जडेजा ने ऐसा खेल दिखाया, जैसे यह आईपीएल का कोई मुकाबला था. भुवी ने शमी की तरह अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की, लेकिन वह भी महंगे साबित हुए. कुल मिलाकर दो पाकिस्तानी बल्लेबाजों ने पांचों भारतीय गेंदबाजों पर जोरदार हमला किया और उन्हें बेहद कमजोर साबित कर दिया. जब पांचों भारतीय गेंदबाजों का प्रदर्शन बेहद खराब रहा तो निशाने पर सिर्फ एक पर क्यों लिया गया? क्योंकि वह मुस्लिम है? और इसी वजह से उसने विकेट न लेने साजिश रची? ट्रोल्स सोचते हैं उनकी हरकतों को जायज ठहराने के लिए यही तर्क काफी है, लेकिन बाकी चारों गेंदबाजों के लिए उनके पास क्या बहाना है? उन्हें तो किसी ने ट्रोल नहीं किया. वे चारों तो गैर-मुस्लिम थे. उन्हें तो मैच के दौरान सभी 10 विकेट लेने चाहिए थे.
शमी ने जब मैच जिताए तो क्या वे मुस्लिम नहीं थे
क्या शमी 2017 के दौरान मुस्लिम नहीं थे, जब उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ विजाग में 35 रन देकर 5 विकेट लिए थे? या 2013 में तब जब उन्होंने 47 रन पर 5 विकेट चटकाकर वेस्ट इंडीज को जोर का झटका दिया था? या फिर पर्थ में जब उन्होंने 56 रन देकर ऑस्ट्रेलियाई टीम के 6 विकेट चटकाए थे? उन मौकों पर तो हम खुशी से झूम रहे थे. शमी, ऐसी ओछी हरकतों से आपको जरूर तकलीफ हुई होगी, लेकिन आप इस बात से सुकून महसूस करें कि हममें से ज्यादातर लोग भी इन ट्रोल्स की बातों से उतने ही आहत हैं. न सिर्फ आपको निशाना बनाया जाना अक्षम्य है. बल्कि सोशल मीडिया पर किसी को भी ऐसे चुनकर टारगेट करने का फैशन एक घिनौनी हरकत है.
आईपीएल के तमाशाई माइंडसेट के साथ खेला पाकिस्तान के साथ मैच
अगर इस मुकाबले का छोटा-सा विश्लेषण करें तो हमने इस मैच को आईपीएल के तमाशाई माइंडसेट के साथ खेला. एक आम मैच की तरह. इसके अलावा मैच को लेकर हमारा रुख भी प्रतिक्रियात्मक था. रोहित पाकिस्तानी गेंदबाजों के सामने बेबस नजर आ रहे थे. राहुल को नो बॉल पर आउट दिए जाने पर ट्विटर पर हंगामा मचा है, लेकिन जो हुआ उसे आप बदल नहीं सकते कि हमने एक भी विकेट हासिल नहीं किया. मजेदार बात यह है कि हार-जीत का अंतर इतना ज्यादा था कि आप बुरा भी नहीं मान सकते. अगर 1986 में मियांदाद द्वारा आखिरी गेंद पर लगाए गए छक्के की तरह मैच खत्म होता तो मुझे बहुत बुरा लगता. मैच के दौरान जो कुछ भी हुआ, वह सिर्फ हास्यास्पद था.
लेकिन फिर जब मैंने मोहम्मद शमी के खिलाफ लिखे गए मैसेज पढ़े तो जरूर मुझे बहुत बुरा लगा. सच कहूं तो मुझे ऐसी हरकत पर घिन आ रही थी. इस बेतहाशा मूर्खता और पूर्वाग्रह को छोड़ दिया जाए तो किसी को बदनाम कर उसे आत्मविश्वास के साथ खेलने में मदद कैसे दी जा सकती है? ट्रोल्स जब इस तरह किसी का अपमान करते हैं तो आपको आश्चर्य होता है कि उन्हें इतने सामान्य अंदाज में सहन क्यों किया जाता है, जैसे कि हमें उनके साथ जीना सीखना होगा?
क्यों? आखिरकार, वे लोगों का नुकसान कर रहे हैं. जो भी हो, इन ट्रोल्स कहें या कुछ और, लेकिन इन्हें साइबर लॉ का इस्तेमाल कर दंडित करने का समय आ गया है. इस मामले में हमें दूसरे देशों को फॉलो करना चाहिए. ब्रिटेन में इंटरनेट ट्रोलिंग में लिप्त व्यक्ति के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण संचार अधिनियम के तहत तुरंत कार्रवाई होती है. यदि इस तरह के कम्युनिकेशन से किसी व्यक्ति को तनाव या अन्य परेशानी होती है तो मैसेज भेजने वाले को दोषी माना जाता है.
आर्टिकल 507 के मुताबिक कार्रवाई हो सकती है
भारत की भारतीय दंड संहिता, 1860 में ट्रोलिंग या बुलियिंग को परिभाषित नहीं किया गया है. हालांकि, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में कई ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिनसे इन साइबर बुलीज और ट्रोर्ल्स पर लगाम लगाई जा सकती है. सेक्शन 67 अश्लीलता से संबंधित है और शमी भी ऐसी ही अश्लीलता के शिकार बने हैं.
अगर कोई इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अश्लील सामग्री पब्लिश करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है. गुमनाम आपराधिक धमकी के मामलों में आर्टिकल 507 के मुताबिक कार्रवाई हो सकती है. हालांकि, आईटी एक्ट 2008 में ऐसे मामलों के लिए विशेष रूप से कानून का उल्लेख नहीं है. लेकिन अगर कोई व्यक्ति सोशल मीडिया, ईमेल या व्हाट्सएप के माध्यम से प्रताड़ित किया गया है तो आरोपियों पर शिकंजा कसा जा सकता है.
इन कानूनों का इस्तेमाल पलटवार करने के लिए भी किया जा सकता है. हम ऐसा नहीं करते, क्योंकि हम जानते ही नहीं कि इनका इस्तेमाल कैसे होता है? दरअसल, कुछ समय में इस तरह का हो-हल्ला शांत हो जाता है और घाव भी भर जाता है, लेकिन उसके निशान हमेशा के लिए रह जाते हैं.