ये तरीका अस्वीकार्य है

खुद को योग गुरु बताने वाले रामदेव को अब यह जरूर अहसास हुआ होगा, भारत में ये विवेकहीनता का दौर जरूर है,

Update: 2021-05-27 17:13 GMT

असल बात यह है कि प्राचीन भारत की इन दोनों महान उपलब्धियों के कारोबारियों ने उन्हें बाजारू ढंग से पेश किया है। मसलन, ये उदाहरण देखिए। योग एक संपूर्ण दर्शन है, जिसमें आसन उसका सिर्फ एक हिस्सा है। जबकि रामदेव जैसे गुरुओं ने सिर्फ योगासन को योग बता कर इसका कारोबार किया है।

खुद को योग गुरु बताने वाले रामदेव को अब यह जरूर अहसास हुआ होगा, भारत में ये विवेकहीनता का दौर जरूर है, लेकिन उसका यह अर्थ नहीं है कि सबका विवेक मर गया है। एक खास राजनीतिक विचारधारा से जुड़ कर और उचित या अनुचित- सत्ताधारियों का संरक्षण हासिल कर उन्होंने अपना बड़ा कारोबार खड़ा कर लिया है, इसका अर्थ नहीं है कि पूरा समाज उनकी बेतुकी बातों को या को आंख मूंद कर स्वीकार कर लेगा या फिर उसके खिलाफ ना बोलने में ही अपनी भलाई समझेगा। अब जिस तरह मेडिकल डॉक्टरों ने अपनी आवाज उठाई है, वो इसी बात का प्रमाण है। टीवी चैनलों पर रामदेव की जिस तरह इन डॉक्टरों ने क्लास लगाई है, वह रामदेव की कल्पना से भी बाहर होगा। असल बात यह है कि रामदेव को ये भ्रम है कि वे आयुर्वेद के ज्ञाता हैं और इस ज्ञान धारा की नुमाइंदगी करते हैँ। ठीक उसी तरह जैसे कि उन्हें भ्रम है कि वे योग गुरु हैं।
असल बात यह है कि वे प्राचीन भारत की इन दोनों महान उपलब्धियों के कारोबारी हैं, जिन्हें उन्होंने बाजारू ढंग से पेश किया है। मसलन, ये उदाहरण देखिए। योग एक संपूर्ण दर्शन है, जिसमें आसन उसका सिर्फ एक हिस्सा है। जबकि रामदेव जैसे गुरुओं ने सिर्फ योगासन को योग बता कर इसका कारोबार किया है। योग के हिस्से- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि हैं। रामदेव जैसे बताते हैं उससे यह भी लगता है कि आसन और प्राणायाम कोई अलग- अलग पद्धतियां हों। बहरहाल, ये दोनों अपने आप में फायदेमंद हैं। लेकिन उन्हें योग बताना योग दर्शन के साथ न्याय नहीं है। इसी तरह आर्युवेद को उसके ऐतिहासिक और विकास क्रम के संदर्भ से काट कर दूसरी चिकित्सा पद्धतियों के खिलाफ खड़ा करना या तो अज्ञान की मिसाल हो सकता है या फिर शारितपने की। ये दुर्भाग्यपूर्ण है की प्राचीन भारत की उपलब्धियों पर गर्व का दावा करने वाले मौजूदा सत्ताधारी अपनी थाती को इस तरह विद्रूप करने के प्रयासों में सहायक और संरक्षक बने हुए हैँ। एलोपैथी चिकित्सा संपूर्ण नहीं है। इसमें कमियां हैं और इसीलिए लगातार इसमें आविष्कार और विकास की गुंजाइश बनी रही है। लेकिन कुतर्कों से इसकी उपयोगिता पर सवाल उठाना बदमिजाजी को जाहिर करता है। ये अच्छी बात है कि एलोपैथी चिकित्सक अब अपनी ज्ञान विद्या के पक्ष में खड़े हुए हैं। उनका समर्थन किया जाना चाहिए।

क्रेडिट बाय नया इंडिया 

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