अंतरिक्ष कबाड़ से बढ़ता खतरा

पिछले करीब पचास वर्षों के दौरान अंतरिक्ष में भेजे गए संचार उपग्रहों, प्रयोगशालाओं, मानवरहित यानों, मालवाहक यानों और मानव-मिशनों के कारण पृथ्वी से बाहर एक विशाल कबाड़ घर बन गया है।

Update: 2022-08-09 04:41 GMT

अभिषेक कुमार सिंह: पिछले करीब पचास वर्षों के दौरान अंतरिक्ष में भेजे गए संचार उपग्रहों, प्रयोगशालाओं, मानवरहित यानों, मालवाहक यानों और मानव-मिशनों के कारण पृथ्वी से बाहर एक विशाल कबाड़ घर बन गया है। इसके अलावा प्रकृति ने भी अंतरिक्ष में हमारी पृथ्वी के नजदीक ऐसे हजारों छोटे-बड़े पिंड तैनात कर रखे हैं, जो किसी भी वक्त पृथ्वी के वायुमंडल में घुस कर मानव सभ्यता के संपूर्ण विनाश का खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।

अंतरिक्ष में बढ़ता कचरा धरती के लिए गंभीर समस्या बनता जा रहा है। यह कचरा मानव निर्मित तो है ही, उससे भी ज्यादा ब्रह्मांडीय पिंडों का है। असंख्य छोटे-बड़े उल्का पिंड लगातार बनने-टूटने की स्थिति में रहते हैं। सृष्टि का यह चक्र कभी थमने वाला नहीं है। पर मानवनिर्मित अंतरिक्ष कचरे से धरतीवासियों के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजंसी- नासा भी इससे चिंतित है।

इस बारे में विज्ञान पत्रिका- साइंस में नासा के विज्ञानियों जे.सी. लियो और एन.एल. जानसन ने एक शोध रिपोर्ट में लिखा है कि हमारे करीबी अंतरिक्ष में मानव निर्मित नौ हजार से ज्यादा ऐसे टुकड़े पृथ्वी की कक्षा में तैर रहे हैं जो आने वाले वक्त में भयावह दृश्य उपस्थित कर सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर जारी अंतरिक्ष अभियानों को बिल्कुल रोक दिया जाता है (जो कि अब संभव नहीं है), तो भी अंतरिक्ष में इतने उपग्रह आदि मौजूद हैं कि उनसे वहां कबाड़ की मात्रा में इजाफा होता ही रहेगा।

इस पूरे प्रसंग में सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि इस कबाड़ को समेट कर पृथ्वी पर वापस लाने की कोई योजना नहीं है। हालांकि कई देश अब इस अंतरिक्षीय कचरे पर नजर रखने की योजनाएं बना रहे हैं और उन्हें लागू कर रहे हैं। कुछ समय पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष स्थितिपरक जागरूकता एवं प्रबंधन निदेशालय (डीएसएसएएम) की स्थापना की, जो अंतरिक्ष के कबाड़ पर नजर रखता है। इस निदेशालय से मिली सूचनाओं के आधार पर पिछले साल इसरो ने अपने उपग्रहों को कचरे की टक्कर से बचाने के लिए बीस बचाव अभियान संचालित किए।

प्रश्न यह है कि यह कचरा आखिर आता कहां से है। एक आम धारणा यह है कि यह कचरा सौरमंडल में ही क्षुद्र ग्रहों की टूट-फूट से पैदा होता है। कुछ कचरा बाहरी अंतरिक्ष से उल्काओं के रूप में भी आता है। पर यह समस्या तब ज्यादा बढ़ने लगी जबसे मानव ने अंतरिक्ष में अपने यान भेजने शुरू किए और विभिन्न उद्देश्यों से कृत्रिम उपग्रहों को अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित करना शुरू किया। इनमें से जब कुछ उपग्रहों ने काम करना बंद कर दिया या फिर यानों से कुछ चीजें अंतरिक्ष में बाहर निकल गर्इं या उनमें टूट-फूट हो गई, तो ये सब कबाड़ में तब्दील होते चले गए।

इसकी ताजा मिसाल यह है कि जब से रूस ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र (आइएसएस) में सहयोग करने से इनकार किया है, वर्ष 2030 में इसके कबाड़ बन जाने की आशंका पैदा हो गई है। इसी वर्ष फरवरी में रूसी अंतरिक्ष एजंसी के तत्कालीन निदेशक दिमित्री रोगोजिन ने अंतरिक्ष में अमेरिका और यूरोप के साथ सहयोग और आर्थिक प्रतिबंधों का जवाब देते हुए कहा था कि रूस के बिना यूरोप, एशिया और अमेरिका अंतरिक्ष में टिक नहीं सकते। ऐसे में आइएसएस के अनियंत्रित होकर कचरे में बदल जाने या फिर इसे भारत-चीन में कहीं भी गिर जाने से रोका नहीं जा सकता।

यह सही है कि अब अंतरिक्ष भी इंसान की दखल से नहीं बचा है। मनुष्य के अंतरिक्ष में पहुंचने के कई फायदे हैं तो नुकसान भी। नुकसान यह कि एक तो वहां कचरा पैदा हो रहा है और दूसरा यह कि अंतरिक्ष युद्ध का खतरा भी बढ़ रहा है। इस पर यकीन करना मुश्किल होगा, पर यह सच है कि मानव निर्मित सबसे पुराना कबाड़ अब भी अंतरिक्ष में है। यह अमेरिका का दूसरा उपग्रह वैनगार्ड-प्रथम है, जो 1958 में छोड़ा गया था।

वर्ष 2018 में अंतरिक्षीय कचरे की भयावह आशंका ने तब सिर उठाया था, जब बताया गया कि चीनी अंतरिक्ष केंद्र थियांगोंग-1 एक कबाड़ के रूप में किसी समय पृथ्वी से टकरा सकता है। चीनी अंतरिक्ष एजंसी से इस केंद्र का संपर्क 2016 में ही खत्म हो चुका था। बाद में पृथ्वी पर ही इसके गिरने की जानकारी मिली। हालांकि करीब नौ टन वजनी अंतरिक्ष केंद्र का वजन धरती की सतह तक पहुंचते-पहुंचते एक से चार टन ही रह जाने की खबर से कुछ राहत मिली थी। पर जब वर्ष 1979 में पचहत्तर टन से भी ज्यादा वजनी नासा का स्काईलैब धरती पर गिरा था, तब दुनिया भर में घबराहट फैल गई थी, लेकिन वह बिना कोई नुकसान पहुंचाए समुद्र में गिर कर नष्ट हो गया था।

पिछले छह-सात दशकों में जैसे-जैसे विभिन्न देशों की अंतरिक्ष संबंधी गतिविधियां बढ़ी हैं, वहां धरती से पहुंचने वाला कचरा बढ़ता ही जा रहा है। जुलाई 2016 में अमेरिकी रणनीतिक कमान ने निकट अंतरिक्ष में सत्रह हजार आठ सौ बावन कृत्रिम वस्तुएं दर्ज की थीं, जिनमें एक हजार चार सौ उन्नीस कृत्रिम उपग्रह शामिल थे। मगर यह तो सिर्फ बड़े पिंडों की बात थी। इससे पहले 2013 की एक अध्ययन में एक सेंटीमीटर से छोटे सत्रह करोड़ ऐसे टुकड़े पाए गए थे और एक से दस सेंटीमीटर के बीच आकार वाले कचरों की संख्या करीब सात करोड़ निकली थी। अंतरिक्ष में बेतरतीब घूमती ये चीजें किसी भी अंतरिक्ष अभियान का काल बन सकती हैं।

कुछ समय पहले यूनिवर्सिटी आफ साउथैंपटन के शोधकर्ताओं ने गूगल और स्पेस एक्स जैसी निजी कंपनियों के भावी अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर नजर डालते हुए अंतरिक्ष में कबाड़ पैदा होने की नई आशंकाओं का आकलन किया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक एक तरफ गूगल और एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स की ओर से दुनिया में वायरलैस इंटरनेट का तेज विस्तार करने और पर्यटकों को अंतरिक्ष की सैर कराने के सैकड़ों राकेट, यान और उपग्रह अगले कुछ सालों में अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले हैं। इन योजनाओं के आधार पर आकलन किया गया है कि अगले कुछ वर्षों में इन उपग्रहों के अंतरिक्ष में पहुंचने से इनके बीच होने वाली टक्करों की संख्या में पचास फीसद की बढ़ोत्तरी हो जाएगी। फिलहाल उपग्रहों और उनके टुकड़ों के बीच टकराहट की हर साल ढाई सौ से ज्यादा घटनाएं होती हैं।

कुछ समय पहले नासा ने उन देशों की एक सूची तैयार की थी, जो अंतरिक्ष में इस कबाड़ के लिए जिम्मेदार हैं। इनमें पहला नाम रूस का है। इसके बाद अमेरिका, फ्रांस, चीन, भारत, जापान और यूरोपीय अंतरिक्ष एजंसी का नंबर आता है। सबसे ज्यादा कबाड़ पृथ्वी से ऊपर पांच सौ पचास मील से छह सौ पच्चीस मील के बीच में फैला है। अंतरिक्ष में पहली बार स्पुतनिक-1 उपग्रह भेजे जाने के बाद से मनुष्य हजारों टन कचरा पृथ्वी से बाहर अंतरिक्ष में फेंक चुका है।

पिछले करीब पचास वर्षों के दौरान अंतरिक्ष में भेजे गए संचार उपग्रहों, अंतरिक्षीय प्रयोगशालाओं, मानवरहित यानों, मालवाहक यानों की के कारण पृथ्वी से बाहर एक विशाल कबाड़ घर बन गया है। इसके अलावा प्रकृति ने भी अंतरिक्ष में हमारी पृथ्वी के नजदीक ही ऐसे हजारों छोटे-बड़े पिंड तैनात कर रखे हैं, जो किसी भी वक्त पृथ्वी के वायुमंडल में घुसकर मानव सभ्यता के संपूर्ण विनाश का खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। सवाल है कि इस समस्या का हल क्या है? वैज्ञानिकों का कहना है कि अंतरिक्ष से यह कबाड़ बटोर कर वापस पृथ्वी पर लाना ही इसका एकमात्र समाधान है।

हालांकि आज भी ऐसी कारगर तकनीक ईजाद नहीं हो पाई है, जिससे अंतरिक्ष का कबाड़ साफ किया जा सके। पर भविष्य में प्रक्षेपित होने वाले उपग्रहों और बूस्टर राकेटों के इंजनों में ऐसी तकनीक कायम की जा सकती है कि इस्तेमाल के बाद वे अंतरिक्ष में न ठहरें, बल्कि वापस पृथ्वी पर आ गिरें। एक सस्ता विकल्प यह हो सकता है कि अपना मिशन पूर्ण कर लौट रहा कोई शटल थोड़ा-बहुत कचरा भी बटोर कर अपने साथ लेता आए।


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