भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने वाली एजेंसी के इंस्पेक्टर ही भ्रष्ट, उगाही के आरोप में गिरफ्तार

यह चिंता की बात है कि ऐसे राज्यों की संख्या बढ़ती चली जा रही है।

Update: 2022-05-13 05:14 GMT

इससे बड़ी विडंबना कोई और नहीं हो सकती कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने वाली एजेंसी सीबीआइ के इंस्पेक्टर ही भ्रष्ट आचरण में लिप्त पाए जाएं। सीबीआइ ने दिल्ली में तैनात अपने चार सब इंस्पेक्टरों को उगाही के आरोप में जिस तरह गिरफ्तार किया उससे यही पता चल रहा है कि इस एजेंसी में ऐसे भी तत्व हैं जो बेलगाम हो चुके हैं और अपने अधिकारों का हर तरह से दुरुपयोग करने में लगे हुए हैं।

इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि सीबीआइ ने इन सब इंस्पेक्टरों को बर्खास्त करते हुए यह कहा कि वह भ्रष्टाचार और अन्य तरह के कदाचार को सहन नहीं कर सकती, क्योंकि उसे उन कारणों की तह तक जाने की जरूरत है जिनके चलते उसके कर्मचारी-अफसर बिना किसी भय और संकोच के अपराधियों की तरह व्यवहार करने लगते हैं। क्या सीबीआइ इंस्पेक्टरों को जरूरत से ज्यादा अधिकार हासिल हैं या फिर उनके कामकाज की कहीं कोई निगरानी नहीं होती? इन प्रश्नों पर गंभीरता से विचार-विमर्श किए जाने की जरूरत है।
बर्खास्त किए गए सीबीआइ के चार सब इंस्पेक्टरों को चंडीगढ़ के एक कारोबारी को धमकाकर उससे पच्चीस लाख रुपये मांगने का आरोप है। यह बेहद गंभीर मामला है। यह कहना कठिन है कि यह अपने ढंग का इकलौता मामला है या फिर इसे अपवाद की संज्ञा दी जा सकती है, क्योंकि इस तरह के प्रकरण पहले भी सामने आ चुके हैं जिनमें सीबीआइ कर्मचारी और अफसर अवैध काम करते अथवा भ्रष्टाचार में शामिल पाए गए हैं।
दुर्भाग्य से इनमें कुछ शीर्ष स्तर के अफसर भी रहे हैं। इसका कारण यही हो सकता है कि सीबीआइ के कर्मचारी और अधिकारी जवाबदेही से मुक्त हैं। ध्यान रहे कि जब भी कोई जांच एजेंसी पारदर्शी ढंग से काम नहीं करती और वह जवाबदेही के दायरे से भी बाहर होती है, तो उसके कर्मचारियों और अधिकारियों के बेलगाम होने का खतरा कहीं अधिक बढ़ जाता है। सीबीआइ जैसी संस्था के लिए यह आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य है कि वह न केवल अपने कामकाज में पारदर्शिता लाए, बल्कि अपनी छवि के प्रति सतर्क भी रहे। उसके बेलगाम और भ्रष्ट अधिकारी न केवल उसकी छवि पर प्रहार करते हैं, बल्कि उसके प्रति आम जनता के भरोसे को भी कम करते हैं।
उचित यह होगा कि केंद्र सरकार सीबीआइ की छवि की चिंता करे। इसके अतिरिक्त उसे उन कारणों का भी निवारण करना होगा जिनके चलते कई राज्यों ने यह आरोप लगाते हुए उसे अपने यहां के मामलों की जांच करने से रोक दिया है कि यह केंद्रीय सत्ता की कठपुतली के रूप में काम करने वाली एजेंसी है। यह चिंता की बात है कि ऐसे राज्यों की संख्या बढ़ती चली जा रही है।

सोर्स: जागरण न्यूज़

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