नया इंडिया जानता है कि कमर कैसे कसी जाए और पुरानी चीजों से कैसे प्यार किया जाए!
ओपिनियन
एन. रघुरामन का कॉलम:
यह पूरा सप्ताहांत बहुत डिस्टर्बिंग रहा। बाजार 2% क्रैश हुआ, अमेरिका की मुद्रास्फीति ने फेडरल हाइक का अंदेशा जगाया, रीटेल में महंगाई आठ वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई, रुपया निम्नतम स्तर पर पहुंचा। आरबीआई और सरकार चाहे जो कदम उठाएं, उससे उच्च मुद्रास्फीति की अवधि ही कम हो सकती है, उससे बचा नहीं जा सकता। आज हमारी स्थिति दूसरों से बेहतर है, लेकिन अनियमित मानसून मुश्किलें पैदा कर सकता है।
अगर आपको लगता है कि हम ऐसी कठिनाइयों के अभ्यस्त हो चुके हैं और मुश्किल हालात में बड़े होने के कारण मुसीबतों का सामना अच्छे से कर पाते हैं तो आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमने अपनी आने वाली पीढ़ी को चाहे जितनी लग्जरी दी हो, वे हमसे ज्यादा स्मार्ट हैं और हालात का सामना करने के लिए स्वयं को बेहतर तरीके से तैयार करते हैं।
यानी हमारी नई पीढ़ी मैच्योर है और जब हम उनकी उम्र में थे, उसकी तुलना में वे अधिक स्मार्ट तरीके से व्यवहार कर रहे हैं, वह भी अपने उपभोग के पैटर्न को नजरअंदाज किए बिना। दिलचस्प बात है कि हमने अपनी जरूरतों और सुविधाओं की कुर्बानी दी थी, लेकिन यह पीढ़ी कुर्बानी जैसे शब्द का इस्तेमाल नहीं करती है। क्या आप इन ट्रेंड्स को देख पा रहे हैं?
चूंकि नई पीढ़ी के लोग बहुत मॉडर्न और अपमार्केट चीजों के उपभोक्ता हैं, लेकिन साथ ही उन्हें कीमतों के साथ सामंजस्य बिठाना पड़ता है, इसलिए वे अपने उपभोग में कमी करते हुए छोटी मात्रा के प्रोडक्ट्स की तरफ जा रहे हैं। भिन्न मूल्यों और भिन्न मात्राओं में उत्पाद बेचने वाली कंपनियां ऐसे समय में अच्छा व्यवसाय कर रही हैं।
दूसरी चीज वे ये कर रहे हैं कि अपनी जरूरतें तय करके खरीदे जाने वाले प्रोडक्ट्स की उम्र बढ़ा रहे हैं। फूड वेस्टेज के बारे में जागरूकता उनका नया सोशल मीडिया फॉरवर्ड है। बचे हुए खाने की रीसाइकलिंग अब उनके बीच हो रहे सर्कुलेशन की नई रेसिपी है। तीसरी चीज वे कर रहे हैं, अप-ट्रेडिंग। यानी वैसी समान वस्तु खरीदना, जिसकी वैल्यू अधिक हो।
मिसाल के तौर पर, 90 हजार रुपयों की बाइक खरीदने के बजाय 2 से 3 लाख रुपए की कोई सेकंड हैंड कार खरीदना, जो उन्हें स्टेटस और प्राइवेसी देती है और जिसकी मदद से वे अधिक चीजें कैरी कर सकते हैं। कार24 इंडिया के चीफ मार्केटिंग ऑफिसर सुधीर शुक्ला- जिनसे मेरी इस गुरुवार को मुलाकात हुई थी- के मुताबिक कार सेगमेंट जैसी लाइफस्टाइल कैटेगरी आज अच्छा प्रदर्शन कर रही है, क्योंकि युवा पीढ़ी को यूज्ड कारों से परहेज नहीं।
इस पीढ़ी के लिए नई कार खरीदने से ज्यादा जरूरी है कार खरीदना, और यही कारण है कि सेकंड हैंड कारों को नया जीवन मिल गया है। इसका एक मनोवैज्ञानिक कारण भी मैंने देखा। वो यह कि सेकंड हैंड कार खरीदने वालों में नया आत्मविश्वास आ गया है। हमारी पीढ़ी 'लोग क्या कहेंगे' के बारे में चिंतित रहती थी, लेकिन नई पीढ़ी का मंत्र है, 'कुछ तो लोग कहेंगे और मुझे फर्क नहीं पड़ता।'
शायद यही कारण है कि विज्ञापनों में भी एमएस धोनी, अक्षय कुमार, सचिन तेंदुलकर जैसे हाई वैल्यू ब्रांड एम्बैसेडर ऐसी मार्केटिंग से जुड़े हैं, जो विभिन्न कंपनियों के लिए यूज्ड-कारों की मांग को बढ़ा रही हैं। जब एक विज्ञापन में अक्षय कुमार की बेटी एक पुरानी कार खरीदने के लिए उनके गले लग जाती है तो अनेक युवा पिता अपने जीवन में भी वैसी स्थिति की कल्पना करने लगते हैं।
फंडा यह है कि महंगाई की चिंता मत कीजिए। नया इंडिया जानता है कि कमर कैसे कसी जाए और पुरानी चीजों से कैसे प्यार किया जाए!