सच आएगा सामने

सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस स्पाईवेयर प्रकरण में केंद्र सरकार की दलीलों को ठुकराते हुए इसकी विस्तृत और पारदर्शी जांच कराने का फैसला किया और इसके लिए तीन सदस्यों की एक समिति भी गठित कर दी।

Update: 2021-10-28 02:21 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस स्पाईवेयर प्रकरण में केंद्र सरकार की दलीलों को ठुकराते हुए इसकी विस्तृत और पारदर्शी जांच कराने का फैसला किया और इसके लिए तीन सदस्यों की एक समिति भी गठित कर दी। मीडिया समूहों के एक इंटरनैशनल कॉन्सर्शियम की ओर से करीब तीन महीने पहले आई इस रिपोर्ट ने दुनिया भर में हलचल मचा दी थी कि इस्राइली कंपनी एनएसओ ग्रुप के फोन हैकिंग सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए विभिन्न देशों में नागरिकों की जासूसी कराई गई। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि इसके मार्फत भारत में भी 50,000 लोगों के फोन को निशाना बनाया गया। इनमें न केवल नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और बिजनेसमेन बल्कि जिम्मेदार और संवैधानिक पदों पर बैठे लोग भी थे। मामले का एक महत्वपूर्ण पहलू यह रहा कि एनएसओ ग्रुप ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा, यह उपकरण प्राइवेट पार्टियों को नहीं बेचा जाता, सिर्फ सरकारों को दिया जाता है क्योंकि इसका मकसद आतंकवाद जैसी गतिविधियों पर रोक लगाने में मदद करना है। इसके बाद स्वाभाविक रूप से भारत में भी सबका ध्यान सरकार की ओर गया। संसद में भी यह सवाल उठा और सरकार से इस पूरे मामले की भरोसेमंद जांच कराने की मांग की गई।

मगर सरकार तमाम आरोपों का खंडन करने से आगे नहीं बढ़ी। उसने देश की सुरक्षा का मामला बताते हुए इसमें ज्यादा कुछ कहने से भी इनकार कर दिया। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान भी कोर्ट के आग्रह के बावजूद सरकार ने न तो विस्तृत हलफनामा दायर किया और न ही स्पष्ट तौर पर यह कहने के लिए तैयार हुई कि सरकार के किसी विभाग ने पेगासस खरीदा है या नहीं और उसका किसी रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है या नहीं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह कहना बहुत महत्वपूर्ण है कि सरकार हर मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ लेकर नहीं बच सकती। वैसे कोर्ट ने माना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में एक हद तक नागरिकों की निजता के अधिकार का उल्लंघन मान्य हो सकता है, लेकिन उसने स्पष्ट किया कि ऐसा हर उल्लंघन कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने समिति की जांच के दायरे को जितना विस्तृत रखा है, उससे साफ है कि वह इस संवेदनशील मामले के हर महत्वपूर्ण पहलू की बारीकी से जांच सुनिश्चित करना चाहता है। बहरहाल, सरकार ने पेगासस मामले में अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया है या नहीं यह तो जांच पूरी होने के बाद पता चलेगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह संदेश जरूर दिया है कि लोकतंत्र में नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के मामलों को हलके में नहीं लिया जा सकता।

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