भ्रष्टाचार निरोधक कवायदों का सच
पिछले चार दशकों में भ्रष्टाचार का केंद्र महज राजनीति का क्षेत्र नहीं रहा, बल्कि प्रशासन, पुलिस, बिजली, कचहरी, उद्योग, निवेश, बैंकिंग, जहाजरानी, सेना, शिक्षा, स्वास्थ्य, न्यायपालिका, संचार माध्यम, नगरपालिका, नौकरशाही, सेवा के सभी क्षेत्रों, कारपोरेट और कृषि मंडियों जैसे तमाम क्षेत्रों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है।
अखिलेश आर्येंद: पिछले चार दशकों में भ्रष्टाचार का केंद्र महज राजनीति का क्षेत्र नहीं रहा, बल्कि प्रशासन, पुलिस, बिजली, कचहरी, उद्योग, निवेश, बैंकिंग, जहाजरानी, सेना, शिक्षा, स्वास्थ्य, न्यायपालिका, संचार माध्यम, नगरपालिका, नौकरशाही, सेवा के सभी क्षेत्रों, कारपोरेट और कृषि मंडियों जैसे तमाम क्षेत्रों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। वहीं भारतीयों द्वारा अवैध धन बाहर के बैंकों में जमा करके सुरक्षित रखने की बात सभी जानते हैं।
पिछले सात सालों से केंद्र सरकार हर क्षेत्र से भ्रष्टाचार खत्म करने की बात करती आ रही है, जो जमीनी सच्चाई से दूर दिखता है। सरकार की भ्रष्टाचार खत्म करने और हर क्षेत्र में पारदिर्शिता लाने की बात सर्वेक्षणों से मेल नहीं खाती। गौरतलब है कि भारत में पिछले सात सालों में भ्रष्टाचार का सूचकांक कम तो हुआ है, लेकिन इतना नहीं कि उसे बेहतर कहा जा सके। 25 जनवरी, 2022 को ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने 'करप्शन परसेप्शन इंडेक्स' (सीपीआइ) 2021 जारी किया, जिसके मुताबिक भ्रष्टाचार में भारत की रैकिंग में एक स्थान का सुधार हुआ है।
दुनिया के एक सौ अस्सी देशों में भारत का स्थान अब पचासीवां हो गया है। हालांकि सौ अंकों के पैमाने पर दिए जाने वाले अंकों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। भारत का अंक पहले की तरह चालीस ही है। एनडीए सरकार इस बात पर गर्व कर सकती है कि 2013 के बाद जबसे उसने सत्ता संभाली है, भ्रष्टाचार के मामले में काफी सुधार आया है। गौरतलब है 2013 में भारत का भ्रष्टाचार अंक छत्तीस था, जो 2014-15 में अड़तीस हो गया था। गौरतलब है कि रैंकिंग बढ़ते हुए क्रम में बेहतर होती गई है।
जिस गति से तमाम क्षेत्रों में सुधार की बात कही जा रही है, उस गति से भ्रष्टाचार में सुधार नहीं हो रहा है, यह चिंता और चिंतन का विषय जरूर होना चाहिए। गौरतलब है कि दुनिया के भ्रष्ट देशों में दक्षिण सूडान सबसे निचले पायदान पर है और डेनमार्क सबसे बेहतर हालात में है। अमेरिका की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। अब भी वह सत्ताईसवें स्थान पर है। सीपीआई के अनुसार एक सौ इकतीस देशों ने एक दशक में भ्रष्टाचार रोकने में खास तरक्की नहीं की। लेकिन इससे हमें यह नहीं समझ लेना चाहिए कि भारत में भ्रष्टाचार के मामले में कोई बेहतर हालात जल्द बनने वाले हैं। गौरतलब है कि घोटालों के उजागर न होने का मतलब यह नहीं लगाया जा सकता कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा है और अब आम आदमी को रिश्वत देने से छुटकारा मिल गया है।
भ्रष्टाचार का इतिहास देखें तो यह अंगे्रजों के जमाने में ही शुरू हो गया था। अंगे्रजों की भ्रष्टाचार को लेकर जो नीति थी, कमोवेश आजाद भारत में भी वही अपनाई गई, जिससे भ्रष्टाचार एक नासूर की तरह सभी क्षेत्रों में व्याप्त हो गया। अब तो भ्रष्टाचार को एक ऐसी लइलाज बीमारी माना जाने लगा है, जिसकी कोई दवा नहीं है। विडंबना है कि इसकी चर्चा और निंदा सभी करते हैं, लेकिन इससे छुटकारा पाने के लिए कोई सच्चे मन से आगे नहीं आता।
आजादी के बाद 1948 में 'जीप घोटाला' के बाद 1951 में मुदल मामला सामने आया, जिसकी चर्चा देश भर में हुई, लेकिन कांगे्रस के शासन काल में कोई न कोई घोटाले होते रहे। फिर दस साल बाद 1962 में भ्रष्टाचार मिटाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने संथानम समिति का गठन किया। समिति ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि पिछले सोलह वर्षों में मंत्रियों ने अवैध रूप से धन हासिल कर बहुत सारी संपत्ति बना ली है।
इसके बाद 1971 में नागरवाला घोटाला और फिर 1986 में चर्चित बोफर्स घोटाला सामने आया, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर दलाली का आरोप लगाया गया था। इसके बाद केंद्र सरकार के मंत्रियों पर कुछ वर्षों के अंतराल में घोटाले करने के आरोप लगते रहे। केंद्र ही क्यों, राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों पर भी घोटालों के आरोप लगाए जाते रहे, जिसमें लालू प्रसाद यादव का चारा घोटाला आज भी चर्चा में आता रहता है।
पिछले चार दशकों में भ्रष्टाचार का केंद्र महज राजनीति का क्षेत्र नहीं रहा, बल्कि शासन, प्रशासन, पुलिस, बिजली, कचहरी, उद्योग, निवेश, बैंकिंग, जहाजरानी, सेना, शिक्षा, स्वास्थ्य, न्यायपालिका, संचार माध्यमों, मीडिया, नगरपालिका, नौकरशाही, सेवा के सभी क्षेत्रों, कारपोरेट और कृषि मंडियों जैसे तमाम क्षेत्रों में भ्रष्टाचार का बोलबला है। वहीं पर, भारतीयों द्वारा अवैध धन बाहर के बैंकों में जमा करके सुरक्षित रखने की बात सभी जानते हैं।
एनडीए सरकार जब सत्ता में आई थी तो उसने वादा किया था कि वह स्विस बैंकों में भारतीयों का जमा काला धन वापस लाएगी, लेकिन पिछले सात सालों में वह काला धन क्यों वापस नहीं ला पाई, यह एक रहस्य बना हुआ है। गौरतलब है कि भारतीय गरीब हैं, लेकिन भारत कभी गरीब नहीं रहा है। स्विस बैंक के निदेशक का कहना है कि भारत के लगभग दो सौ अस्सी लाख करोड़ रुपए उनके बैंक में जमा हैं। यह रकम इतनी है कि इससे साठ करोड़ लोगों को रोजगार दिया जा सकता है और विश्व बैंक से कर्ज लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी।