भरोसे का खाता
सरकार ने जमा बीमा एवं ऋण गारंटी निगम यानी डीआइसीजीसी अधिनियम में संशोधन कर बैंकों के डूबने या उन पर किसी प्रकार का प्रतिबंध लगने की स्थिति में ग्राहकों को पांच लाख रुपए तक की जमा राशि वापस दिलाने की गारंटी सुनिश्चित की है।
सरकार ने जमा बीमा एवं ऋण गारंटी निगम यानी डीआइसीजीसी अधिनियम में संशोधन कर बैंकों के डूबने या उन पर किसी प्रकार का प्रतिबंध लगने की स्थिति में ग्राहकों को पांच लाख रुपए तक की जमा राशि वापस दिलाने की गारंटी सुनिश्चित की है। पहले यह गारंटी केवल एक लाख रुपए तक थी। यानी कोई बैंक दिवालिया घोषित कर दिया जाता या किसी अनियमितता की वजह से रिजर्व बैंक उस पर प्रतिबंध लगा देता है, उसका लाइसेंस रद्द कर देता है, तो डीआइसीजीसी उसके ग्राहकों को पांच लाख रुपए तक का भुगतान कराएगा। इससे निस्संदेह बहुत सारे छोटे निवेशकों को राहत मिलेगी। पंजाब एवं महाराष्ट्र बैंक के डूबने के बाद बहुत सारे निवेश्कों का भविष्य अंधकारमय हो गया था। तब उनकी जमा पूंजी वापस दिलाने के लिए बड़े पैमाने पर दबाव बनने शुरू हो गए थे। तभी सरकार ने एक लाख रुपए की गारंटी के बावजूद उन ग्राहकों को पांच लाख रुपए तक देने का आदेश दिया था। उसके बाद यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक भी संकट में आ गए थे। ऐसे में मांग उठनी शुरू हुई थी कि बैंकिंग प्रणाली को भरोसेमंद बनाया जाना चाहिए। उस भरोसे की बहाली की दिशा में यह एक बड़ा कदम माना जा सकता है।
हालांकि किसी भी देश में बैंकों का दिवालिया होना, डूब जाना अर्थव्यवस्था के लिहाज से अच्छा संकेत नहीं माना जाता। इसलिए सरकारें उन्हें उबारने का भरसक प्रयास करती हैं। मगर भारत के सहकारी बैंकों में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं देखी जाने लगी हैं। वे कई बार रिजर्व बैंक के नियम-कायदों की अनदेखी करते हुए भ्रष्टाचार को पोसते देखे जाते हैं। हालांकि पीएमसी बैंक के डूबने और यस बैंक, लक्ष्मी विलास बैंक की गड़बड़ियों के बाद रिजर्व बैंक ऐसे बैंकों की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने लगा है। मगर इन छोटे बैंकों को बड़े उद्यमी अपना मोहरा बना कर वित्तीय अनियमितता के रास्ते निकालने का प्रयास करते रहते हैं। नोटबंदी के वक्त भी कई सहकारी बैंकों में रहस्यमय तरीके से बड़े पैमाने पर पुराने नोट जमा कराने के मामले उजागर हुए थे। पीएमसी बैंक ने सहकारी की श्रेणी से निकल कर मुख्यधारा बैंकिंग कारोबार में पैर जमाने के प्रयास में बड़े पैमाने पर अनियमितता की थी। यस बैंक भी कुछ बड़े कारोबारियों की साजिशों का शिकार हुआ था। इसलिए रिजर्व बैंक की कड़ी निगरानी के बावजूद सहकारी और छोटे बैंक अभी पूरी तरह सुरक्षित नहीं माने जा सकते।
सहकारी बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में आमतौर पर छोटे निवेशकों का पैसा जमा होता है, जिनमें दिहाड़ी मजदूर, रेहड़ी-पटरी कारोबारी, छोटे-मोटे रोजगार करने वाले, किसान आदि शामिल होते हैं। कुछ लोग कह सकते हैं कि इन लोगों में से ज्यादातर की जमा राशि पांच लाख रुपए से अधिक नहीं होगी। बैंक के डूबने पर अब उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। मगर इन वर्गों में भी बहुत सारे लोग ऐसे हो सकते हैं, जिनकी जमा राशि पांच लाख से अधिक होगी और वह उनके खून-पसीने की कमाई होगी। उस कमाई का डूब जाना किसी भी रूप में उनसे सहन नहीं होगा। इसलिए इस गारंटी के साथ-साथ बैंकों की विश्वसनीयता बनाने की जरूरत फिर भी बनी हुई है। ग्राहकों के पैसे डूबने का खतरा केवल छोटे बैंकों में नहीं है, बड़े बैंकों में भी इंटरनेट अदि माध्यमों से धोखाधड़ी के मामले रोज आते हैं, उनमें से बहुतों का निपटारा नहीं हो पाता। इसलिए पूरी बैंकिंग प्रणाली की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता और भरोसेमंद बनाने की आवश्यकता है।