जो हालत पहले ब्रिक्स कहलाने वाली उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की हुई थी, वही अब बिग टेक कम्पनियों की हो रही
इस साल बाजार में टेक स्टॉक्स की जैसी बदहाली हुई है
रुचिर शर्मा का कॉलम:
इस साल बाजार में टेक स्टॉक्स की जैसी बदहाली हुई है, उसे देखते हुए एक्रोनिम इंवेस्टिंग के विचार की समीक्षा करने का समय आ गया है। एक दशक पहले ब्रिक्स (Brics) कहलाने वाले उभरते हुए बाजारों का जैसा पराभव हुआ था, वही हालत अब फान्ग (Faang) कहलाने वाली पांच बिग टेक कम्पनियों की हो रही है। ये कम्पनियां हैं फेसबुक (यह अब मेटा कहलाता है), अमेजन, एपल, नेटफ्लिक्स और गूगल (अब यह अल्फाबेट कहलाता है)।
ऐसा होता है कि कोई हॉट थीम निवेशकों की कल्पना पर हावी हो जाती है, वे एक समूह बनाते हैं और ट्रेंड को भुनाने के लिए उसका एक एक्रोनिम (किसी समूह में शामिल देशों या कम्पनियों के नाम के पहले अक्षरों से बनाया गया नया शब्द) गढ़ लेते हैं, जैसे ब्रिक्स या फान्ग। कुछ समय तक यह बढ़िया तरीके से चलता है। इससे प्रेरित होकर ऐसे ही कुछ और नए एक्रोनिम उभरते हैं। जब ट्रेंड अपनी उम्र पूरी कर चुका होता है तो उसके फंडामेंटल्स डगमगाने लगते हैं। गलतियां सामने आने लगती हैं।
लेकिन पुनर्विचार करने के बजाय निवेशक और नए एक्रोनिम गढ़ते रहते हैं। अंत में कुछ ही ऐसे शेष रह पाते हैं, जिनकी कोई मास-फॉलोइंग हो। ब्रिक्स शब्द 2001 में गढ़ा गया था। इसमें शुरू में ब्राजील, रशिया, इंडिया और चाइना शामिल थे, बाद में साउथ अफ्रीका भी इसमें जुड़ गया। उभरते बाजारों में एक दशक लम्बे ऐतिहासिक बूम के बाद वॉलस्ट्रीट के विश्लेषकों ने और छोटे देशों को इनके समकक्ष बताना शुरू कर दिया।
इनके लिए नया टर्म गढ़ा गया- सिवेट्स (Civets), जो कि कोलम्बिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, इजिप्ट, टर्की और साउथ अफ्रीका के नामों के पहले अक्षरों से बनाया गया था। फिर सामने आया मिस्ट (Mist), जिसमें मेक्सिको, इंडोनेशिया, साउथ कोरिया और टर्की शामिल थे। जल्द ही इन बाजारों में प्रवाहित होने वाली पूंजी की धारा सूखने लगी। 2011 में जब भारत की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाई थी और उसकी वैश्विक साख पर प्रश्नचिह्न लगा था, तो सेल्स से जुड़े मेधावियों ने सुझाया कि ब्रिक्स के आई को इंडिया के बजाय इंडोनेशिया कर देना चाहिए।
फिर कमोडिटी कीमतें तेजी से गिरीं और ब्रिक्स के बाकी अक्षर भी एक-एक कर गिरने लगे। अब जाकर निवेशकों की बुद्धि जगी। उनमें से किसी एक ने ब्रिक्स को एक हास्यास्पद इंवेस्टमेंट कॉन्सेप्ट कहकर पुकारा। 2010 के दशक में धीरे-धीरे देशों के नामों पर केंद्रित एक्रोनिम चलन के बाहर हो गए। लेकिन अब एक दूसरा चक्र चल पड़ा है। 2013 में फान्ग की कल्पना की गई थी, जिसमें फेसबुक, अमेजन, नेटफ्लिक्स, गूगल शामिल थे।
बाद में इसमें एपल का ए भी जोड़ दिया गया। शुरू में ये स्टॉक भी कमाल की तेजी से चले। जब इसमें माइक्रोसॉफ्ट, टेस्ला और एनवीडिया जुड़े तो फान्ग का फैन्गमैन्ट (Fangmant) हो गया। चीन की बड़ी कम्पनियां बाइडु, टेन्सेंट और अलीबाबा मिलकर बैट (Bat) कहलाईं। फिर जो हालत पहले उभरते हुए बाजारों की हुई थी, वही इन बिग टेक कम्पनियों की होने लगी। सबसे पहले बैट की हवा निकली, क्योंकि चीनी नियामकों ने टेक सेक्टर पर सख्ती दिखाना शुरू कर दी थी।
अमेरिका में निवेशकों को कुछ समय बाद समझ में आया कि टेक कम्पनियां अपने बढ़ते वैल्यूएशन को जायज ठहराने के लिए जरूरत से ज्यादा खर्च कर रही हैं। एक-एक कर नाम गिरने लगे। सबसे पहले नेटफ्लिक्स का एन गया। पीछे बचा मान्ट (Maant) यानी माइक्रोसॉफ्ट, एपल, अल्फाबेट, एनवीडिया और टेस्ला। लेकिन जल्द ही दूसरों की भी बारी आई। पिछले सप्ताह तक एपल ही इकलौती ऐसी बिग टेक कम्पनी थी, जिसका बाजार में इस साल का प्रदर्शन खराब नहीं कहा जा सकता था।
यानी एक्रोनिम इंवेस्टिंग का एक और बुरा दौर। वास्तव में टेक इंडस्ट्री के जिन बड़े नामों ने बीते दशक में अमेरिका में बड़ा मुनाफा कमाया था, वे ही 2022 में बाजार में आ रही गिरावट के जिम्मेदार बन गए हैं। एक्रोनिम्स के साथ समस्या यह है कि वे एक-दूसरे से भिन्न निवेशों का समूहीकरण करते हैं। वे पूंजीवाद के एक स्थायी-सत्य की उपेक्षा करते हैं, और वो है चर्न यानी ग्राहकों का किसी कम्पनी के साथ बिजनेस कम करते चले जाना।
ईजी-मनी और सरकार के समर्थन से बड़ी कम्पनियां चर्न को झुठलाकर और बड़ी होती चली गई थीं, लेकिन आखिरकार ओवर-वैल्यूएशन, अति आत्मविश्वास और जरूरत से ज्यादा निवेश उनके लिए नुकसानदेह ही साबित होता है। सवाल उठता है कि अब क्या? पिछले सप्ताह तक नेटफ्लिक्स (जो कि वैसे भी कभी सहज रूप से बिग टेक का हिस्सा नहीं बन पाया था) को छोड़कर फान्ग की सभी अन्य टेक कम्पनियां अब भी ग्लोबल मार्केट कैप में शीर्ष 10 में जगह बनाए हुए थीं, लेकिन 2020 का दशक तो अभी शुरू ही हुआ है।
वर्ल्डवाइड रिकॉर्ड्स 1980 के दशक से ही रखे जा रहे हैं। बीते तीन दशकों में तीन ही ऐसी कम्पनियां रही हैं, जिन्होंने लगातार दो दशकों तक शीर्ष 10 में जगह बनाई है। ये हैं माइक्रोसॉफ्ट, वॉलमार्ट और जनरल इलेक्ट्रिक। सामान्यतया इतने ऊपर जाने के बाद कम्पनियां अगले दशक में खराब प्रदर्शन ही करती दिखती हैं। वे ऊपर जाते समय तो बहुत हाइप बनाती हैं, लेकिन जैसे ही बाजार का रुख विपरीत होता है तो सबसे कमजोर भी वे ही साबित होती हैं।
एक्रोनिम के ट्रेंड में डगमगाहट
ऐसा होता है कि कोई हॉट थीम निवेशकों की कल्पना पर हावी हो जाती है, वे एक समूह बनाते हैं और ट्रेंड को भुनाने के लिए एक एक्रोनिम गढ़ लेते हैं, जैसे ब्रिक्स या फान्ग। कुछ समय तक यह बढ़िया तरीके से चलता है। इससे प्रेरित होकर कुछ और नए एक्रोनिम उभरते हैं। जब ट्रेंड अपनी उम्र पूरी कर चुका होता है तो उसकी बुनियाद डगमगाने लगती है। गलतियां सामने आने लगती हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)