दोस्ती के पैगाम के साथ शुरू हो रही अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन की भारत यात्रा

अमेरिका के विदेश मंत्री ब्लिंकन भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के न्योते पर भारत आ रहे हैं

Update: 2021-07-26 14:51 GMT

अमेरिका के विदेश मंत्री ब्लिंकन भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के न्योते पर भारत आ रहे हैं. मई माह में जयशंकर अमेरिका में थे, और ब्लिंकन तब उनके मेज़बान थे. लेकिन ब्लिंकन के दिल्ली पहुंचने में 24 घंटे से ज़्यादा का समय है और अमेरिका ने यह घोषणा कर दी कि उसकी भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मामलों में मध्यस्थता करने का कोई इरादा नहीं है. मध्य और दक्षिण एशियाई मामलों की ज़िम्मेदारी संभालने वाले सह विदेशमंत्री, यानी असिस्टेंट सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट, डीन थॉमसन ने कहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच के मामलों को इन्हीं दोनों मुल्कों को खुद ही सुलझाना होगा.

आपको याद होगा, पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने, एक बार से ज़्यादा बार, भारत और पाकिस्तान में बढ़ते तनाव को काम करने के लिए मध्यस्थता की पेशकश की थी, जिसे भारत ने शिष्टाचार के साथ नकार दिया था. लेकिन पाकिस्तान से जुड़े दो अंतरराष्ट्रीय विषय हैं जिनके बारे में भारत अमेरिका से बात करेगा. ये हैं FATF यानी Financial Action Task Force की अंतिम शर्त को पूरा करना.
जून महीने में हुई अपनी मीटिंग में FATF ने कहा था कि राष्ट्रसंघ ने लश्करे तैबा, जैशे मोहम्मद, तालेबान और अल क़ाएदा जैसे संगठनों को आतंकवादी क़रार दिया था और पाकिस्तान को इनके नेताओं पर कानूनी के मुताबिक़ मुक़दमा चला कर इन्हें सज़ा दिलाने को कहा था. लेकिन पाकिस्तान इस काम में पूरी तरह असफल रहा है. इसके साथ साथ पाकिस्तान अभी भी विदेशों से आये आतंकवादियों की पनाहगाह बना हुआ है. अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी और उप राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह साफ कह चुके हैं कि तालिबान पाकिस्तान की शह, ट्रेनिंग और सैनिक मदद से तेज़ी से देश के ज़िलों में अपने पैर पसार रहा है.
अफगानिस्तान और तालिबान पर होगी बात
भारत ब्लिंकन से अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका पर ज़रूर बात करना चाहेगा. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का बढ़ता कब्ज़ा, और अमेरिकी फ़ौज की वापसी से पैदा होने वाली स्थिति पर भी ब्लिंकन और भारतीय विदेशमंत्री अपने विचार साझा करेंगे. भारत चिंतित है कि कहीं तालिबान अपने कब्ज़े वाले इलाके में फिर रूढ़िवादी इस्लाम कानून लागू करना शुरू न कर दें जिसकी बहुत आशंका है. भारत अमेरिका से यह भी कहेगा कि उसने अफ़ग़ानिस्तान में पिछले कई सालों में विकास कार्यों में तीन अरब डॉलर से ज़यादा का निवेश किया है, अंतरराष्ट्रीय समाज को यह सुनिश्चित करने की ज़रुरत है कि अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों की बेहतरी के लिए बनाए गए इन प्रोजेक्ट्स को तालिबान नुकसान न पहुचाये. पूरे दक्षिण और मध्य एशिया में तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान पर बढ़ते कब्ज़े के परिणामों पर भी जयशंकर और ब्लिंकन ज़रूर बात करेंगे.
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए ज़रूरी वैक्सीन को बनाने में काम आने वाले मटीरियल और उनकी सप्लाई सुनिश्चित करने में भी भारत अमेरिका से पूरा सहयोग चाहेगा. QUAD देशों की जमात ने कोरोना वायरस का मुकबला करने के लिए इंडो पैसिफिक इलाके के ज़रूरतमन्द देशों में वैक्सीन पहुंचाने की एक योजना बनाई थी, जिसे QUAD वैक्सीन इनिशिएटिव का नाम दिया गया था. अगर सब सही रहा तो 2022 में भारत में बनी वैक्सीन इंडो पैसिफिक देशों को मुहैया कराई जा सकेगी. भारत अमेरिका से इस विषय में कच्चे माल की सप्लाई पर ज़रूर अमेरिका से पक्का वायदा चाहेगा.
इंडो पैसिफिक क्षेत्र में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच QUAD मंच पर बड़े स्तर पर विचार और सहयोग बढ़ाने पर भी भारतीय और अमेरिकी डेलेगेशन में बात होगी यह तय है.
QUAD देशों के विदेशमंत्री की बैठक
कोशिश तो यह भी है कि इसी साल आगे, QUAD देशों के विदेशमंत्री की एक बैठक बुलाई जाए.
इसी साल आगे अमेरिका और भारत के विदेश और रक्षामंत्री अगली 2+2 मीटिंग के लिए अमेरिका में मिलेंगे. इस बैठक से पहले दोनों पक्ष आपस में प्रतिरक्षा के मामलों में सहयोग, मसलन सैनिक अभ्यास, रक्षा टेक्नोलॉजी ट्रांसफर वगैरह को बढ़ाने पर ज़ोर देंगे, ऐसी आशा है. राष्ट्रसंघ में भी भारत और अमेरिका विभिन्न मुद्दों पर आपसी तालमेल से काम कर सकते हैं. यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि भारत अगस्त महीने में सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष पद संभालेगा.
एक महत्वपूर्ण सवाल भारतीय जनों की अमेरिका को यात्रा को लेकर है. भारत अमेरिका से कहने वाला है कि कोविड प्रोटोकोल का पालन करते हुए भारतीय नागरिकों, खासकर स्टूडेंट्स, प्रोफेशनल्स और बिज़नेस ट्रैवेलर्स को अमेरिका आने जाने में परेशानी न हो, इसका ध्यान रखा जाए. दोनों पक्षों में इनके साथ साथ क्लाइमेट चेंज, हेल्थकेयर, शिक्षा, डिजिटल प्रसार, इन्नोवेशन, व्यापार और निवेश पर भी बातचीत तय है.
मानवाधिकारों पर बात न हो ऐसा हो नहीं सकता
लेकिन, अमेरिका में डेमोक्रैट राष्ट्रपति हो और मानवाधिकारों पर बात न हो ऐसा हो नहीं सकता.
तो जैसी उम्मीद थी, ब्लिंकन भी अपने दिल्ली प्रवास में ह्यूमन राइट्स और डेमोक्रेसी पर भारतीय नेतृत्व से बात करेंगे. सह विदेश मंत्री, डीन थॉमसन ने कहा है कि अमेरिका भारत के साथ मानवाधिकारों पर विचार विमर्श जारी रखेगा, क्योंकि इन दोनों देशों में इस मूल्य और आदर्श पर समानताएं असमानताओं से ज़्यादा हैं.
भारत ने रविवार यानी कल इस पेशकश पर अमेरिका से कहा कि डेमोक्रेसी और ह्यूमन राइट्स जैसे मुद्दे हर जगह हैं और ये किसी एक राष्ट्रीय या सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ऊपर हैं. भारत को इन दोनों मुद्दों पर अपनी उपलब्धि पर गर्व है, और इस सम्बन्ध में अपने अनुभव साझा करने में उसे ख़ुशी होगी.
ऐसा कभी नहीं होता कि दो मित्रदेशों में सभी मुद्दों पर सहमति बने, एक परिवार में भी नहीं, फिर देश तो परिवार से बहुत बड़ा होता है. बेहतर ये है कि जनतांत्रिक मूल्यों, परस्पर मेल खाते हितों, आपसी समझबूझ और एक दूसरे के नज़रिये के लिए सम्मान के आदर्शों को मानते हुए भारत अमेरिका समबन्ध मज़बूत होते रहे. और यह भी याद रखना चाहिए कि दो देशों के सम्बन्ध हमेशा सामान नहीं रहते. diplomacy का नियम है – दोस्त कभी स्थाई नहीं होते.


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