जल्द बने समान संहिता: आज का भारत जाति, मजहब और समुदाय से ऊपर उठ चुका, समान नागरिक संहिता वक्त की जरूरत
दिल्ली उच्च न्यायालय ने तलाक के एक मामले की सुनवाई करते हुए समान नागरिक संहिता को वक्त की जरूरत बताकर एक बार फिर इस मसले पर जारी बहस को बल प्रदान करने का काम किया है।
भूपेंद्र सिंह| दिल्ली उच्च न्यायालय ने तलाक के एक मामले की सुनवाई करते हुए समान नागरिक संहिता को वक्त की जरूरत बताकर एक बार फिर इस मसले पर जारी बहस को बल प्रदान करने का काम किया है। अब इस मसले पर केवल बहस ही नहीं होनी चाहिए, बल्कि आगे भी बढ़ा जाना चाहिए, क्योंकि संविधान निर्माताओं की अपेक्षाओं को पूरा करने में जरूरत से ज्यादा देर हो चुकी है। समान नागरिक संहिता का निर्माण करने की दिशा में केवल इसलिए आगे नहीं बढ़ा जाना चाहिए कि संविधान निर्माताओं ने ऐसी अपेक्षा की थी, बल्कि इसलिए भी बढ़ा जाना चाहिए, क्योंकि इससे कई समस्याओं का निराकरण होगा और हमारा समाज अधिक समरस एवं एकजुट दिखेगा। ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि समान नागरिक संहिता बन जाने के बाद अलग-अलग समुदायों के लिए शादी, तलाक, गुजारा भत्ता, गोद लेने की प्रक्रिया और विरासत से जुड़े अधिकार एक जैसे हो जाएंगे। आखिर इसमें क्या कठिनाई है? कठिनाई है तो इच्छाशक्ति का अभाव और कुछ राजनीतिक दलों की संकीर्णता।