दीवाली का आगमन कोरोना संकट को टालने में सहायक बने, इसके लिए रहना होगा सभी को सचेत और सक्रिय

कैसी भी परिस्थिति हो, पर्वों का आगमन उल्लास और उमंग का संचार करने के साथ मानव जीवन की एकरसता को तोड़ने में सहायक बनता है

Update: 2020-11-14 01:26 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कैसी भी परिस्थिति हो, पर्वों का आगमन उल्लास और उमंग का संचार करने के साथ मानव जीवन की एकरसता को तोड़ने में सहायक बनता है। दीपोत्सव जैसे सबसे बड़े पर्व से इसकी आशा और अधिक बढ़ जाती है। जन-जन को स्पंदित करने और अपनी परंपराओं से जुड़ने एवं उन्हें समृद्ध बनाने का अवसर प्रदान करने वाले ऐसे पर्व केवल जीवन की एकरसता को ही नहीं तोड़ते, बल्कि हर किसी के मन में आशाओं के दीप भी जलाते हैं। इस बार यह पर्व इसलिए भिन्न परिस्थिति में मनाना पड़ा रहा है, क्योंकि राष्ट्रीय जीवन की गति को बाधित करने वाला कोरोना संकट अभी टला नहीं है। दीपावली का आगमन इस संकट को टालने में सहायक बने, इसके लिए सभी को सचेत भी रहना होगा और सक्रिय भी। वास्तव में यही वह उपाय है, जिससे कोरोना रूपी अंधेरे को आसानी से परास्त किया जा सकता है। यह भी स्मरण रहे कि संकट केवल कोरोना के रूप में ही नहीं है। देश के एक हिस्से का प्रदूषित वायुमंडल भी एक बड़ा संकट है। ऐसे संकटों से तभी पार पाया जा सकता है, जब उनसे सामूहिक तौर पर निपटा जाएगा। जैसे दीपोत्सव सब मिलकर मनाते हैं, वैसे ही हमें राष्ट्रीय समस्याओं को दूर करने के लिए भी एकजुट होना होगा, क्योंकि किसी भी देश की समस्याओं का समाधान सबके सहयोग से ही संभव होता है।

जैसे अनगिनत दीयों का प्रकाश कोने-कोने से अंधेरे को दूर भगाता है, वैसे ही जन-जन का सहयोग भी राष्ट्र को उसकी हर समस्या से लड़ने की साम‌र्थ्य प्रदान करता है। अंधेरे से लड़ने और सुख-समृद्धि की ओर गतिशील होने की प्रेरणा देने वाले इस पर्व की उत्सवधर्मिता में कोई कमी नहीं आनी चाहिए, लेकिन इसी के साथ आवश्यक सतर्कता का परिचय देना भी समय की मांग है। इससे बेहतर और कुछ नहीं कि यह प्रकाश पर्व राष्ट्रीय जीवन के हर अंधेरे पक्ष को दूर करने की संकल्प शक्ति प्रदान करे।

दीपावली केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का ही पर्व नहीं, हर किसी के सुख और समृद्धि की मंगल कामना का भी अनूठा आयोजन है। इस मंगल कामना के साथ हमें समरसता का भी भाव न केवल जगाना होगा, बल्कि अपने कार्य-व्यवहार से उसे पुष्ट भी करना होगा, क्योंकि वही सबकी सुख-समृद्धि का मूल आधार है। इस आधार को सुशोभित करते हुए हमें प्रकृति की भी चिंता करनी होगी। इसलिए और भी अधिक, क्योंकि उसे संरक्षित करके ही हम अपनी तमाम समस्याओं से बचे रह सकते हैं। हमारे अन्य अनेक पर्वो की तरह दीपावली भी प्रकृति के परिवर्तनकारी रूप का ही संदेश देती है और इसका भी कि उसके संरक्षण में ही प्राणि मात्र का हित है।

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