सच सामने आये
यूं तो दुनिया में बीते साल कोरोना संक्रमण की शुरुआत से ही यह बहस शुरू हो गई थी कि
यूं तो दुनिया में बीते साल कोरोना संक्रमण की शुरुआत से ही यह बहस शुरू हो गई थी कि चीन से निकल कर दुनिया को लील रहा कोरोना वायरस प्राकृतिक है या फिर जैविक हथियार बनाने के मकसद से लैब में तैयार किया गया है। हर मौसम, हर जलवायु और हर भू-भाग में एक जैसा व्यवहार करने वाले विषाणु को कृत्रिम मानने वाले वैज्ञानिकों का एक बड़ा वर्ग भी रहा है। जिस तरह शुरुआत से ही चीन अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को अपने यहां जांच कराने में ना-नुकुर करता रहा, उसने इस शक को और गहरा किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम को भी जिस तरह लंबे समय से रोका जाता रहा है, उसने विश्व बिरादरी की शंकाओं को विस्तार ही दिया है। अमेरिका भी लंबे समय तक ऐसे आरोप लगाता रहा है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अक्सर सार्वजनिक सभाओं में कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहते रहे हैं। हाल ही में आस्ट्रेलियाई मीडिया के हाथ लगे चीनी सेना के कुछ खुफिया दस्तावेजों ने इन आशंकाओं को बल दिया है। रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2015 से ही चीनी सेना कोरोना वायरस को एक अस्त्र के रूप में इस्तेमाल करने की दिशा में काम करती रही है, जिसके पीछे धारणा यह रही है कि यदि तीसरा विश्व युद्ध होगा तो वायरस युद्ध ज्यादा निर्णायक होगा। यहां सवाल यह भी उठता रहा है कि जिस चीन से यह कोरोना वायरस चला है, उसने इतनी जल्दी इससे कैसे मुक्ति पा ली। क्या उसने जैविक हमले की तर्ज पर इससे बचाव के लिये पहले से ही तैयारी कर रखी थी? आंकड़े बताते हैं कि कोरोना संकट के इस भयावह दौर में जब दुनिया की अर्थव्यवस्था तबाह हुई है, चीन की आर्थिक प्रगति ने पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त किये हैं, उसकी विकास दर अट्ठारह प्रतिशत तक पहुंची है। इस बीच उसका आर्थिक साम्राज्यवाद व महत्वाकांक्षी परियोजनाएं परवान चढ़ी हैं। ऐसे में पूरी दुनिया में इस बात को जानने की जिज्ञासा है कि वास्तविकता क्या है और यदि चीन दोषी है तो उसके खिलाफ क्या कार्रवाई होनी चाहिए।
क्रेडिट बाय दैनिक ट्रिब्यून