भक्त जीवन की हर घटना को श्रद्धा की दृष्टि से देखता है; भगवान के प्रति उसका भरोसा ही श्रद्धा है
ओपिनियन
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
जो भी व्यक्ति सहमति से, प्रेम से, अपनेपन से तर जाए, वह कभी विरोध नहीं देख पाता। फिर चाहे वह मित्र को देखे या शत्रु को, उसका भाव प्रेमपूर्ण ही होगा। ये लक्षण भक्त के होते हैं। भक्त जीवन की हर घटना को श्रद्धा की दृष्टि से देखता है, क्योंकि भगवान के प्रति उसका जो भरोसा है, वही श्रद्धा है। श्रद्धा यदि बलवती हो तो कांटों में भी फूल दिखने लगते हैं।
रामजी के कहने पर जैसे ही हनुमानजी ब्राह्मण वेश में अयोध्या पहुंचे, भरतजी की भक्ति, उनका तप देखकर और शरीर की भाषा समझकर उनके मन में पांच भाव जागे। तुलसीदासजी ने इस दृश्य पर लिखा- 'देखत हनुमान अति हरषेउ। पुलक गात लोचन जल बरषेउ।। मन महं बहुत भांति सुख मानी। बोलेउ श्रवन सुधा सम बानी।।' भरतजी को देखते ही हनुमानजी अत्यंत हर्षित हुए।
शरीर पुलकित हो गया, आंखों से आंसू बहने लगे। फिर मन ही मन कई प्रकार से सुख मानकर कानों के लिए अमृत समान वाणी बोले। यहां पांच बातें हुईं जब दो भक्त आपस में मिले। चित्त हर्षित, देह पुलकित, नेत्रों में आंसू, मन में सुख और जिह्वा से मीठी वाणी। यदि भक्त हैं, किसी भी परमात्मा को मानते हैं तो हमारे भीतर ये लक्षण होना चाहिए। अपनों के साथ भी, परायों के प्रति भी। यही भक्त और भक्ति की पहचान है।