ये रुख तार्किक है

छत्तीसगढ़ आधिकारिक रूप से कोवैक्सीन को ठुकराने वाला पहला राज्य बना है।

Update: 2021-02-15 04:22 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक | छत्तीसगढ़ आधिकारिक रूप से कोवैक्सीन को ठुकराने वाला पहला राज्य बना है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने केंद्र सरकार से कहा है कि उनके राज्य में कोवैक्सिन ना भेजी जाए। सवाल यह है कि जिस वैक्सीन को लेने से स्वास्थ्य कर्मियों ने सिरे से इनकार कर दिया है, आखिर उसे अन्य लोगों को क्यों लगाया जाना चाहिए? गौरतलब है कि कोवैक्सिन शुरू से विवादों में रही है। उसे बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक और सहयोग देने वाली केंद्र सरकार की संस्था आईसीएमआर खुद मानती हैं कि टीके का परीक्षण अभी चल ही रहा है। इसके प्रभावी होने से संबंधित पूरी जानकारी अभी सामने नहीं है। कई जानकार इस तरह के टीके के टीकाकरण अभियान में इस्तेमाल पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं। ऐसे में अगर कोई राज्य अपने यहां इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहता तो उसे इसका अधिकार होना चाहिए। मुद्दा यह है कि मकसद वैक्सीन लगा कर कोरोना वायरस का संक्रमण रोकना है या महज रस्म-अदायगी करना?

इसका मेडिकल लाभ जाहिर होना चाहिए, या सिर्फ मनोवैज्ञानिक संतुष्टि के लिए टीका लगवा लेना चाहिए? भारत में अभी तक 70 लाख से भी ज्यादा अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों को टीका लग चुका है। कई राज्य पहले से ही अपने टीकाकरण कार्यक्रम के तहत कोवैक्सिन की जगह सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड का उपयोग कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में कोविशील्ड की 5,88,000 खुराकें भेजी जा चुकी हैं, जिनसे राज्य अपने टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत कर चुका है। लेकिन विवाद कोवैक्सीन को लेकर है। छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन को लिखी चिट्ठी में कोवैक्सीन को ठुकराने के पीछे देव ने दो कारण गिनाए हैं। इनमें पहला यह है कि टीके का तीसरे चरण का परीक्षण अभी पूरा नहीं हुआ है, जिसकी वजह से उसके इस्तेमाल को लेकर सामान्य रूप से लोगों में झिझक है। दूसरा कारण उन्होंने यह बताया है कि कोवैक्सिन की शीशी पर कोई एक्सपायरी तारीख नहीं लिखी होती है। इन बातों के मद्देनजर उन्होंने केंद्र से अनुरोध किया है कि परीक्षण पूरा हो जाने और उसके नतीजे सामने आ जाने के बाद ही इस टीके को छत्तीसगढ़ भेजा जाए। हर्ष वर्धन ने इन बातों का खंडन किया है। कहा है कि दोनों टीकों को तय प्रक्रिया के तहत मूल्यांकन करने के बाद ही इस्तेमाल की अनुमति दी गई है। फिर भी दवा का संबंध विश्वास से होता है। अगर किसी को यकीन ना हो, तो उसे ये वैक्सीन लेने के लिए मजबूर क्यों किया जाना चाहिए?


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