आसमान छूती महंगाई, बढ़ते कट्टरवाद और सशस्त्र विद्रोह से पाकिस्तान का अस्तित्व खतरे में
आसमान छूती महंगाई
प्रशांत सक्सेना।
इमरान खान ( Imran Khan) और पाकिस्तानी सेना (Pakistani Military) के बीच दरार पिछले साल या कहें उससे भी पहले से पड़नी शुरू हो गई थी. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के तत्कालीन तेजतर्रार महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद का अक्टूबर में पेशावर कोर कमांडर के रूप में तबादला कर दिया गया. कराची में पाकिस्तान की वी कोर के कोर कमांडर के रूप में तैनात लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम ने जनरल फैज की जगह ली. अपनी चुनावी जीत में सेना की महत्वपूर्ण भूमिका होने के बावजूद पीएम इमरान खान ने तीन विकल्पों के मांगे जाने के बाद भी आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा को नजरअंदाज करते हुए तबादलों के आदेश की फाइल पर हस्ताक्षर करने में एक महीने से भी ज्यादा का वक्त लिया.
सेना की तथाकथित तटस्थता पर सवाल
महीनों बाद जब विपक्ष ने विश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया, तो इमरान ने राजनीतिक स्थिति में सेना की तथाकथित तटस्थता पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि खराब स्थिति में केवल जानवर ही तटस्थ रुख अपनाते हैं. जनरल बाजवा ने इमरान खान को अपनी विदेश और आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त संकेत दिए थे. अपनी तरफ से जनरल ने पिछले साल की शुरुआत में भारत के साथ युद्ध विराम की घोषणा की थी जो अभी भी कायम है और उन्होंने नई दिल्ली के साथ "अतीत को दफनाने" की बात भी कही थी.
उन्होंने पाकिस्तानी व्यवसायियों से भी बात की और पाकिस्तान की रणनीतिक साझेदारियों के लिए एक नया शब्द पेश करने की मांग की: भू-अर्थशास्त्र.
जनरल ने स्पष्ट रूप से जो सिफारिश की थी उसका असर उल्टा ही हुआ. तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) के रूप में कट्टरपंथियों ने अपना सिर उठाया और सरकार को उनके दबाव के आगे झुकने के लिए मजबूर कर दिया. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने कबायली खैबर पख्तूनख्वा पर राज्य के नियंत्रण को चुनौती दी है और वहां के आधा दर्जन बलूच उग्रवादी संगठन फिर से अपना सर उठाने लगे हैं. इन सभी गुटों की गतिविधियां पाकिस्तानी सेना पर भारी पड़ रही हैं.
खाने की चीजों की कीमतों में तेजी से वृद्धि हो रही है, महंगाई अपने रिकॉर्ड उच्च स्तर (जनवरी में 13 प्रतिशत और फरवरी में इससे थोड़ा कम) को छू रही है. पेट्रोल और डीजल सहित आवश्यक वस्तुओं की आसमान छूती कीमतों ने राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर दी है.
तेजी से गिरावट
सेना द्वारा समर्थित इमरान खान 2018 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर लगे पनामा पेपर्स लीक के भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण उनकी जगह सत्ता में आए थे. उसके बाद प्रधानमंत्री के पद से हटाए गए नवाज शरीफ ने आखिरकार ब्रिटेन में शरण ली और तब से वहीं हैं. उन्होंने कसम खाई है कि उन पर लगे आरोप वापस लिए जाने पर ही वे अपने वतन लौटेंगे.
इमरान ने पाकिस्तानियों से बड़े-बड़े वादे किए थे. उन्होंने पाकिस्तान की जनता से भ्रष्टाचार से आजादी, रोजगार, बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश, सस्ते घर और लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का वादा किया था.
दूसरी ओर सभी प्रमुख विपक्षी दलों ने उन पर चुनाव में धांधली करने का आरोप लगाया है. पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (PDM) का गठन 20 सितंबर, 2020 को हुआ था, जब PPP के बिलावल भुट्टो ने सत्तारूढ़ पीटीआई के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को बदलने के लिए एक महागठबंधन बनाया था. कई कठिनाइयों के बावजूद PDM नवाज शरीफ के PML(N) के साथ 11 पार्टियों को अपने पाले में एक साथ लाने में कामयाब रही.
पाकिस्तान द्वारा अपनी आर्थिक संप्रभुता खोने के स्पष्ट संकेत मिलने पर 2019 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने लंबी बातचीत के बाद $6 बिलियन के बेलआउट पैकेज को मंजूरी दे दी. पाकिस्तान सरकार ने उसी साल तारिक बाजवा को बदलने के लिए IMF अर्थशास्त्री रेजा बाकिर को केंद्रीय बैंक के गवर्नर के रूप में नियुक्त किया, जिन्हें एक दिन पहले देश के आर्थिक नेतृत्व में व्यापक बदलाव लाने के लिहाज से हटा दिया गया था.
सरकारी खजाने में आई बड़ी कमी को दूर करने में मदद करने के लिए 39 महीने का IMF लोन प्रोग्राम अपनी आर्थिक नीति और विकास की नियमित समीक्षा के अधीन है. पिछले महीने ईंधन और खाद्य सब्सिडी की इमरान खान की घोषणा के बाद पाकिस्तान लगातार 1 बिलियन डॉलर लोन की अगली किश्त प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है.
दिसंबर 2021 में द एक्सप्रेस ट्रिब्यून में छपी एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा सरकार के केवल तीन सालों में पाकिस्तान का विदेशी ऋण लगभग दोगुना हो गया है. 35.1 बिलियन डॉलर जुड़ जाने से अब कुल आंकड़ा 85.6 बिलियन डॉलर हो गया है. देखा जाए तो पाकिस्तान एक दुष्चक्र में फंस गया है जहां वह अपने पिछले ऋणों को चुकाने के लिए अधिक ऋण ले रहा है.
मुश्किल हालात
आज पाकिस्तान विस्फोटक स्थिति में पहुंच चुका है. अफगानिस्तान में अपने "दोहरे खेल" के उजागर होने के बाद इसने अपने सबसे बड़े मददगार अमेरिका को खो दिया, पाकिस्तान जनरलों ने अमेरिका से कट्टरपंथियों से लड़ने में मदद के नाम पर लाखों डॉलर उगाहे थे. लेकिन तालिबानी फिर से सत्ता में आ गए और उन्होंने पाकिस्तान और अफगानिस्तान को विभाजित करने वाली डूरंड रेखा को खुले तौर पर चुनौती दी.
जब तक पाकिस्तान चीनी बिजली कंपनियों के साथ फंडिंग के मुद्दों को सुलझा नहीं लेता तब तक चीन ने इकोनॉमिक कॉरिडोर के लिए फंड देना बंद कर दिया है. बलूच विद्रोहियों ने कुछ प्रांतों में चीन के बड़े कामों को प्रभावित किया. उनके द्वारा किए गए हमलों में कई चीनी इंजीनियरों और मजदूरों की जान भी गई.
ईशनिंदा (Blasphemy) वाले कार्टूनों पर फ्रांसीसी दूत को वापस बुलाने के TLP के आक्रामक विरोध के बाद पश्चिमी देश पाकिस्तान को संदेह की नजर से देख रहे हैं. पाकिस्तान फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की 'ग्रे लिस्ट' में बना हुआ है और कपड़ा निर्यात में जीएसपी-प्लस के अपने दर्जे को खोने के कगार पर है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)