हिंदुत्‍व को बदनाम करने की हो रही सोची समझी साजिश, इसको हल्‍के में लेना सही नहीं

हिंदुत्‍व के खिलाफ योजनाबद्ध ढंग से चलाए जा रहे इस अभियान को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए

Update: 2021-12-21 06:37 GMT
हरेंद्र प्रताप। वर्ष 2019 में प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने एक संबोधन में कहा था कि 'मैं देशभक्त हूं, पर राष्ट्रवादी नहीं।' अब राहुल गांधी कह रहे हैं कि 'मैं हिंदू हूं, हिंदुत्‍ववादी नहीं।' राहुल गांधी ने हिंदू वादी नहीं, बल्कि हिंदुत्‍व वादी शब्द का उपयोग किया है। राहुल गांधी से पहले सलमान खुर्शीद अपनी पुस्तक में हिंदुत्‍व की तुलना बोको हराम और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठनों से कर चुके हैं। हिंदुत्‍व के खिलाफ योजनाबद्ध ढंग से चलाए जा रहे इस अभियान को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
कांग्रेस के इन नेताओं ने पश्चिमपरस्त लेखकों को अब राष्ट्रवादी के साथ ही हिंदुत्‍व वादी शब्द पर भी बोलने और लिखने का अवसर दे दिया है। जबसे देश ने राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए अपनी तैयारी तेज की है तब से एक खास समूह भारत को बदनाम करने पर आमादा है। सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, गलवन घाटी की घटना से विश्व में भारत की जो छवि उभरी है, वह इन्हें स्वीकार नहीं। भारत के बाहर 18वीं सदी के अंतिम चरण से लेकर 19वीं सदी के मध्य तक राष्ट्रवाद मानववादी और लोकतंत्रवादी विचारों से संप्रेषित था, पर विगत सवा सौ वर्षो में राष्ट्रवाद असहिष्णुता, कट्टरता, नस्लवाद, अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न, साम्राज्यवाद और आक्रमणों से संबद्ध हो गया है।
अखिल जर्मनवाद, जारवादी साम्राज्यवाद, जापानी सैन्यवाद, फासीवाद और अब साम्यवादी साम्राज्यवाद इसके प्रमाण हैं। 19वीं सदी के यूरोप में राष्ट्रवाद पर व्यापक बहस हुई, जिसमें मानवतावादी राष्ट्रवाद, नस्लवादी राष्ट्रवाद, क्षेत्रीय राष्ट्रवाद, संवैधानिक राष्ट्रवाद, उदारवादी राष्ट्रवाद, आध्यात्मिक राष्ट्रवाद और लोकतांत्रिक राष्ट्रवाद आदि व्याख्याओं का उद्भव हुआ। अगर उपरोक्त व्याख्याओं का वर्गीकरण किया जाए तो मुख्यत: दो ही आक्रामक एवं उदार राष्ट्रवाद होते हैं।
भारतीय राष्ट्रवाद की अवधारणा मौलिक है, जबकि पश्चिमी राष्ट्रवाद प्रतिक्रिया की उपज है। भारत के मौलिक और प्राकृतिक राष्ट्रवाद को ही हिंदू राष्ट्रवाद या सांस्कृतिक राष्ट्रवाद कहा गया। पश्चिम में राष्ट्र की अवधारणा विगत दो-तीन शताब्दी में चर्चित हुई है। भारत एक प्राचीन राष्ट्र है। भूमि, जन और संस्कृति के संघात से यह राष्ट्र बना है। संस्कृति राष्ट्र का शरीर, चेतना आत्मा और विराट इसका प्राण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के आधार पर यहां एक श्रेष्ठ जीवन पद्धति विकसित हुई है। राष्ट्र की संस्कृति धर्म पर आधारित है।
प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा कहे गए 'मैं देशभक्त हूं, राष्ट्रवादी नहीं' शब्द को पकड़कर पश्चिमपरस्त अंगेजी लेखकों ने 'पैटिआटिज्म बनाम नेशनलिज्म' की बहस छेड़ी। ये लेखक अपनी लेखनी में भारत के राष्ट्र की अवधारणा और इसके राष्ट्र प्रेम पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम को इन्होंने 'उग्र-अंध-विषैले' राष्ट्रवाद की विजय घोषित किया। इसे हिटलर के राष्ट्रवाद से जोड़ा। जून 2019 में एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह डा. मनमोहन वैद्य ने कहा कि राष्ट्रवाद नहीं 'राष्ट्रीय' भारतीय शब्द है।
फरवरी 2020 में संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भगवत ने अपने एक संबोधन में आग्रह किया कि राष्ट्रवाद नहीं, राष्ट्रीय कहिए, पर प्रचलन में राष्ट्रवाद शब्द चल पड़ा है। अत: राष्ट्रवाद शब्द का प्रयोग हो रहा है। प. दीनदयाल उपाध्याय ने 'एकात्म मानवता' शब्द का उपयोग किया था, जो बाद में एकात्म मानववाद के नाम से प्रचलन में आया। उन्होंने 'मानववाद' शब्द का प्रयोग आज के पाश्चात्य अर्थ में नहीं किया था। वे भी पश्चिम के 'वाद/इज्म' को स्वयंकेंद्रित और ईश्वर विरोधी मानते थे।
मार्क्‍स, माओ और मैकाले के अनुयायी दशकों से हिंदू और हिंदुत्‍व के खिलाफ वैचारिक युद्ध छेड़े हुए हैं। अंग्रेजी में ये 'हिंदुइज्‍म' शब्द का उपयोग करते हैं। अंग्रेजी का 'हिंदुइज्‍म' हिंदी में हिंदू वाद नहीं बन पाया। हिंदू और हिंदुत्‍व शब्द ही प्रचलित और श्रद्धेय हैं। इसी हिंदुत्‍व पर राहुल गांधी ने निशाना साधा है। टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोग स्वामी विवेकानंद के हिंदुत्‍व को उदार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिंदुत्‍व को संकीर्ण कहकर संबोधित करते आ रहे हैं। इस गैंग को राहुल गांधी और कांग्रेस का समर्थन मिल गया है। इसी गैंग ने हिंदुत्‍व वादी शब्द को ईजाद किया है। ये इस देश की हिंदू और सनातन परंपरा को बदनाम करना चाहते हैं।
भारतीयता और हिंदू एक-दूसरे के पूरक हैं। हिंदुत्‍व शब्द हिंदू विचार का प्रकटीकरण है। यह भाववाचक शब्द है, जिसमें 'सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चित् दु:खभाग् भवेत्।।', 'एकं सद्विप्रा बहुधा वदंति' और 'वसुधैव कुटुंबकम्' का महान संदेश छिपा है। अच्छी बात है कि विस्तारवादी, हिंसक और असहिष्णु संप्रदायों के खिलाफ विश्व मानवता अब खुलकर खड़ी हो रही है। विस्तारवादी साम्यवाद तो मृत शैया पर अपनी आखिरी सांस ले रहा है। इस्लाम के अंदर से ही इस्लामिक कट्टरता के खिलाफ आवाजें उठनी शुरू हो गई हैं। अफगानिस्तान की सड़कों पर मुस्लिम महिलाओं द्वारा तालिबान विरोधी नारे, सऊदी अरब द्वारा तब्लीगी जमात पर लगाया गया प्रतिबंध, वसीम रिजवी द्वारा लिखी गई 'मुहम्मद' पुस्तक तथा उनके और केरल के फिल्मकार अली अकबर का इस्लाम पंथ को छोड़ना, इसकी गवाही दे रहे हैं।
साफ है कि हिंदुत्‍व को हिंदुत्‍व वाद का नाम देकर राहुल गांधी इसे पश्चिम के 'वाद' जैसे हिंसक, विस्तारवादी और असहिष्णु विचार के समकक्ष खड़ा करने का इनका प्रयास सफल नहीं होगा। भारत ने यह संदेश दे दिया है कि हिंदू सहिष्णु है, पर कायर नहीं है। इस संदेश को समझना होगा।
(लेखक बिहार विधानपरिषद के पूर्व सदस्य हैं)
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