नर्सों की भी सोचिए
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की ओर से जारी की गई हालिया स्टडी रिपोर्ट देश में डॉक्टरों और नर्सों तथा सहायक स्वास्थ्यकर्मियों के बीच कम अनुपात का जायजा लेते हुए बताती है |
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया `की ओर से जारी की गई हालिया स्टडी रिपोर्ट देश में डॉक्टरों और नर्सों तथा सहायक स्वास्थ्यकर्मियों के बीच कम अनुपात का जायजा लेते हुए बताती है कि कोरोना महामारी की चुनौतियों से जूझना इस कमजोर स्वास्थ्य ढांचे के लिए कितना मुश्किल रहा होगा। भारत में नर्सों और डॉक्टरों का अनुपात 1.7:1 है यानी हर एक डॉक्टर पर 1.7 नर्स। यह अनुपात कितना कम है, इसका अंदाजा इस तथ्य से मिलता है कि ओईसीडी (ऑर्गनाइजेशन फॉर इकॉनमिक को-ऑपरेशन एंड डिवेलपमेंट) देशों का औसत अनुपात 4:1 है यानी हर एक डॉक्टर पर चार नर्स।
अपने यहां तस्वीर तब और चिंताजनक हो जाती है, जब इसमें क्वॉलिटी का फैक्टर जोड़ दिया जाता है। क्वॉलिफिकेशन का ख्याल रखते हुए देखा जाए तो यह अनुपात 1:1. 3 बैठता है यानी 1.3 डॉक्टरों पर एक नर्स। डॉक्टर से भी कम नर्स। बहरहाल, औसत अनुपात के ये आंकड़े भी जमीनी हकीकत का ठोस अंदाजा नहीं देते। अलग-अलग राज्यों में एकदम अलग-अलग स्थिति है। कुछ राज्यों में डॉक्टर ज्यादा हैं तो कुछ अन्य राज्यों में नर्सों की संख्या अधिक है। उदाहर के लिए, एक तरफ पंजाब और दिल्ली जैसे राज्य हैं जहां नर्सों और डॉक्टरों का अनुपात क्रमश: 6.4 और एक एवं 4.5 और एक का है तो दूसरी तरफ बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्य हैं जहां प्रति डॉक्टर एक नर्स का भी अनुपात नहीं बैठता।
केरल में सबसे ज्यादा नर्सें हैं। लेकिन वहां भी हॉस्पिटलों और स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति बेहतर नहीं है। इसका पता तब चलता है जब वर्कर नर्सों की संख्या देखी जाए। वर्कर नर्सों और डॉक्टरों का अनुपात वहां भी एक और एक का ही है। वर्कर नर्सों से मतलब उन नर्सों से है, जो पंजीकृत होने के साथ-साथ सक्रिय भी हों। दिलचस्प तथ्य यह है कि कई राज्य जो डॉक्टर और नर्स अनुपात के आंकड़ों के लिहाज से काफी अच्छी स्थिति में नजर आते हैं, स्वास्थ्य सेवाओं की क्वॉलिटी के मामले में उतना अच्छा मानक नहीं दर्शा पाते। उदाहरण के लिए दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य।
यहां डॉक्टर और नर्सों का अनुपात अगर अच्छा नजर आता है तो उसकी वजह नर्सों की पर्याप्त संख्या नहीं बल्कि डॉक्टरों की कम संख्या है। इन राज्यों में प्रति दस हजार आबादी पर एक डॉक्टर हैं। नर्सों का हाल भी खास अच्छा नहीं है। देश में प्रति 670 लोगों पर एक नर्स का अनुपात बैठता है जबकि डब्ल्यूएचओ का मानदंड प्रति 300 लोगों पर एक नर्स का है। इस संदर्भ में देखें तो स्वास्थ्य ढांचे में सुधार के लिहाज से अपने देश में चर्चा हमेशा डॉक्टरों की कमी की ही होती है। उस कमी को पूरा करना भी जरूरी है, लेकिन समझना होगा कि नर्सों और सहायक स्वास्थ्यकर्मियों का अनुपात ठीक किए बिना स्वास्थ्य सेवाओं का ऊंचा स्तर सुनिश्चित करना मुमकिन नहीं है।