पर किए गए एक व्यापक अध्ययन में पाया गया कि ठंड यदि चार दिनों का भी रहा, तो दिल के दौरे और हृदयाघात की आशंका दोगुनी से अधिक बढ़ जाती है। यह अध्ययन दरअसल महीने के बाकी दिनों की तुलना में विशेष रूप से ठंडे दिनों को परिभाषित करने के उद्देश्य से किया गया था। इसमें तापमान की पिछले दिनों की तुलना में गिरावट को हृदयाघात का मुख्य कारक माना गया, न कि महसूस होने वाले ठंड को । शीतलहर और सर्द हवाएं कई तरह से हमारे फेफड़ों पर भी नकारात्मक असर डालती हैं। ठंडी हवा आम तौर पर शुष्क होती है और श्वसन मार्ग को प्रभावित करती है, जिससे घरघराहट, खांसी और सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। यह स्थिति अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी बीमारियों से ग्रसित लोगों के लिए विशेष रूप से खतरनाक हो सकती है। ठंडी हवा श्वसन मार्ग को संकीर्ण और सख्त कर सकती है, जिससे सांस लेने में तकलीफ हो सकती है, जो विशेष रूप से छोटे बच्चों को प्रभावित कर सकती है। ठंड की स्थिति में हवा की गुणवत्ता भी खराब हो जाती है और पार्टिकुलेट मैटर, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों जैसे प्रदूषकों के संपर्क में आने से फेफड़ों में जलन और श्वसन संबंधी परेशानियां बढ़ सकती हैं। इसलिए पिछले दो दिनों में प्रदूषण बढ़ने के साथ ही लोगों में खांसी और सांस संबंधी समस्याएं बढ़ गई हैं। जाहिर है, इस समय हमें कई तरह की सावधानियां बरतनी चाहिए। बढ़ने के साथ ही पर्याप्त गर्म कपड़े पहनने की सलाह डॉक्टर देते ही हैं। हाथ-पैरों की ठंड से बचाना चाहिए तथा जितना संभव हो सके, उतनी हमें अपनी खुली त्वचा को ढकना चाहिए। मास्क का प्रयोग भी किया जाना चाहिए, जो हमें प्रदूषण से भी बचाता है। पर्याप्त फल-सब्जियों का सेवन करना चाहिए और मोटे अनाज, फलियां, मेवे और पशु स्रोतों से प्राप्त खाद्य पदार्थों का उपयोग करना चाहिए। नियमित व्यायाम भी आवश्यक है। इससे हमारा प्रतिरक्षा तंत्र बेहतर बनता है।
उम्रदराज लोगों, शिशु और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों, दिव्यांगों एवं पुरानी बीमारियों से पीड़ित लोगों पर खतरा अधिक होता है, इसलिए उनका विशेष ख्याल रखना आवश्यक है। अच्छी बात यह है कि कई शहरों में स्थानीय परिस्थितियों के मुताबिक प्रदूषण से निपटने के लिए कार्य योजनाएं तैयार की जा रही हैं, जो लघु, मध्यम व दीर्घ समयावधि की हैं। इनमें सड़कों के प्रदूषण से निपटना, निर्माण कार्य वाले प्रदूषकों से पार पाना, अपशिष्टों के जलाने पर रोक जैसे उपाय किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं, कई तरह की एजेंसियों से भी संपर्क किया जा रहा है, ताकि प्रदूषण मुक्ति के मार्ग की तमाम चुनौतियों से पार पाया जा सके।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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