ऐसे तराशेंगे टैलंट!
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में 200 से ज्यादा अंडर 17 विमिन कबड्डी प्लेयर्स को जिस तरह से जेंट्स टॉयलेट में रखा खाना परोसा गया, वह देश में खेल और खिलाड़ियों को लेकर सरकारी तंत्र के शर्मनाक रवैये को उजागर करता है।
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में 200 से ज्यादा अंडर 17 विमिन कबड्डी प्लेयर्स को जिस तरह से जेंट्स टॉयलेट में रखा खाना परोसा गया, वह देश में खेल और खिलाड़ियों को लेकर सरकारी तंत्र के शर्मनाक रवैये को उजागर करता है। हालांकि विडियो वायरल होने और इसकी खबरें मीडिया में आने के बाद कार्रवाई में देर नहीं की गई। तत्काल स्पोर्ट्स ऑफिसर को निलंबित करने और संबंधित ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट करने के साथ ही पूरे मामले की विस्तृत जांच के भी आदेश जारी कर दिए गए, लेकिन यह कार्रवाई न तो इस प्रकरण से हुए नुकसान की भरपाई करती है और न ही इस तरह के रवैये का कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण पेश कर पाती है। अगर यह घटना इस तरह मीडिया में नहीं आती या इसके विडियो वायरल न हुए होते तो महिला कबड्डी प्लेयर्स के साथ ऐसा बर्ताव करने वाले लोगों में से किसी के भी मन में शायद ही कोई अपराध भाव आता या प्रशासन के आला अधिकारियों में से कोई इसे नोटिस में लेता।
ऐसी धारणा का कारण यह है कि अपने देश में खिलाड़ियों की उपेक्षा कोई नई बात नहीं है। खेल तंत्र, प्रशासन और सत्ता से जुड़े लोग खुद को इन खिलाड़ियों की किस्मत का शहंशाह मानते हैं। उनकी यह भावना कभी किसी महिला खिलाड़ी के यौन शोषण की खबर के रूप में सामने आती है तो कभी खिलाड़ियों की उपलब्धियों को अनदेखा करने और आयोजनों के दौरान उन्हें अहमियत न दिए जाने के रूप में। इसी रविवार को कोलकाता में डुरंड कप फाइनल के बाद ट्रॉफी देते समय विजेता टीम के कप्तान सुनील छेत्री को जिस तरह से साइड करने की कोशिश की गई, वह खेलों और खिलाड़ियों के प्रति सत्ताधीशों के नजरिए को बताता है।
आश्चर्य की बात यह है कि सत्ता का यह नजरिया तब है जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खेल और खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने की हर मुमकिन कोशिश में जुटे नजर आते हैं। वह न केवल महत्वपूर्ण मुकाबलों से पहले निजी तौर पर खिलाड़ियों की हौसलाअफजाई करते हैं बल्कि मुकाबले के बाद भी उनसे मिलकर अलग-अलग तरीकों से सार्वजनिक तौर पर उनका उत्साह बढ़ाते हुए दिखते हैं। इसका एक मकसद व्यापक तौर पर यह संदेश देना भी है कि देश अपनी इन खेल प्रतिभाओं की परवाह करता है, उनका सम्मान करता है। इस बीच कई ऐसी योजनाएं भी लाई गईं जिनसे ग्रासरूट लेवल पर टैलंट को पहचानने और मांजने में मदद मिले।
इन सबका पॉजिटिव असर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में भारत के प्रदर्शन पर भी देखा जा रहा है। लेकिन ये सब प्रतीकात्मक उपाय बन कर रह जाएंगे अगर देश में ऊपर से नीचे तक खिलाड़ियों को लेकर खेल तंत्र का रवैया नहीं बदलेगा। आखिर कितनी भी अच्छी स्कीम लाई जाए उसका क्रियान्वयन तो इसी तंत्र के जरिए होना है। जरूरी है कि इस रवैये में स्थायी सुधार के दूरगामी उपाय किए जाएं।